पुराण, हिंदुओं के धर्मसंबंधी ग्रंथ हैं जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों- मुनियों और राजाओं के वृत्तांत आदि हैं. ये वैदिक काल के काफी बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं. भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। इनमें हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है।
इसे “आदिपुराण” भी का जाता है। प्राचीन माने गए सभी पुराणों में इसका उल्लेख है। इसमें श्लोकों की संख्या अलग- अलग प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है. इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है।
इस पुराण में अनेक विषयों के साथ विष्णुभक्ति के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसका विकास 5वीं शताब्दी में माना जाता है।
पुराण के पाँचों लक्षण इसमें घटते हैं। इसमें विष्णु को परम देवता के रूप में निरूपित किया गया है।
इसमें विशेषकर शिव का वर्णन किया गया है, अतः इस कारण इसे “शिवपुराण” भी कहा जाता है। एक शिवपुराण पृथक भी है।
यह सर्वाधिक प्रचलित पुराण है। इस पुराण का सप्ताह-वाचन-पारायण भी होता है। इसे सभी दर्शनों का सार “निगमकल्पतरोर्गलितम्” और विद्वानों का परीक्षास्थल “विद्यावतां भागवते परीक्षा” माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बताया गया है।
इसे महापुराण भी कहा जाता है। इसमें पुराण के ५ लक्षण घटित नहीं होते हैं।इसमें वैष्णवों के उत्सवों और व्रतों का वर्णन है।
इसे प्राचीनतम पुराण माना जाता है। इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि वैदिक देवताओं का वर्णन किया गया है।
इसे भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोष माना जाता है इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राण-प्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित, फलित-ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुन विद्या, वास्तु विद्या,आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोष निर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है।
इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है। इसमें मुख्यतः ब्राह्मण-धर्म, आचार, वर्णाश्रम-धर्म आदि विषयों का वर्णन है।
१०. ब्रह्मवैवर्तपुराण
यह वैष्णव पुराण है। इसमें श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन किया गया है।
इसमें शिव की उपासना का वर्णन है। इसमें शिव के २८ अवतारों की कथाएँ दी गईं हैं।
इसमें विष्णु के वराह-अवतार का वर्णन है। पाताललोक से पृथ्वी का उद्धार करके वराह ने इस पुराण का प्रवचन किया था।
यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बड़ा पुराण है।
इसमें विष्णु के वामन-अवतार का वर्णन है। इसमें चार संहिताएँ हैं—-(क) माहेश्वरी, (ख) भागवती, (ग) सौरी तथा (घ) गाणेश्वरी।
इसमें विष्णु के कूर्म-अवतार का वर्णन किया गया है। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) ब्राह्मी, (ख) भागवती, (ग) सौरा तथा (घ) वैष्णवी।
इसमें कलियुग के राजाओं की सूची दी गई है। इसका रचनाकाल तीसरी शताब्दी माना जाता है।
यह वैष्णवपुराण है। इसमें विष्णुपूजा का वर्णन है। इसका पूर्वखण्ड विश्वकोषात्मक माना जाता है।
इसमें चार पाद हैं—(क) प्रक्रिया, (ख) अनुषङ्ग, (ग) उपोद्घात तथा (घ) उपसंहार.
सनतकुमार पुराण, नरसिंह पुराण, बृहन्नारदीय पुराण, शिवरहस्य पुराण, दुर्वासा पुराण, कपिला पुराण, वामन पुराण, भार्गव पुराण, वरुण पुराण, कलिका पुराण, साम्बा पुराण, नंदी पुराण, सूर्य पुराण, परासर पुराण, वशिष्ट पुराण, देवी भागवत, गणेश पुराण, हंस पुराण॥
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ashwinirai
मैं, कल आज और…अभी
बड़े बड़े लेखकों ने वक्त के बारे में बड़ी बड़ी बातें लिखी हैं तो मैंने सोचा की मैं क्या लिखूं, तब सोचा जब वक्त की बात करनी ही है तो क्यूँ ना अपने लेखकिय जीवन के बारे में ही क्यूँ ना करूँ…
पहले जब लोग मुझसे पूछते थे! की तुम क्या करते हो? तो मैं बगल झांकने लगता था, क्या कहूँ ? क्या ना कहूँ ? कुछ समझ में नहीं आता था। कभी कभी बातें बदलकर अटपटा सा जवाब देता या बात बनाने लगता। मगर जब मैं स्वयं अपनी बात से संतुष्ट नहीं होता तो लोग क्या संतुष्ट होते होंगे। आखिर अर्थ युग में अर्थ ही तो मापक है आपके काबिल होने के लिए, जो जितना अर्थपति वो उतना बड़ा काबिल।
मगर मैं तो इस मामले में नीरा अनाड़ी…कहां से काबिलियत की खरीददारी करूँ। अतः सोचा की की क्यूँ ना इस कालिख को छुड़ाने के लिए इसे माजा जाए शायद इसे माँजने पर यह कालिख छूट ही जाए। मैंने खूब जोर लगाया और लगातार स्वयं को माँजता रहा और आज भी इसे मांज रहा हूँ जिससे इसमें चमक आ सके।
हाँ ! माँजने से एक बात जरूर बदल गई, जब आज लोग मुझसे पूछते हैं की आप क्या करते हैं? तो मेरा बस एक ही जवाब होता है… लिखता हूँ ! वो फिर पूछते हैं, जीने के लिए क्या करते हैं ? मैं बस इतना ही कहता हूँ, बस लिखता हूँ और लिखने के लिए पढ़ता हूँ। बस यही करता हूँ क्यूंकि जीने के लिए साँस जरूरी है। पढ़ना मेरे लिए साँस लेने के बराबर है और लिखना साँस छोड़ने के बराबर है, यानी जीने की पूरी प्रक्रिया।
मेरे लिखने पढ़ने के सहायक मेरे परिजन हैं। लेकीन इसके मुख्य कर्ता मेरे पूज्य मामाजी श्री ओम नारायण राय जी हैं, जिनसे मैं अक्सर झगड़ता रहता हूँ और वो हर बार मुझे माफ कर देते हैं।
रहा अर्थ की बात तो कभी भी मेरे पूज्य पिताश्री ने मुझे कमाने के लिए नहीं कहा जबकी उल्टे वे हर बार मुझे मेरी जरूरत के बारे में ही पूछते रहते हैं। दूसरी ओर मेरी पत्नी ने कभी भी मुझसे एक चौकलेट तक की भी फरमाईश नहीं की और ना ही पैसे को लेकर कोई उलाहना ही दिया। रही बात जरूरतों की उसकी कमी कभी मेरे छोटे भाईयों ने होने ना दी। इसलिए शायद अर्थ का महत्व मैं आज तक समझ ना सका। मगर आप यह सोच रहे होंगे की जब इतने लोग मेरे सहायक हैं तो मैंने सिर्फ मामा जी को ही मुख्य कर्ता क्यूँ कहा।
जी, हाँ ! इसकी एक वजह जो एक कहानी भी है…
मैं जब छोटा था, पढ़ाई से निफिक्र सिर्फ खेलना कूदना और बदमाशी। इतनी बदमाशी की सब परेशान रहते। लेकिन मामाजी के सामने मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी, मगर पढ़ाने में वे भी सदा असफल रहे।
एक दिन वो कहीं बाहर से आए, उनके हाँथ में एक बंडल था। मैं उत्सुक था यह जानने के लिए की क्या है उसमें ? उन्होंने वह बंडल मुझे दिया और मैंने भी उसे बिना देर किए झट से खोल लिया।
यह क्या किताबें ? ? ? सिलेबस कि किताबो से अलग सुन्दर कवर वाले रंगीन पृष्ठ वाले ये किताब बड़े ही मनमोहक थे। पहली बार किताबो को देख मैं मुग्ध हुआ था। उन पुस्तकों के नाम कुछ इस प्रकार हैं, एलिस इन वंडरलैंड, अराउंड द वर्ल्ड इन 80 डेज, सिंदबाद जहाजी, तेनालीरामा, पंचतंत्र, हितोपदेश, अली बाबा 40 चोर आदि कोई और…
उस दिन पुस्तकों के किरदारों के साथ जो मैं जुड़ा, आज तक उनसे दूर ना हो सका। कितनी कोशिश की मैंने की मैं उनसे दूर हो सकूं और कुछ सामाजीक बन सकूं मगर मैं वो ना बन सका।
तो इस वर्ष का यह पहला आलेख अपनी ओर से मैं स्वयं को इस प्रतियोगिता के माध्यम से उपहार स्वरूप दे रहा हूँ। यूँ तो पहले से ही मैं लिखता रहा हूँ मगर अपने अतीत को झांकने का मौका इस विषय ने दिया है अतः मैं सपना जी का भी तहे दिल से धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने इतने खूबसूरत विषय को हम सबके मध्य रखा है। इधर कुछ दिनों से मैं अपने अतीत में लगातार घूम आया करता था जैसे कोई टाईम मशीन मेरे पास हो। इतने में इस विषय का आगमन हुआ और कलम चल पड़ी और ऐसी चली की रुकने का नाम ही नहीं ले रही है, भावनाएँ हैं, तो कुछ आपबीती तो और कुछ समाज की सच्चाईयाँ जिन्हें मेरी कलम लगातार उकेरती रही। आज मैं स्वयं पर आश्चर्य कर रहा हूँ की मैं लिख क्या रहा हूँ। जैसे मैं कोई बड़ा लेखक बन जाऊंगा।
यह समय है और समय के गर्भ में क्या छिपा है कोई नहीं जान सकता। आप भी नहीं और मैं भी नहीं…
कई पुस्तकों के अध्यन उपरांत मैं यही समझा पच्चीस वर्ष की आयु से पचास वर्ष की आयु तक के बोले गए झूठ और बटोरे गए पैसे किसी काम के नहीं रहते। मैं यह कदापि नहीं कहता की आप काम ना करो मगर अति सदा वर्जित है, आप इससे बचो। आप देखेंगे बड़े बड़े अवकाश प्राप्त अफसर, नेता और बड़े व्यवसाई कुछ वक्त के बाद पैसे के आगे धर्म, कर्म, अध्ययन अध्यापन अथवा अध्यात्म, सेवा आदि कर्म को महत्व देने लगते हैं। उन्हें माया की सच्चाई का पता थोड़ा ही सही, चलने जरूर लगता है। उन्हें किताबें अच्छी लगने लगती हैं। वे स्वयं तो पढ़ते ही हैं दूसरों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जैसे मेरे पूज्य मामा जी ने मुझे प्रोत्साहित किया…
मामा जी के द्वारा दी गई उन पुस्तकों का प्रभाव मेरे ऊपर इतना पड़ा की पढ़ते पढ़ते आज लिखने भी लगा। इसके अलावा आप सभी स्नेहिल मित्रों के प्रेम व सान्निध्य का भी बेहद शुक्रिया जो मुझे लिखने हेतु सतत प्रेरित करते रहे…
मगर यह बिल्कुल प्रथम अनुभव है अपने अतीत को किसी के सम्मुख प्रस्तुत करना। सच में आज हृदयतल पुलकित सा हो रहा है, मेरे लिए रोमांचित करने वाली बात है ये। आज आपके मित्र यानी मैं अश्विनी राय ‘अरुण’ की कुछ एकल अथवा साझा पुस्तकों ने आपके मित्र से कहीं ज्यादा नाम कमाया है और कुछ अभी भी अपनी बारी के इंतजार में हैं…
1. एकल प्रकाशित पुस्तक :-
‘बिहार – एक आईने की नजर से’
प्रकाश्य :-
ये उन दिनों की बात है, आर्यन, जीवननामा (१२ खंड), दक्षिण भारत की यात्रा, आपातकाल, महाभारत – मेरी नजर से, बक्सर – एक आईने की नजर से, बहाव (कविता संग्रह), अनाम (लेख संग्रह) आदि।
2. प्रकाशित साझा संग्रह :-
पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘दिनेश’, गंगा गीत माला (भोजपुरी), स्पंदन, रामकथा के विविध परिप्रेक्ष्य आदि। कुछ और भी साझा संग्रह प्रकाशन के इंतजार में हैं। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में भी सतत लेखन।
आज मामाजी, मेरे परिजन एवं मित्रों के सहयोग का ही यह असर रहा जो मैं कई संस्थाओ द्वारा सम्मान/पुरस्कार से अलंकृत एवं सम्मानित हो सका… साथ ही आज मैं विभिन्न संस्थाओ के आधिकारिक पद पर भी विराजमान हूँ।
जिंदगी है यह चलती तो रहेगी ही, मगर यह यूँ ही चलती रहेगी या इसमें रफ़्तार आएगी यह तो आप सभी मित्रों के हाँथ में है…
धन्यवाद !
अश्विनी राय ‘अरूण’