#सम्पूर्णसिंहकालरा
#१८अगस्त१९३६
हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार, एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार।
उनकी रचनाए मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं, परन्तु ब्रज भाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होने रचनाये की हैं।
#फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ गीतकार – १९७७, १९७९, १९८०, १९८३, १९८८, १९८८, १९९१, १९९८, २००२, २००५
#साहित्य अकादमी पुरस्कार – २००२
#पद्मभूषण – २००४ में कला क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
#ऑस्कर (सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत का) – २००९ में अंग्रेजी चलचित्र ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के गीत ‘जय हो’ के लिए
#ग्रैमी पुरस्कार- २०१०
#दादासाहब फाल्के सम्मान – २०१३
कालरा का जन्म भारत के झेलम जिला पंजाब के दीना गाँव में हुवा था, जो अब पाकिस्तान में है। कालरा अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान हैं। उनकी माँ उन्हें बचपन में ही छोङ कर चल बसीं। माँ के आँचल की छाँव और पिता का दुलार भी नहीं मिला। वह नौ भाई-बहन में चौथे नंबर पर थे। बंट्वारे के बाद उनका परिवार अमृतसर (पंजाब, भारत) आकर बस गया, वहीं कालरा मुंबई चले गये। वर्ली के एक गेरेज में वे बतौर मेकेनिक काम करने लगे और खाली समय में कवितायें लिखने लगे। फ़िल्म इंडस्ट्री में उन्होंने बिमल राय, हृषिकेश मुख़र्जी और हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम शुरू किया। बिमल राय की फ़िल्म बंदनी के लिए कालरा, गुलज़ार के नाम से अपना पहला गीत लिखा।
गुलज़ार साहब के मजेदार किस्सों मे से अश्विनी दो एक सुनाएगा, सुनिएगा जरूर मजा आएगा…
गुलज़ार साहब स्वयं कहते हैं कि कितनी बार वो आरडी के घर लिरिक्स लेकर जाता और आरडी उन्हें कभी गाड़ी में तो कभी लिविंग रूम में वेट करवाते। एक बार गुलज़ार साहब जब गाना लेकर आरडी बर्मन साहब के पास आए तो बर्मन दा काम करने के मूड में नहीं थे। उन्होंने गुलज़ार को टालना चाहा, लेकिन गुलज़ार भी अड़ गए। आरडी कभी चाय की बात करते तो कभी सिनेमा की, लेकिन गुलज़ार उन्हें खींच कर गाने पर ले आते। आखिरकार घंटों तक इधर-उधर बचकर भागते आरडी को गुलज़ार की ज़िद के आगे हारना पड़ा।
कुछ ऐसा ही किस्सा फिल्म आंधी के गाने ‘इस मोड़ से जाते हैं’ से जुड़ा है। इस गाने में एक शब्द है ‘नशेमन’ और पंक्ति है ‘तिनकों के नशेमन तक, इस मोड़ से जाते हैं’। आर डी और गुलज़ार इस गाने को रिकॉर्ड कर चुके थे और मिक्सिंग में बैठे थे, तभी आरडी ने कहा कि दोस्त गाना तो तूने अच्छा लिखा है, लेकिन ये नशेमन कहां पड़ता है और ये किस मोड़ से जाते हैं, कभी होकर आया जाए। गुलज़ार न हंस सके, न गुस्सा हो सके और उन्होंने कहा कि भाई तुम गाना ही बनाओ, नशेमन फिर कभी जाएंगे।
ऐसा ही एक मशहूर किस्सा है कि गुलज़ार जब इजाज़त फिल्म का गीत ‘मेरा कुछ सामान’ के लिरिक्स लेकर पंचम दा के पास पहुंचे तो पंचम दा गाना देखकर परेशान हो गए। संगीत के एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि इस गाने को कंपोज़ करना बहुत मुश्किल था और पंचम दा भी कह उठे भाई गुलज़ार, तू कल को टाइम्स ऑफ इंडिया की हेडलाइन लेकर आएगा और कहेगा कि गाना बना दो, तो मैं बना थोड़े ही दूंगा? हालांकि बाद में इसी गाने के लिए आशा भोंसले को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और आज भी ये गाना कानों को प्यारा लगता है।
गुलज़ार साहब के जन्मोत्सव पर हार्दिक बधाई…