November 24, 2024

सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी,
सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी।

#मुकेशचंदमाथुर

मुकेश की आवाज़ बहुत खूबसूरत थी पर उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतीलाल ने उन्हें तब पहचाना जब उन्होंने उसे अपनी बहन की शादी में गाते हुए सुना। मोतीलाल उन्हें बम्बई ले गये और अपने घर में रहने दिया। यही नहीं उन्होंने मुकेश के लिए रियाज़ का पूरा इन्तजाम किया। इस दौरान मुकेश को एक हिन्दी फ़िल्म “निर्दोष” में मुख्य कलाकार का काम मिला। पार्श्व गायक के तौर पर उन्हें अपना पहला काम फ़िल्म “पहली नज़र” में मिला। मुकेश ने हिन्दी फ़िल्म में जो पहला गाना गाया, वह था….

दिल जलता है तो जलने दे,
आँसू ना बहा फ़रियाद ना कर।
तू परदा नशीं का आशिक़ है,
यूं नाम-ए-वफ़ा बरबाद ना कर॥

जिसमें अदाकारी मोतीलाल ने की। इस गीत में मुकेश के आदर्श गायक के एल सहगल के प्रभाव का असर साफ़-साफ़ नज़र आता है। के एल सहगल साहब को इनकी आवाज़ बहुत पसंद आयी। इनके गाने को सुन के एल सहगल भी दुविधा में पड़ गये थे।

40 के दशक में मुकेश का अपना पार्श्व गायन शैली था। नौशाद के साथ उनकी जुगलबंदी एक के बाद एक सुपरहिट गाने दे रही थी। उस दौर में मुकेश की आवाज़ में सबसे ज़्यादा गीत दिलीप कुमार साहब पर फ़िल्माए गये। 50 के दशक में इन्हें एक नयी पहचान मिली, जब इन्हें राजकपूर की आवाज़ कहा जाने लगा। कई साक्षात्कार में खुद राज कपूर ने अपने दोस्त मुकेश के बारे में कहा है कि, “मैं तो बस शरीर हूँ मेरी आत्मा तो मुकेश है”।

60 के दशक में मुकेश का करियर अपने चरम पर था और अब मुकेश ने अपनी गायकी में नये प्रयोग शुरू कर दिये थे। उस वक्त के अभिनेताओं के मुताबिक उनकी गायकी भी बदल रही थी। जैसे कि सुनील दत्त और मनोज कुमार के लिए गाये गीत। 70 के दशक का आगाज़ मुकेश ने इस गाने से किया….

जीना यहाँ मरना यहाँ,
इसके सिवा जाना कहाँ।

उस वक्त के हर बड़े फ़िल्मी सितारों की ये आवाज़ बन गये थे। मुकेश ने अपने करियर का आखिरी गाना अपने दोस्त राज कपूर की फ़िल्म के लिए ही गाया था। फिल्म थी, “सत्यं शिवम सुंदरम”और गाने के बोल थे….

चंचल शीतल निर्मल कोमल संगीत की देवी स्वर सजनी..
सुन्दरता की हर प्रतिमा से बढाकर है तू सुन्दर सजनी
चंचल शीतल…

लेकिन 1978 में इस फ़िल्म के जारी होने से दो साल पहले ही….

#27अगस्त1978 को मुकेश का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गाया।

ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना,
ये घाट तू ये बाट कहीं भूल न जाना।
बचपन के तेरे मीत तेरे संग के सहारे,
ढूँढेंगे तुझे गली-गली सब ये ग़म के मारे।
पूछेगी हर निगाह कल तेरा ठिकाना,
ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना॥

मगर मुकेश कहा करते थे….

इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
इक दिन बिक जायेगा…

ला ला ललल्लल्ला…ला ला ललल्लल्ला

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