बाबा रामसिंह कूका
जन्म – ०३ फरवरी, १८१६
स्थान – लुधियाना के भैणी ग्राम में

बाबा रामसिंह कूका, भारत की आजादी के सर्वप्रथम प्रणेता (कूका विद्रोह), असहयोग आंदोलन के मुखिया, सिखों के नामधारी पंथ के संस्थापक, तथा समाज सुधारक थे।

कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग इनके यहां लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग ही पंथ बन गया, जो कूका पंथ (नामधारी) कहलाया।

सतगुरु राम सिंह एक महान सुधारक व रहनुमा थे, जिन्होंने समाज में पुरुषों व स्त्रियों की संपूर्ण तौर पर एकता का प्रचार किया व अपने प्रचार में सफल भी रहे, क्योंकि १९वीं सदी में लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार देना, बेच देना व विद्या से वंचित रखने जैसी सामाजिक कुरीतियाँ प्रचलित थी। तब सतगुरु राम सिंह ने ही इन कुरीतियों को दूर करने के लिए लड़के-लड़कियों दोनों को समान रूप से पढ़ाने के निर्देश जारी किए।

सिख पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी अमृत छका कर सिखी प्रदान की गई। बिना ठाका शगुन, बारात, डोली, मिलनी व दहेज के सवा रुपये में विवाह करने की नई रीति का आरंभ हुआ, जिसे आनंद कारज कहा जाने लगा। पहली बार वे गाँव खोटे जिला फिरोजपुर में छह अंतर्जातीय विवाह करवा कर समाज में नई क्रांति लाए। सतगुरु राम सिंह की प्रचार प्रणाली से थोड़े समय में ही लाखों लोग नामधारी सिख बन गए, जो निर्भय, निशंक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध कूके (हुंकार) मारने लगे, जो इतिहास में कूका नाम से प्रसिद्ध हुए।

बाबा रामसिंह कूका को कोटि कोटि नमन…

धन्यवाद!
Ashwini Rai

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