निरंतरता का अर्थशास्त्र में पर्यावरण संरक्षण के साथ मानव के आर्थिक विकास की परिकल्पना का प्रतिपादन।
“इकॉनॉमी ऑफ़ परमानेंस” पुस्तक को कुमारप्पा की सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इसके प्राकृतिक स्वरूप को उन्नत करने के हिमायती कुमारप्पा ऐसे बिरले अर्थशास्त्री थे जो पर्यावरण संरक्षण को औद्योगिक-वाणिज्यिक उन्नति से कहीं अधिक लाभप्रद मानते थे।
जे सी कुमारप्पा
जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस
जन्म – ४ जनवरी १८९२
स्थान – तमिलनाडु के तंजावुर में
जे सी कुमारप्पा ने प्रख्यात अर्थशास्त्री एडविन सेलिग्मन के मार्गदर्शन में ‘सार्वजनिकवित्त एवं भारत की निर्धनता’ पर शोध पत्र लिखा जिसमें भारत की आर्थिक दुर्दशा में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नीतियों से हुए नुकसान का अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन के दौरान ही कुमारप्पा ने पाया कि भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति का मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अनैतिक और शोषक नीतियाँ है। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोगों में भी अंग्रेज़ों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण को लेकर बैचेनी थी। इस बेचैनी के केंद्र में था ब्रिटिश साम्राज्य पर चढ़ा वह सार्वजनिक ऋण जिसे वह भारत में शासन चलाने के नाम पर औपनिवेशक भारतीयों के मत्थे मढ़ना चाहती थी।
अमेरिका से भारत लौटने के बाद कुमारप्पा भारतीय आर्थिक शोषण पर लिखे अपने लेख को प्रकाशित करने के संदर्भ में गाँधी से मिलने साबरमती आश्रम गये। गाँधी ने अपने पत्र यंग इण्डिया में इस लेख को प्रकाशित करने में रुचि भी दिखायी और कुमारप्पा से गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सर्वेक्षण करने का आग्रह किया। गाँधी के कहने पर कुमारप्पा गुजरात के खेड़ा जिले के मातर ताल्लुका में सर्वेक्षण करने गये। गुजरात का यह इलाका पिछले कई सालों से कम वर्षा के कारण भीषण जल संकट से गुज़र रहा था लेकिन इसके बावजूद राजस्व वसूली के लिए सरकारी अमला बेहद सख्ती दिखा रहा था। कुमारप्पा ने मातर ताल्लुका के ४५ गाँवों के निवासियों का आर्थिक सर्वेक्षण करके लगान वसूली की दर और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के बीच जटिल संबंध को पहली बार सांख्यिकीय आँकड़ों के माध्यम से प्रदर्शित किया। इसी दौरान यंग इण्डिया में कुमारप्पा के लेख ‘सार्वजनिक वित्त और हमारी निर्धनता’ का सिलसिलेवार प्रकाशन भी शुरू हो गया।
नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जब ब्रिटिश प्रशासन ने गाँधी को गिरफ्तार कर लिया तो यंग इण्डिया के संचालन की ज़िम्मेदारी कुमारप्पा पर आ गयी। इस पत्र में लेखन के कारण कुमारप्पा को भी गिरफ्तार करके डेढ़ साल के लिए जेल भेज दिया गया। जेल से बाहर आने के बाद इरविन ने उन्हें आर्थिक सलाहकार बना आर्थिक सर्वेक्षणात्मक कार्य में लगा दिया, बिहार की अवस्था देख उन्होने फिर से एक लेख यंग इंडिया में लिखा। परिणामस्वरूप उन्हें फिर जेल जाना पड़ा। जेल से वापसी के बाद अपनी आदत के अनुसार उन्होने इस बार पूरे देश का आर्थिक सर्वेक्षण कर डाला। ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्वयुद्ध का अधिकतर ख़र्च भारत पर डालना चाहती थी तो कुमारप्पा ने इसके विरोध में एक लेख ‘स्टोन फ़ॉर ब्रेड’ लिखा और जिसके प्रकाशन के बाद उन्हें एक बार फिर ज़ेल भेज दिया गया। कुमारप्पा ने अपने इस ज़ेल-प्रवास का सदुपयोग करते हुए ‘प्रैक्टिस ऐंड परसेप्ट्स ऑफ़ जीसस’ एवं ‘इकॉनॉमी ऑफ़ परमानेंस’ शीर्षक से दो पुस्तकें लिखीं।
कुमारप्पा को भारत में गाँधीवादी अर्थशास्त्र का प्रथम गुरु माना जाता है।
महान अर्थशास्त्री के जन्मदिवस पर कोटि कोटि नमन, जिनके अथक प्रयास का असर आज जाके पूरी दुनिया में नजर आ रहा है, प्राकृतिक संसाधनो के विनाश के बाद। विश्व के दो सौ से अधिक देश आर्थिक विकास का मानक पर्यावरण विकास को मानने लगे हैं।
वे कहा करते थे, “प्राक्रतिक संसाधनो का विकास ही अर्थ जगत का मूल विकास है ना की उनके दोहन में।” ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अनैतिक और शोषक नीतियों के प्रखर विरोधी श्री जे.सी. कुमारप्पा को एक बार फिर Ashwini Rai का कोटि कोटि नमन!
धन्यवाद !