परिचय…
डॉ॰ नरेन्द्र कोहली का जन्म ६ जनवरी १९४० को संयुक्त पंजाब के सियालकोट मे हुआ था जो अब पाकिस्तान मे है। प्रारम्भिक शिक्षा लाहौर मे आरम्भ हुई और भारत विभाजन के पश्चात परिवार के जमशेदपुर चले आने पर वहीं आगे बढ़ी। दिलचस्प है कि प्रारम्भिक अवस्था में हिन्दी के इस सर्वकालिक श्रेष्ठ रचनाकार की शिक्षा का माध्यम हिन्दी न होकर उर्दू था। हिन्दी विषय उन्हें दसवीं कक्षा की परीक्षा के बाद ही मिल पाया। विद्यार्थी के रूप में नरेन्द्र अत्यंत मेधावी थे एवं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते रहे। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भी उन्हें अनेक बार अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।
साहित्यिक योगदान…
हिन्दी साहित्य में ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय नरेंद्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक सामाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना कोहली की अन्यतम विशेषता है। कोहलीजी सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय जीवन-शैली एवं दर्शन का सम्यक् परिचय करवाया है। प्रायः छह-सात दशकों के पश्चात् आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साहित्यिक अवदान का मूल्यांकन करते समय अब एक प्रमुख तथ्य उसमें और जोड़ा जा सकता है। आचार्य द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य में एक ऐसे द्वार को खोला जिससे गुज़र कर नरेन्द्र कोहली ने एक सम्पूर्ण युग की प्रतिष्ठा कर डाली।
ऐतिहासिक-पौराणिक तथ्यों का मौलिक वैज्ञानिक विश्लेषण यह वह विशेषता है जिसकी नींव आचार्य द्विवेदी ने डाली थी और उसपर रामकथा, महाभारत कथा एवं कृष्ण-कथाओं आदि के भव्य प्रासाद खड़े करने का श्रेय आचार्य नरेंद्र कोहली का है। संक्षेप में कहा जाए तो भारतीय संस्कृति के मूल स्वर आचार्य द्विवेदी के साहित्य में प्रतिध्वनित हुए और उनकी अनुगूंज ही नरेन्द्र कोहली रूपी पाञ्चजन्य में समा कर संस्कृति के कृष्णोद्घोष में परिवर्तित हुई जिसने हिन्दी साहित्य को हिला कर रख दिया। रामायण और महाभारत को अलग रुप और रंग में ढाल, वैज्ञानिकता की कसौटी पर कस कर डॉ कोहली ने कालजयी उपन्यासों को आमजन के मनोविज्ञान के अनुसार इतना महानतम कार्य कर डाला की युवा कोहली के पक्ष में उस समय के सर्वश्रेष्ठ विद्वजन आ खड़े हुवे। जैसे; जैनेन्द्र कुमार, भगवतीचरण वर्मा, यशपाल, आचार्य श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ॰ नगेन्द्र, डॉ धर्मवीर भारती, रामनारायण उपाध्याय, अमृतलाल नागर, कवि बाबा नागार्जुन, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, डा विजयेन्द्र स्नातक’, डॉ कविता सुरभि आदि।
और अंत में…
इसके अतिरिक्त वृहद् व्यंग साहित्य, नाटक और कहानियों के साथ साथ नरेन्द्र कोहली ने गंभीर एवं उत्कृष्ट निबंध, यात्रा विवरण एवं मार्मिक आलोचनाएं भी लिखी हैं। संक्षेप में कहा जाय तो उनका अवदान गद्य की हर विधा में देखा जा सकता है, एवं वह प्रायः सभी अन्य साहित्यकारों से उनकी विशिष्ट विधा में भी श्रेष्ठ हैं। उनके कृतित्व का आधा भी किसी अन्य साहित्यकार को युग-प्रवर्तक साहित्यकार घोषित करने के लिए पर्याप्त है।