November 21, 2024

काशी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। काशी में लगभग ८४ घाट हैं, जो लगभग ४ मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं।

आदिकेशव घाट…

काशी के इन ८४ घाटों में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्‍हें सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थ’ कहा जाता है। ये हैं असीघाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट। गंगा घाटों की पहचान और परंपरा के क्रम में इस बार हम लेकर आए हैं, ‘आदिकेशव घाट’ के ऐतिहासिक और पौराणिक महात्म्य को आपसे मिलाने के लिए।

आस्था इतिहास…

ग्यारहवीं सदी में गढ़वाल वंश के राजाओं ने आदिकेशव मंदिर व घाट का निर्माण कराया था। मान्यता है कि ब्रह्मालोक निवासी देवदास को शर्त के अनुसार ब्रह्मा जी ने काशी की राजगद्दी सौंप दिया और देवताओं को मंदराचल पर्वत जाना पड़ा। शिवजी इससे बहुत व्यथित हुये क्योंकि काशी उनको बहुत प्यारी थी। तमाम देवताओं को उन्होंने काशी भेजा ताकि वापस उन्हें मिल जाय लेकिन जो देवता यहां आते यहीं रह जाते। अखिर हारकर शिवजी ने श्रीविष्णु और लक्ष्मी जी को अपनी व्यथा कह सुनाई और उन्हें काशी वापस दिलाने का अनुरोध किया। लक्ष्मीजी के साथ श्रीविष्णु काशी में वरुणा व गंगा के संगम तट पर आये। यहां विष्णुजी के पैर पड़ने से इस जगह को श्री विष्णु चरणपादुका के नाम से भी जाना जाता है। यहीं पर स्नान करने के उपरान्त श्री विष्णु ने तैलेक्य व्यापनी मूर्ति को समाहित करते हुये एक काले रंग के पत्थर की अपनी आकृति की मूर्ति स्थापना की और उसका नाम आदि केशव रखा। उसके बाद ब्रह्मालोक में देवदास के पास गये और उसको शिवलोक भेजा और शिवजी को काशी नगरी वापस दिलायी।

अविमुक्त अमृतक्षेत्रेये अर्चनत्यादि केशवं ते मृतत्वं भजंत्यो सर्व दु:ख विवर्जितां,

अर्थात : अमृत स्वरूप अवमुक्त क्षेत्र काशी में जो भी हमारे आदि केशव रुप का पूजन करेगा वह सभी दु:खों से रहित होकर अमृत पद को प्राप्त होगा।

इतिहास…

स्व. झूमक महाराज के वंशज विनय कुमार त्रिपाठी के अनुसार काशी खंड के तीसरे भाग में इसकी चर्चा की गयी है। उनके अनुसार, ‘वर्ष ११९६ में सिराबुद्दीन ने अपनी सेना के साथ इस मंदिर पर आक्रमण किया और लूटपाट और क्षतिग्रस्त करके चला गया। बाद में १८वीं शती में सिंधिया के दीवान भालो जी ने इस मंदिर का निर्माण कार्य कराया।’ अठ्ठारहवीं शताब्दी में बंगाल की महारानी भवानी ने घाट का पक्का निर्माण कराया था। परन्तु कुछ वर्षो के पश्चात यह क्षतिग्रस्त हो गया जिसका पुन: निर्माण वर्ष १९०६ में ग्वालियर राज के दीवान नरसिंह राव शितोले ने कराया।

मंदिर एवम तीर्थ…

घाट पर आदि केशव के अतिरिक्त ज्ञान केशव, संगमेश्वर शिव चिन्ताहरण गणेश, पंचदेवता एवं एक अन्य शिव मंदिर स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि संगमेश्वर शिवलिंग की स्थापना स्वयं परमपिता ब्रह्मा जी ने की है। मत्यस्यपुराण के अनुसार इस घाट को काशी के प्रमुख पांच घाट तीर्थो में स्थान प्राप्त है एवं काशी का प्रथम विष्णु तीर्थ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता है कि श्रीविष्णु जब काशी में पधारे तो इसी गंगातट पर अपने पैर धोये। इस घाट के सम्मुख गंगा में विष्णु से सम्बन्धित पदोदक, अम्बरीश, महालक्ष्मी, चक्त्र, गदा, पद्म, आदित्यकेशव एवं श्वेतदीप तीथरें की स्थिति मानी गई है। लिंगपुराण एवं काशीखण्ड के अनुसार घाट के सम्मुख गंगा में स्नान, स्पर्श या जलग्रहण मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

महात्म…

घाट का महात्म गहड़वाल काल से ही रहा है, घाट के समीप ही गहड़वाल शासकों का किला था, इनके दानपत्रों में घाट पर मुण्डन संस्कार, नामकरण, उपनयन एवं अन्य संस्कारों के सम्पन्न होने का प्रमाण है। यहां भाद्र माह के शुक्ल द्वादशी घाट को वारूणी पर्व का मेला आयोजित होता है जिसमें विभिन्न सास्कृतिक कार्यक्त्रमों का आयोजन किया जाता है। काशी के पंचतीर्थी एवं पंचक्त्रोशी यात्री इस घाट पर स्नान एवं दर्शन के पश्चात आगे की यात्रा करते हैं जो मणिकर्णिका घाट पर जाकर समाप्त होता है।

परिचय…

घाट के ऊपरी भाग में एक व्यायामशाला भी है। वर्तमान में मुख्य घाट पक्का है किन्तु शहर के बाहर स्थित होने के कारण यहाँ दैनिक स्नानार्थियों की संख्या कम होती है। पर धार्मिक महात्म्य के कारण स्थानीय एवं पर्व विशेष पर स्नान करने वाले स्नानार्थियों का आगमन होता है। सन् १९८५ में राज्य सरकार के द्वारा घाट का मरम्मत कराया गया एवं वर्तमान में इसकी स्वच्छता को बनाये रखने के लिये सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं।

पंचगंगा घाट 

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