December 3, 2024

फिल्म की कहानी शुरू होती है, एक राजा और उसकी दो झगड़ालू पत्नियां दिलबहार और नवबहार से। इन दोनों के बीच झगड़ा तब और बढ़ जाता है जब एक फकीर के द्वारा की गई भविष्यवाणी को सुनती हैं, उसके अनुसार, राजा का उत्तराधिकारी को नवबहार जन्म देगी। अंदर जल चुकी दिलबहार बदला लेने के विचार से राज्य के प्रमुख मंत्री आदिल को अपने प्रेम जाल में फंसाना चाहती है, जिसपर आदिल उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। पहले से ही जली भुनी दिलबहार आपे से बाहर हो आदिल को कारागार में डलवा देती है और उसकी बेटी आलमआरा को देश निकाला दे देती है। आलमआरा को बंजारे पालते हैं। युवा होने पर आलमआरा महल में वापस लौटती है और राजकुमार से प्यार करने लगती है। अंत में दिलबहार को उसके किए की सजा मिलती है, राजकुमार और आलमआरा की शादी होती है और आदिल की रिहाई।

परिचय…

इस फिल्म की कहानी सुनी·सुनाई और देखी हुई सी जान पड़ती है, मगर जब आप यह जानेंगे कि यह फिल्म ‘आलमआरा’ थी तो आप विस्मित हुए बिना रह नहीं पाएंगे। हां! वही आलमआरा, जो वर्ष १९३१ में बनी हिन्दी भाषा और भारत की पहली सवाक यानी बोलती फिल्म थी। एक राजकुमार और बंजारन लड़की की प्रेम कथा पर बनी, यह फिल्म जोसफ डेविड द्वारा लिखित एक पारसी नाटक पर आधारित थी। जोसफ डेविड ने बाद में ईरानी की फिल्म कम्पनी में लेखक का काम किया।

निर्माण…

इस फिल्म के निर्देशक अर्देशिर ईरानी हैं। उन्होंने सर्वप्रथम बार सिनेमा में ध्वनि के महत्व को समझा और अपनी फिल्म आलमआरा को और कई समकालीन सवाक फिल्मों से पहले पूरा किया। उन्होंने तरन ध्वनि प्रणाली का उपयोग किया, जो उस समय के लिए एक नई तकनीक थी। इसीलिए उन्होंने इसके महत्व को समझते हुए ध्वनि रिकॉर्डिंग विभाग को स्वंय संभाला था। फिल्म का छायांकन टनर एकल-प्रणाली कैमरे द्वारा किया गया था जो ध्वनि को सीधे फिल्म पर दर्ज करते थे। क्योंकि उस समय साउंडप्रूफ स्टूडियो उपलब्ध नहीं थे इसलिए दिन के शोरशराबे से बचने के लिए इसकी शूटिंग ज्यादातर रात में की गयी थी। शूटिंग के समय माइक्रोफ़ोन को अभिनेताओं के पास छिपा कर रखा जाता था।

महत्व…

फिल्म और इसका संगीत दोनों को ही व्यापक रूप से सफलता प्राप्त हुई, फिल्म का गीत “दे दे खुदा के नाम पर” जो भारतीय सिनेमा का भी पहला गीत था और इसे अभिनेता वज़ीर मोहम्मद खान ने गाया था, जिन्होने फिल्म में एक फकीर का चरित्र निभाया था, बहुत प्रसिद्ध हुआ। उस समय भारतीय फिल्मों में पार्श्व गायन शुरुआत नहीं हुई थी, इसलिए इस गीत को हारमोनियम और तबले के संगीत की संगत करा सजीव रिकॉर्ड किया गया था।

इस फिल्म ने भारतीय फिल्मों में फिल्मी संगीत की नींव भी रखी, फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने एक बार फिल्म की चर्चा करते हुए कहा था, “यह सिर्फ एक सवाक फिल्म नहीं थी बल्कि यह बोलने और गाने वाली फिल्म थी जिसमें बोलना कम और गाना अधिक था। इस फिल्म में कई गीत थे और इसने फिल्मों में गाने के द्वारा कहानी को कहे जाने या बढा़ये जाने की परम्परा का सूत्रपात किया।” अब तो आप समझ ही गए होंगे कि इस फिल्म का भारतीय फिल्म जगत में क्या महत्व है।

कार्यकारिणी…

निर्देशक : अर्देशिर ईरानी

लेखक : जोसेफ डेविड, मुंशी जहीर (उर्दू)

संगीतकार : फ़िरोज़शाह मिस्त्री, बहराम ईरानी

कलाकार : मास्टर विट्ठल, जुबैदा, पृथ्वीराज कपूर आदि।

विशेष…

आलम आरा का प्रथम प्रदर्शन मुंबई (तब बंबई) के मैजेस्टिक सिनेमा में १४ मार्च, १९३१ को हुआ था। यह पहली भारतीय सवाक फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई कि पुलिस को भीड़ पर नियंत्रण करने के लिए सहायता बुलानी पड़ी थी।

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