बात वर्ष १९०६ के जनवरी महीने की है, जब पं. मदनमोहन मालवीय जी ने वर्ष १९०४ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करने के संकल्प को, कुंभ मेले के त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आई जनता के बीच दोहराया। कहा जाता है कि उनके संकल्प को सुनकर, एक वृद्धा ने उसी समय मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। यह वही समय था, जब डॉ. एनी बेसेंट काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थीं और उसी दौरान दरभंगा के राजा महाराज ‘रामेश्वर सिंह’ भी काशी में ‘शारदा विद्यापीठ’ की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालयों की योजना परस्पर विरोधी थी, अत: मालवीय जी ने डॉ. बेसेंट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप ‘बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी’ की १५ दिसंबर, १९११ को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर ‘सुंदरलाल’ सचिव, महाराज ‘प्रभुनारायण सिंह’, ‘पं. मदनमोहन मालवीय’ एवं ‘डॉ. ऐनी बेसेंट’ सम्मानित सदस्य थीं।
इतिहास…
तत्कालीन शिक्षामंत्री ‘सर हारकोर्ट बटलर’ के प्रयास से वर्ष १९१५ में केंद्रीय विधानसभा से ‘हिन्दू यूनिवर्सिटी ऐक्ट’ पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल ‘लॉर्ड हार्डिंज’ ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। ४ जनवरी, १९१६ ई. वसंत पंचमी के दिन समारोह वाराणसी में गंगा तट के पश्चिम, रामनगर के समानांतर महाराज ‘प्रभुनारायण सिंह’ द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नरों, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने गवर्नर जनरल एवं वाइसराय का स्वागत और मालवीय जी से सहयोग करने के लिए हिस्सा लिया। अनेक शिक्षाविद, वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। गांधीजी भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे।
एनी बेसेंट द्वारा समर्पित ‘सेंट्रल हिन्दू कॉलेज’ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का विधिवत शिक्षण कार्य, १ अक्टूबर, १९१७ से आरंभ हुआ। वर्ष १९१६ ई. में आई बाढ़ के कारण स्थापना स्थल से हटकर कुछ पश्चिम में १,३०० एकड़ भूमि में निर्मित वर्तमान विश्वविद्यालय में सबसे पहले इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण हुआ और फिर आर्ट्स कॉलेज, साइंस कॉलेज आदि का निर्माण हुआ। वर्ष १९२१ ई. से विश्वविद्यालय की पूरी पढ़ाई ‘कमच्छा कॉलेज’ से स्थानांतरित होकर नए भवनों में होने लगी। इसका उद्घाटन १३ दिसंबर, १९२१ को ‘प्रिंस ऑफ़ वेल्स’ ने किया था। पंडित मदनमोहन मालवीय ने १०६ साल पहले वर्ष १९१६ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। तब इसका कुल मिलाकर एक ही कॉलेज था- सेंट्रल हिन्दू कॉलेज और आज यह विश्वविद्यालय १५ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। जिसमें १०० से भी अधिक विभाग हैं। इसे एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय होने का गौरव हासिल है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी के साथ ही सर्वपल्ली राधाकृष्णन और एनी बेसेंट ने भी विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और लंबे समय तक विश्वविद्यालय से जुड़े रहे।
परिसर…
परिसर के भीतर घूमने और देखने पर सहज ही लगता है कि हम किसी पुरानी रियासत में हैं। यहां विशालकाय भवन हैं, जिनमें कक्षाएँ चलती हैं। विज्ञान, कला, सामाजिक विज्ञान, इंजीनियरिंग, मेडिकल, फाइन आर्ट्स, संगीत, संस्कृत शोध विभाग आदि के लिए अलग-अलग इमारतें हैं। इसका परिसर खूब हरा-भरा है और लगता ही नहीं कि आप भीड़ भाड़ वाली वाराणसी नगरी में हैं। विश्वविद्यालय के पास निजी संचार प्रणाली, प्रेस, कंप्यूटर नेटवर्क, डेयरी, कृषि फार्म, कला व संस्कृति संग्रहालय और विशालकाय सेंट्रल लाइब्रेरी हैं। लाइब्रेरी में दस लाख से भी अधिक पुस्तकें, पत्रिकाएँ, शोध रिपोर्ट और ग्रंथ आदि हैं। विश्वविद्यालय का अपना हेलीपैड भी और साथ ही अपनी अलग सुरक्षा व्यवस्था भी है।
इसके प्रांगण में विश्वनाथ जी का एक विशाल मंदिर भी है। विशाल सर सुंदरलाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुकडिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी (स्वास्थ्य), पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक की शाखा, पर्वतारोहण केंद्र, एन.सी.सी. प्रशिक्षण केंद्र, “हिन्दू यूनिवर्सिटी” नामक डाकखाना एवं सेवायोजन कार्यालय भी विश्वविद्यालय तथा जनसामान्य की सुविधा के लिए इसमें संचालित हैं। इस विश्वविद्यालय के दो परिसर है। मुख्य परिसर (१,३०० एकड़) वाराणसी में स्थित है। मुख्य परिसर में ३ संस्थान, १४ संकाय और १२४ विभाग है। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्ज़ापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (२,७०० एकड़) पर स्थित है।
कोर्सेस और सुविधाएँ…
परिसर के भीतर १४ अलग-अलग संकाय हैं। इनमें एक महिला कॉलेज, इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस, कृषि संकाय भी शामिल हैं। विश्वविद्यालय में छह विषयों के एडवांस्ड स्टडी सेंटर भी हैं। ये विषय हैं बॉटनी, जुलोजी, मेटलर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स, भौतिकी और माइनिंग। विश्वविद्यालय में ४९ छात्रावास हैं, जिनमें से ३५ लड़कों के लिए और १४ लड़कियों के लिए हैं। कई नए छात्रावास भी निर्माणाधीन अवस्था में हैं। यहाँ के इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की तुलना आईआईटी से की जाती है। प्रवेश भी आईआईटी की परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर होता है। यह संस्थान १६ कोर्स उपलब्ध कराता है। इनमें कंप्यूटर इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रोनिक्स एप्लाएड फिजिक्स, एप्लाएड मैथेमेटिक्स और एप्लाएड केमिस्ट्री भी शामिल हैं। इंजीनियरिंग कोर्स काफ़ी लोकप्रिय हैं और यहाँ के मेटलर्जी व माइनिंग कोर्स तो देश में सबसे अच्छे माने जाते हैं। मेडिकल संस्थान में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। इसके अतिरिक्त तीन साल के कला व समाज विज्ञान बीए व बीएसएसी डिग्री कोर्स की पढ़ाई होती है। बीलिव एंड इनफॉर्मेशन साइंस, पत्रकारिता, एलएलबी, एमबीए के साथ ही कई और पेशेवर कोर्स भी कराए जाते हैं। स्नातकोत्तर स्तर पर भी कई कोर्स हैं। यह देश के उन गिने-चुने विश्वविद्यालयों में से है जहाँ आयुर्वेद के साथ-साथ आधुनिक चिकित्सा पद्धति की भी पढ़ाई होती है। इनके अतिरिक्त वेद, व्याकरण और सांख्य योग से संबंधित कोर्स भी कराए जाते हैं। विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर स्थित लंका का छोटा सा बाज़ार छात्र-छात्राओं की ज़रूरतें पूरी करता है। कुछ ही दूर गंगा तट पर अस्सी घाट स्थित है, जहाँ फाइन आर्ट्स के छात्र स्केच बनाते अकसर दिखते हैं। दिन भर परिसर के भीतर सेंट्रल लाइब्रेरी के पास विश्वनाथ मन्दिर छात्रों के जमावड़े का केंद्र रहता है।
पूर्व कुलपति…
सर सुंदरलाल, पं. मदनमोहन मालवीय, डॉ. एस. राधाकृष्णन (भूतपूर्व राष्ट्रपति), अमरनाथ झा, आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ. रामस्वामी अय्यर, डॉ. त्रिगुण सेन (भूतपूर्व केंद्रीय शिक्षामंत्री) जैसे मूर्धन्य व्यक्ति यहाँ के कुलपति रह चुके हैं।