November 23, 2024

set book Final 13.12

जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि भारत के स्वतन्त्रता संग्राम की यज्ञ वेदी पर समस्त देश ने एक साथ मिलकर अपने अपने रक्त से आहुति दी थी, मगर आज हम बिहार के आंदोलनकारियों के उस हिस्से की बात करने जा रहे हैं, जिन्हें मात्र कलमकार कह दरकिनार कर दिया गया, जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को दिशा देने के साथ ही साथ उसमें उसी तरह से बढ़ चढ़ कर भाग लिया था, जैसे बाकियों ने। एक बार इस विषय पर दिल्ली विवि के हिंदी विभाग की प्रोफेसर व हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय की निदेशक प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा था, ‘स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार प्रांत की भूमिका प्रशंसनीय रही है। इस क्रांति में बिहार के पत्रकारों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।’

प्रो. कुमुद शर्मा की बातों का ही आधार बनाया जाए तो, बाणभट्ट, विष्णु शर्मा, चाणक्य, अश्वघोष, आर्यभट्ट, वात्स्यायन, मंडन मिश्रा, विद्यापति, दाउद, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, जानकीवल्लभ शास्त्री, देवकीनंदन खत्री आदि जैसे महान साहित्यकारों की धरती बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी साहित्यकारों की लंबी परंपरा बिहार से रही है, जिनके साहित्य ने स्वतंत्रता संग्राम में जूझने के लिए जहां ताकत का संचार किया था, वहीं उन्होंने स्वयं भी आगे बढ़कर संग्राम का नेतृत्व किया था। इनके कुछ प्रमुख नामों में रामवृक्ष बेनीपुरी, आचार्य शिवपूजन सहाय, पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी, मुकुटधारी सिंह, युगल किशोर सिंह, केशव राम भट, जीवानंद शर्मा, मोहनलाल मेहता, रामधारी सिंह दिनकर आदि नाम प्रमुख रूप से लिए जा सकते हैं।

स्वतंत्रता संग्राम को आधार बनाकर इन महान विभूतियों को हम दो भागों में बांट सकते हैं, पहले वे साहित्यकार जिन्होंने सिर्फ अपनी लेखनी के माध्यम से इस संघर्ष में अपना योगदान दिया था। जैसे; केशव राम भट, मोहनलाल महतो वियोगी, रामधारी सिंह दिनकर आदि। दूसरी ओर, कुछ ऐसे साहित्यकार, जिन्होंने अपनी लेखनी के साथ ही साथ अपने आप को भी इस यज्ञ में झोंक दिया था। ऐसे साहित्यकारों में रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांकृत्यायन, मनोहर प्रसाद सिन्हा, रामदयाल पांडे, रघुवीर नारायण आदि प्रमुख हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं कि जिन कलमकारों ने सिर्फ अपने कलम को ही हथियार बनाया था, ऐसा नहीं कि उनकी राहें कठिन नहीं थी। उन्हें कुछ भी लिखने की स्वतंत्रता थी। नहीं! उन्होंने स्वयं को लगातार छुपाए रखा और जेल से भी कहीं अधिक तकलीफ को भोगा और अपनी कलम से आग बरसाते रहे। इस वजह से उन्हें कई मौकों पर अपने आपको छुपाना पड़ाता था, नाम बदलना पड़ा था, तथा कई बार तो छद्म नाम से लिखना भी पड़ा था।

(क) कलम के सिपाही…

१. मोहनलाल महतो ‘वियोगी’ : वियोगी जी को आज के युवा शायद ही जानते होंगे, मगर इनकी कृति, इनके महाकाव्य ‘आर्यावर्त’ को कौन नहीं जानता, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अतिविशिष्ट भूमिका निभाई थी।

२. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ : वैसे तो दिनकर जी के बारे में कुछ लिखना सूरज को दिया दिखाने के समान है, फिर भी हम यहां बताते चलें कि वर्ष १९२८ से वर्ष १९४२ तक दिनकर जी की अनेक क्रांतिकारी व राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत कविताएं निकली थीं, जिन्होंने भारत वासियों को झंकृत करने के साथ ही साथ अपने सहयोगी कवियों को भी राष्ट्रप्रेम के लिए प्रेरित किया, उनमें भी अपने सामना असाधारण साहस प्रदान किया। इनमें प्राण भंग, हिमालय, दिल, हाहाकार तथा आग की भीख आदि उल्लेखनीय हैं। दिनकर जी के काल में देवव्रत शास्त्री और जगन्नाथ मिश्र दो ऐसे कलाकार थे, सीधी तरह जुड़े थे और अपने लेखों से राष्ट्रीय चेतना को बल प्रदान कर रहे थे।

३. आचार्य शिवपूजन सहाय : आचार्यजी ने साहित्य साधना व पत्रकारिता के द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की, जिसमें ‘विभूति’ नामक उनकी कहानी संग्रह काफी सार्थक सिद्ध हुई। इनके द्वारा लिखा गया आलेख ‘क्रांति का अमर संदेश’ संपूर्ण रूप से स्वाधीनता आंदोलन पर ही केंद्रित है। इनके द्वारा रचित दो और आलेख ‘स्वतंत्रता होने से पहले’ तथा ‘देश का ध्यान भी’ काफी सराहनीय है, जो आज के परिपेक्ष में भी महत्वपूर्ण है।

४. पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी : पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी के ‘भारत की वर्तमान दशा’ तथा ‘स्वदेशी आंदोलन’ जैसी पुस्तकों ने आजादी के परवानों में एक अदम्य उत्साह का संचार किया।

५. रायबहादुर राव रणविजय सिंह : वर्ष १९१५ में श्री सिंह की एक महत्वपूर्ण कृति ‘यूरोपीय महायुद्ध और भारत का कर्तव्य’ प्रकाशित हुई थी। अगर किसी को आज भी पढ़ने को मिल जाए तो, वह भली प्रकार यह जान पाएगा कि आजादी की कीमत पर पाई गई थी।

६. राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह : हिंदी के सुप्रसिद्ध गद्य लेखक राजा राधिका रमन प्रसाद सिंह जी ने स्वाधीनता संग्राम को केंद्र में रखकर पुस्तक की रचना की है। इसके पीछे वर्ष १९३८ में प्रकाशित उनकी कथाकृति ‘गांधी टोपी’ का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, जो स्वाधीनता संग्राम के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है।

७. श्री गोपाल शास्त्री : सारण जिले के जगन्नाथ पुर निवासी गोपाल शास्त्री एक अल्पज्ञात सुकवि थे। इन्होंने भी स्वाधीनता का भाव जगाने वाली कविताएं लिखी। इन की प्रसिद्ध पुस्तकें हैं, राष्ट्रभाषा भूषण, राष्ट्रधर्मप्रदेशीका, हरिजन समृद्धि आदि।

८. गोपाल सिंह नेपाली : बेतिया में जन्में श्री नेपाली का मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह था। वैसे तो उनकी प्रसिद्धि बंबइया फिल्मों के लिए है, मगर उन्होंने भी देश भक्ति पर अनेक कविताएं लिखी हैं। जिनमें से एक के कुछ अंश हम उदाहरणार्थ यहां दे रहे हैं…

घोर अंधकार हो,

चल रही बयार हो,

आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं

यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

(ख) क्रांतिकारी कलमकार…

१. रामवृक्ष बेनीपुरी : हिन्दी साहित्य के महान साहित्यकार श्री रामवृक्ष बेनीपुरी जी की रचनाएं आम तौर पर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के लिए ही थीं, जो उन्हें भी प्रेरित करती थीं। बेनीपुरी जी के उपन्यास ‘पतितों के देश में’, ‘कैदी की पत्नी’ एवं ‘लाल तारा शब्दचित्र’ काफी उल्लेखनीय हैं। बेनीपुरी जी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई वर्षों तक कारावास में रहे फिर भी इस कलम के सिपाही ने साहित्य सृजन कर समाज को प्रकाशमान किया।

२. मुकुटधारी सिंह : मुकुटधारी सिंह का जन्म भोजपुर के भदवर में हुआ था, मगर राष्ट्रसेवा का क्षेत्र झरिया रहा। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए पटना विश्वविद्यालय से मास्टर की पढ़ाई छोड़ दी, तथा वर्ष १९३० से वर्ष १९४५ तक मोतिहारी, क्षेत्र, पटना सिटी कैंप, हजारीबाग और गया जेल में रहे। वे उस समय के प्रसिद्ध पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। भारतीय पत्रकारिता का इतिहास नामक पुस्तक में इनका नाम झरिया से प्रकाशित होने वाले युगान्तर समाचार पत्र के स्वामी के रूप में उल्लेखित है। देवव्रत शास्त्री के साथ वे साप्ताहिक ‘नवशक्ति’ के प्रकाशन में शामिल थे। वह दैनिक राष्ट्रवाणी और नवरात्र के मुख्य संपादक थे। वर्ष १९४० से वर्ष १९४५ तक झरिया, धनबाद से ‘युगांतर’ समाचार पत्र का सफलतापूर्वक संपादन किया। अंग्रेजों के प्रेस सेंसरशिप कानूनों के कारण और भारतीय सुरक्षा कानूनों के कारण उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। मुकुटधारी सिंह का जंग-ए-आजादी में अतुलनीय योगदान था। वर्ष १९३७ में डा. राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें एक सुनियोजित कार्यक्रम के साथ झरिया भेजा।

३. रामदयाल पाण्डे : कविवर राम दयाल पांडेय राष्ट्रभाव के महान कवि थे। उन्होंने साहित्य को लिखा हीं नहीं, बल्कि उसे जिया भी था। कविताओं को लिखते और फिर उसे अपने जीवन में इस प्रकार उतारते कि वे स्वयं कविता बन जाते। वे आदर्श कवि, विद्वान संपादक होने के साथ ही साथ स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका को भी बखूबी निभाया है। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी को मिलने वाले पेंशन को मातृ-सेवा मान कर कभी भी उसका मूल्य नहीं लिया। साहित्य में उनके जैसा आदर्श व्यक्तित्व मिल पाना बेहद कठिन है।

४. रघुवीर नारायण : बनेली स्टेट चंपानगर ड्योढ़ी के मंत्री रहे कविवर बाबू रघुवीर नारायण जी ने खड़ी बोली और भोजपुरी दोनों में काव्य रचना की है, जिसमें देश भक्ति की उदास भावना भी है। इन की सबसे प्रसिद्ध कविता बटोहिया है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य से स्वदेशभक्ति को परिपुष्ट किया है। भोजपुरी में उनकी दूसरी देश भक्ति गीत है, भारत- भवानी जो प्राय राष्ट्रीय सभाओं में वंदे मातरम की भांति गाया जाता है। इस संबंध में वयोवृद्ध आंचलिक उपन्यासकार व कथाकार श्री विश्वनाथ दास देहाती जी की माने तो उस समय उस क्षेत्र के बच्चे बच्चे की जुबान पर यह कविता थी, ग्रहणी भी गृह कार्य करते वक्त इस कविता को गुनगुनाया करती थी। इससे हमें स्पष्ट पता लगता है कि इस कविता की कितनी महत्ता है।

५. डॉ. राजेंद्र प्रसाद : अब बात करते हैं, बिहार के लाल व भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी के बारे में, जिनका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में पदार्पण एक वक़ील के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करते ही हुआ था। चम्पारण में गान्धीजी ने एक तथ्य अन्वेषण समूह भेजे जाते समय उनसे अपने स्वयं सेवकों के साथ आने का अनुरोध किया था। गाँधीजी ने जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की थी तो उन्होंने अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद, जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में दाखिल करवाया था। उन्होंने ‘सर्चलाईट’ और ‘देश’ जैसी पत्रिकाओं में इस विषय पर बहुत से लेख लिखे थे और इन अखबारों के लिए अक्सर वे धन जुटाने का काम भी करते थे। 

राजेन्द्र बाबू ने अपनी आत्मकथा के अतिरिक्त कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें बापू के कदमों में बाबू, इण्डिया डिवाइडेड, सत्याग्रह ऐट चम्पारण, गान्धीजी की देन, भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

६. भवानी दयाल सन्यासी : भवानी दयाल सन्यासी का जन्म दक्षिण अफ्रीका के गौतेंग अंतर्गत जरमिस्टन में हुआ था। परंतु उनका लगाव अपने पूर्वजों के गांव जीवन पर्यंत लगा रहा। वे अक्सर रोहतास जिला अंतर्गत बहुवारा अपने गांव आते रहे। किशोरावस्था में ही संन्यासी ने अपने गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय पाठशाला की नींव रख दी थी। बाद में उन्होंने एक वैदिक पाठशाला भी खोली। फिर गांव में ही उन्होंने खरदूषण नाम की एक और पाठशाला भी शुरू की। यहां बच्चों को पढ़ाने के साथ संगीत की शिक्षा दी जाती थी और किसानों को खेती संबंधी नई जानकारियां भी। जब उन्होंने खरदूषण पाठशाला की नींव रखी तो उसका उद्घाटन करने डॉ राजेंद्र प्रसाद और सरोजनी नायडू जैसे दिग्गज उनके गांव बैलगाड़ी से यात्रा कर पहुंचे थे। 

भारत में जब उनकी गतिविधियां बढ़ीं तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वे हजारीबाग जेल में रहे। वहां उन्होंने ‘कारागार’ नाम से पत्रिका निकालनी शुरू की जिसके तीन अंक जेल से हस्तलिखित निकले। उसी में एक सत्याग्रह अंक भी था जिसे अंग्रेजी सरकार ने गायब करवा दिया था। संन्यासी राष्ट्र सेवक के साथ ही एक रचनाधर्मी भी थे और उन्होने कई अहम पुस्तकों की रचना की। उनकी चर्चित पुस्तकों में ‘दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का इतिहास’, ‘प्रवासी की आत्मकथा’, ‘दक्षिण अफ्रीका के मेरे अनुभव’, ‘हमारी कारावास की कहानी’, ‘वैदिक प्रार्थना’ आदि है। ‘प्रवासी की आत्मकथा’ की भूमिका डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने लिखी है तो ‘वैदिक प्रार्थना’ की भूमिका शिवपूजन सहाय ने। श्री सहाय ने तो यहां तक लिखा है कि उन्होंने देश के कई लोगों की लाइब्रेरियां देखी हैं, लेकिन संन्यासी की तरह किसी की निजी लाइब्रेरी नहीं थी।

इस काल के दूसरे समर्थ कवि थे मुकुट लाल मिश्र ‘रंग’, वैसे तो ये एक श्रृंगारी कवि थे परन्तु ये युगचेतना संपन्न भी थे। इन्होंने दुर्गा सप्तशती का दुर्गा विजय के नाम से पद अनुवाद किया है। इनके अतिरिक्त केशवराम भट्ट, युगल किशोर सिंह, जीवानंद शर्मा, पीर मोहम्मद मुनीस, मनोरंजन प्रसाद सिन्हा, कवि मुकुट लाल मिश्र, देवव्रत शास्त्री और जगन्नाथ मिश्र, कमला प्रसाद मिश्र ‘विप्र’, गणेश दत्त ‘किरण’ आदि जैसे बिहारी कलमकार थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को जगाने के साथ ही साथ हिन्दी, भोजपुरी और संस्कृत भाषा का भी विकास किया।

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

ग्राम : मांगोडेहरी, डाक : खीरी

जिला : बक्सर (बिहार)

पिन कोड: ८०२१२८

मोबाइल : ७७३९५९७९६९

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