बॉलीवुड के इतिहास में यह पहला मौका नहीं है, जब बायकॉट का ट्रेंड चला हो, मगर बीते आठ महीने में जो हुआ है वह शायद बॉलीवुड के इतिहास में पहले कभी भी नहीं हुआ। इन आठ महीनों में उन्तीस फिल्में रिलीज हुई हैं, जिनमें से छब्बीस फिल्में फ्लॉप हो गई हैं। आप जानते हैं क्यूं? जी हां! सही पहचाना आपने, फिल्म आते ही बॉलीवुड बायकॉट का ट्रेंड शुरू हो जाता है। इसी ट्रेंड के बीच में आ फंसी आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’। इसका असर बॉक्स ऑफिस पर साफ देखने को मिल रहा है। बॉलीवुड बायकॉट के ट्रेंड में अब बारी है, शाहरुख खान की ‘पठान’, सलमान खान की ‘टाइगर–३’ और करण जौहर की ‘ब्रह्मास्त्र’। अब विचार करने वाली बात यह है कि बायकॉट कल्चर कहां से आया और क्यों लोग बॉलीवुड फिल्मों को बायकॉट कर रहे हैं? यह विचार करने वाली बात है, क्योंकि बॉलीवुड फिल्में हर साल १.३९ लाख करोड़ रुपये कमाती हैं।
बॉलीवुड के बायकॉट की शुरुआत…
बायकॉट बॉलीवुड की शुरुआत, अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के फांसी लगाकर आत्महत्या के समय ही शुरू हो गई थी, जब सुशांत की मृत्यु से उनके प्रशंसकों के साथ रेसलर बबीता फोगाट भी काफी ज्यादा आहत हो गईं थीं। जिसके बाद बबीता ने १५ जून, २०२० को अपने ट्विटर अकाउंट से मशहूर फिल्म निर्देशक करण जौहर पर जमकर भड़ास निकाली थी। उन्होंने यहां तक कह दिया था, ”करण जौहर कौन है?? क्या गंदगी फैला रखी है इसने फिल्म इंडस्ट्री में। इसकी बपौती है क्या फिल्म इंडस्ट्री। इसको मुंहतोड़ जवाब क्यों नहीं देते? एक हमारी शेरनी बहन कंगना राणावत है जो इसको जवाब देती है। इस गैंग की सभी फिल्मों का बायकट करो।” वह इसके बाद भी नहीं रुकीं, उन्होंने आगे फिर लिखा, “अब समय आ गया है फिल्म इंडस्ट्री को चुनिंदा परिवारों की गिरफ्त से बाहर करवाया जाए। सभी देशवासियों को एकजुट होकर भाई भतीजावाद करने वालों की फिल्मों को देखना बंद किया जाए। फिर पता नहीं कितने छोटे शहरों से गए लोगों को अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।” वैसे भी साफ दिखाई पड़ रहा था कि सुशांत सिंह राजपूत फिल्म इंडस्ट्री का नया और धमाकेदार चेहरा बनकर उभरे थे, जो घड़ियालों की आंखों में चुभ रहे थे। यह हत्या, आत्महत्या या नैसर्गिक मृत्यु जो भी हो, जानता के ह्रदय को आघात कर गया।
दूसरा कारण आमिर खान स्वयं थे, उन्होंने एक बार नहीं कई बार हिंदू देवी देवताओं, उनकी प्रथा पर और इतना ही नहीं, सीधे सीधे देश पर अनर्गल बातें कह डाली। उन्होंने एक बार किरण राव (हिंदू पत्नी) के बयान के बारे में बताया, “जब मैं घर पर किरण के साथ बात करता हूं, तो वह कहती हैं, ‘क्या हमें भारत से बाहर जाना चाहिए?’ किरण का यह बयान एक बड़ा बयान है। उन्हें अपने बच्चे (आजाद) का डर है। वह इस बात से डरती हैं कि हमारे आसपास का माहौल कैसा होगा। वह रोजाना अखबार खोलने से डरती हैं। इससे संकेत मिलता है कि लोगों में बेचैनी की भावना बढ़ रही है, निराशा बढ़ रही है। आपको लगता है कि ऐसा क्यों हो रहा है, आप कम महसूस करते होंगे। लेकिन वह भाव मुझमें मौजूद है।” इस बयान को आमिर खान ने २०१५ में इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह “रामनाथ गोयनका पत्रकारिता” समारोह में कहा था। इस पर दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने आमिर खान से मीडिया के माध्यम से पूछा था कि क्या आपने अपनी पत्नी से पूछा था कि वो किस देश में जाना चाहती है।
इतना ही नहीं आमिर ने २०१२ में आई ‘सत्यमेव जयते’ टेलीविजन कार्यक्रम में कितनी ही बार हिंदू धर्म को बड़ी समझदारी से गलत साबित किया। इस बात से भी भारतीय जनता के हृदय पर एक आघात हुआ, तो एक बार फिर से उनका विरोध शुरू हुआ। इसी बीच यानी वर्ष २०१४ में उनकी एक फिल्म आई ‘pk’, इस फिल्म का भी दबी जबान में ‘बायकॉट पीके’ का हल्का ट्रेंड चला था, जिसपर आमिर खान ने बात करते हुए कहा था, “मुझे लगता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हर आदमी को अपना विचार सामने रखना का अधिकार है। अगर किसी को फिल्म नहीं पसंद आ रही है तो उसे नहीं देखनी चाहिए।” पर फिल्म चल निकली, वह बड़ी हिट साबित हुई।
एक बार जब करीना कपूर से नेपोटिज्म को लेकर एक पत्रकार ने सवाल किया, तब करीना ने जवाब दिया, ‘हम किसी को अपनी फिल्में देखने के लिए फोर्स नहीं करते हैं, लोग अपने मन से फिल्म देखने जाते हैं’। करीना के इस बयान के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा ट्रोल किया गया था। बयान के दो साल बाद जब करीना कपूर खान और आमिर खान की फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ रिलीज हुई, तो सोशल मीडिया पर एक बार फिर से करीना कपूर का दो साल पुराना बयान ट्रेंड करने लगा। यूजर्स लोगों को याद दिला रहे हैं कि करीना कपूर से 2 साल पहले अपने फैंस के लिए क्या कहा था।
अगर बात इतनी सी ही रहती तो कोई बात नहीं थी, ‘गैंग’ ने ‘लाल सिंह चड्डा’ फिल्म के बहिष्कार को दक्षिणपंथी समूह का कहकर स्वयं ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। इन्होंने वर्ष २०१५ में दिए गया आमिर खान के बयान को अपना आधार बनाया है। उन्होंने कहा कि आमिर खान तुर्की के राष्ट्रपति से मिलने गए थे, इसीलिए उन्हें हसिये पर रखा जा रहा है। वैसे तो यह बात पुरानी हो चुकी थी, और जनमानस में ट्रेंड भी नहीं कर रही थी, मगर खान समूह के ‘गैंग’ ने स्वयं ही इस बात की हवा दे दी। अब सवाल यह उठता है कि क्यूं जाना चाहिए था, तुर्की राष्ट्रपति से मिलने, जबकि वह भली भांति जानते थे कि तुर्की राष्ट्रपति रेसेप तईप एड्रोगन भारत के विरोधी हैं। इतना ही नहीं, यह उनकी पहली गलती नहीं थी। इससे पहले भी वे तुर्की के राष्ट्रपति से मिल चुके थे, जब वो अपनी फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ के लिए तुर्की में ही थे। ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी, जो भारत सरकार मदद नहीं कर रही थी और उन्हें बार बार तुर्की के राष्ट्रपति से मुलाकात करनी पड़ रही है। यह उसी तरह का आमिर खान का तुर्की प्रेम है, जैसा शाहरूख खान और सलमान खान का पाकिस्तान प्रेम है।
इस बार फिर से अनुपम खेर ने बायकॉट बॉलीवुड और बायकॉट लाल सिंह चड्ढा पर कहा की पास्ट में अगर आप कुछ बोलते हैं, तो आपको उसका खामियाजा आगे चलकर भुगतना ही पड़ेगा। वो कहावत तो सुनी ही होगी आपने, ”धनुष से निकला तीर और मुंह से निकाला शब्द कभी वापस नहीं लिए जा सकते हैं। लोगों को फिल्म अच्छी लगती है या बुरी, यह लोग खुद डिसाइड करते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “कश्मीर फाइल्स का भी कुछ लोगों ने बायकॉट करने की कोशिश की थी, लेकिन सभी ने देखा कि यह फिल्म सबसे ज्यादा चली। लोगों ने इसे बहुत पसंद किया है।”
शाहरुख खान जितना अपने फिल्मों के लिए नहीं जाने जाते, उससे कहीं ज्यादा वह अपने बड़बोल के लिए जाने जाते हैं। इसी वजह से कई बार वह विवादों में आ चुके हैं। शाहरुख ने एक विदेशी मैगजीन को एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें उन्होंने अमेरिका में ९/११ को हुए हमले के बाद कहा था कि पूरी दुनिया के साथ ही साथ भारत में भी असहिष्णुता बढ़ी है। जिसको लेकर काफी विवाद हुआ था। उन्होंने कहा, ‘उन्हें मुसलमान होने के नाते शक की नजर से देखा जाता है। ऐसा कई बार हुआ है कि मुझ पर ये आरोप लगाए गए मैं अपने देश की बजाए पड़ोसी देश के साथ वफादारी रखता हूं।’ पता नहीं, शाहरुख़ ने किस मकसद और क्यूं इस तरह की बात कही। इसका जवाब तो शाहरुख ही बेहतर दे सकते हैं और शायद उन्हें आने वाले वक्त में देना भी पड़ेगा। लेकिन इस बीच शाहरुख के दीवाने पाकिस्तान ने जबरदस्ती इस मामले में अपनी टांग अड़ा दी। आतंकी हाफिज सईद ने कह दिया कि शाहरुख अगर भारत में सुरक्षित नहीं है तो पकिस्तान आकर बस जाए यहां इज्जत मिलेगी। लेकिन इससे भी बढ़कर पकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मालिक निकले जिन्होंने भारत सरकार को ही नसीहत दे डाली।वैसे पकिस्तान की तरफ से ऐसी हरकतों की बात तो समझ में आती है लेकिन शाहरुख के इंटरव्यू के बाद सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या सचमुच शाहरुख को अपनी सुरक्षा और बच्चों को लेकर कोई परेशानी है। क्या सुरक्षा के नाम पर अमेरिकी एयरपोर्ट पर रोके गए शाहरुख़ को अब भारत में भी अपनी बेइज्जती महसूस होती है। यकीनन इन सवालों का जवाब अब शाहरुख़ को ही देना है, क्योंकि सभी ने देखा है कि पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों के आईपीएल में खेलने पर प्रतिबंध के बाद उन्होंने भारत सरकार और बीसीसीआई का कैसा विरोध किया था।
पाकिस्तान के प्रति प्रेम सिर्फ शाहरूख खान का ही नहीं छलकता, उनके साथी कलाकार सलमान खान को भी पाकिस्तानी कलाकारों में ही अधिक काबिलियत दिखती है। दरअसल बात यह थी कि सलमान खान ने उरी अटैक के बाद पाकिस्तानी कलाकारों पर लगे बैन को लेकर अपनी सोच जाहिर की थी। सलमान ने उस वक्त पाकिस्तानी कलाकारों का भारत में काम करने को लेकर समर्थन किया था। अपने इस बयान के कारण वह सोशल मीडिया पर लोगों के निशाने पर आ गए थे। वहीं नाना पाटेकर ने बिफरते हुए कहा था, “भाईजान की बातों पर ध्यान न दें। पाकिस्तानी कलाकार बाद में, पहले मेरा देश। कलाकार देश के सामने खटमल की तरह हैं। सबसे बड़े हीरो हमारे कौन हैं? हमारे जो जवान हैं, उनसे बड़े हीरो और कोई नहीं हो सकते। हमारे असल हीरो हमारे जवान हैं और हम बहुत ही नकली लोग हैं।” सलमान खान के अलावा करण जौहर ने भी पाकिस्तानी कलाकारों का समर्थन किया था। इस बात पर रिएक्शन देते हुए अजय देवगन ने कहा था, “यह बहुत ही उदास करने वाला है। आप को राष्ट्र के साथ खड़े होने की आवश्यकता है।”
इस लिस्ट में अगर हम बॉलीवुड के जाने-माने स्टार नसीरुद्दीन शाह का नाम रखें तो यह बेमानी होगी। उन्हें तो सर्वप्रथम स्थान दिया जाना चहिए। वैसे तो वे आए दिन अपनी उल्टी सीधी बातों से जनता का पर्दे के बाहर भी मनोरंजन करते ही रहते हैं, मगर एक बार उन्होंने बुलंदशहर में हुई हिंसा के बाद कहा था, “भारत में रहने से डर लगता है।” तो दूसरी तरफ उनकी दूसरी पत्नी रत्ना शाह पाठक करवा चौथ व्रत पर बयान देती हैं, “मैं पागल हूं कि मैं यह व्रत रखूंगी। बड़ी हैरानी होती है कि पढ़े लिखे लोग ऐसा करते हैं।” अब विचार करने की बात यह है कि क्या व्रत करने वाले पढ़े लिखे लोग सच में पागल हैं या रत्ना हिंदू धर्म का मजाक बनाकर अपना प्रचार कर रही हैं? अब एक बार फिर से आते हैं बॉलिवुड बायकॉट पर, आलिया भट्ट की अपकमिंग फिल्म ब्रह्मास्त्र अगले महीने रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म के रिलीज होने से पूर्व ही ब्रह्मास्त्र का सोशल मीडिया पर बहिष्कार होना शुरू हो गया है। आलिया भट्ट ने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर आप मुझे पसंद नहीं करते हैं तो मेरी फिल्में मत देखो मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती हूं। आलिया भट्ट के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर आलिया भट्ट और उनकी फिल्म दोनों को ट्रोल किया जा रहा है। कुछ यूजर्स तो मीम्स भी शेयर कर रहे हैं।
बॉलीवुड फिल्मों के बायकॉट किए जाने के कारण…
१. दक्षिण भारत के फिल्म चार से पांच साल के लंबे रिसर्च के बाद बनाए जाते हैं, जबकि बॉलीवुड तीस चालीस दिन में बिना किसी ताम झाम के स्टार पवार को ही फिल्म समझता है और दर्शकों के सामने कचरा परोसता है। कुछेक फिल्मों को छोड़कर।
२. दक्षिण भारत के कलाकार आदि दर्शक को भगवान मानता है, जैसे; अल्लू अर्जुन ने अपनी फिल्म पुष्पा हिट होने के बाद हाथ जोड़कर जनता को धन्यवाद दिया था। और दूसरी तरफ बॉलीवुड के कलाकार दर्शकों से स्वयं को किंग, बादशाह, भाई, दबंग आदि कहलाना पसंद करते हैं। और दर्शक को घटिया कहना उनकी महानता है।
३. दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री हर एक फिल्म में कुछ नया दिखाना चाहती है, जबकि बॉलीवुड में एक ही कहानी को, स्टार पवार के बल पर घसीटते रहने का रिवाज है।
४. दक्षिण भारत की फिल्मों में बड़े से बड़ा हीरो, निर्देशक के शिष्य की तरह होते हैं, जबकि बॉलीवुड में बड़े अभिनेताओं की दादागिरी चलाती है।
५. दक्षिण भारत की फिल्मों में अगर दो या दो से अधिक हीरो हों तो पर्दे पर ज्यादा नजर आने के लिए आपस में कोई तनाव नहीं होता। ताजा उदाहरण RRR है। जबकि बॉलीवुड अभिनेता अपने सीन को लेकर इतने असुरक्षित होते हैं कि स्क्रिप्ट को ही घटिया करार देकर फिल्म को लटकाए रखते हैं।
६. दक्षिण भारत की फिल्मों में बड़े हीरो की फीस से कहीं ज्यादा फिल्म मेकिंग पर पैसा खर्च होता है, लेकिन बॉलीवुड में फिल्म पचास करोड़ और हीरो की फीस सौ करोड़ से अधिक होती है।
७. दक्षिण भारत की फिल्मों का निर्माण स्पेशलिस्ट निर्देशक द्वारा बनाया जाता है जबकि बॉलीवुड में बड़ा हीरो ही स्वयं ही निर्देशक बन जाता है।
८. नेपोटिज्म दोनों जगह है, मगर दक्षिण भारत के फिल्म इंडस्ट्री में मेहनत को प्राथिमकता मिलती है, जबकि बॉलीवुड में सिर्फ पैसे, चाटुकारिता और कुछ विशेष के आधार पर फिल्मों में काम दी जाती है।
९. दक्षिण भारत के फिल्मों की कहानियां असली कहानीकार लिखते हैं, जबकि यहां कहानी चुराई हुई, खरीदी हुई, और बदली हुई होती है। तथा कभी कभी तो डायलॉग और शिचुवेसन को हीरो अपने अनुसार बदल देता है, जिससे कहानी की आत्मा ही बदल जाती है।
९. दक्षिण भारत की फिल्मों में भारतीय संस्कृति और देश को महान दिखाया जाता है, जैसे; आरआरआर। जबकि बॉलीवुड में उसी संस्कृति और देश का मजाक बनाया जाता है, जैसे; pk और लाल सिंह चड्ढा।
१०. बॉलीवुड आज या कल, जाने कब से सिर्फ रीमेक फिल्में ही बनाता जा रहा है अर्थात सौ में से अस्सी फिल्मों में कहानी, गाने, परिस्थितियां, हास्य या पूरी फिल्म ही रीमेक होती हैं, जबकि दक्षिण भारत की फिल्में अपने ओरिजनल कंटेंट के लिए जाने जाते हैं।
बॉलीवुड फिल्मों पर लॉबी का कब्जा