November 24, 2024

दौड़ धूप भरा दिन रहा…

विषय :- प्रवासी साहित्य : स्वरूप एवं अवधारणा

काफी कुछ लिख डाला, एक जगह थोड़ा अटक गया और साथ ही थोड़ी इच्छा भी थी, गुरुजनों कि राय ली जाए। फ़ोन लगया… श्री रामेश्वर प्रसाद वर्मा जी को, उन्होने कहा विषय गंभीर है मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता, “हां एक काम करो, तुम दीपक राय से मिलो शायद बक्सर मे एक वही हैं जो इस विषय पर तुम्हारी मदद कर सकतें हैं। उन्होने अपने यहां पुस्तकालय बना रखा है।
भागा भागा दीपक राय जी के यहां गया चरित्रबन मे….
हाय.. वो घर पर नहीं थे, नंबर मिला फ़ोन क़ा..बात हुई, बोले शाम को आप आइए!

टांय टांय फ़ुस्स…

सोचा यहां जब आया हूं तो क्यूं ना उमेश पाठक जी से ही मिल लू! ! ! ?
फोन लगाया….पहली बार , दूसरी बार मे बात हुई, बोले अरे अश्विनी जी बोलिए कैसे याद किया ?
हम तो आप के घर के नजदीक मे हैं सोचा आप से मिल लें, कहाँ हैं आप ?
अभी तो विद्यालय मे हैं जी !
बस हो गई बात …यहां भी वही…

रोड पर आए तो सोचा! ! ! कितने दिनो से रमेश जी बुला रहे हैं, क्यूं ना आज मौका भी है और दस्तूर भी।
चले उनके यहां…
रमेश जी हैं …हां हैं ..आइए बैठिए ।
चलो अच्छा हुवा एक काम तो हुवा।
चाय, पानी, आदी की बात हुई। हमने मना कर दिया।

थोड़ी देर मे ही रमेश जी हाजीर…
हे भगवान ! ! आज दिन ही कुछ सह़ी नहीं है? ?

अभी बात शुरु हुई भी नहीं की, दो लोग भागे भागे आए ।
चलिए घाट पर जाना है।

वो लोग आ गए क्या ? ? ?
हां, संक्षिप्त जवाब ।
माफ करिएगा अश्विनी जी मुझे शमशान घाट जाना पड़ रहा है…एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गई है।

चल मन घर की ओर….

दिल बोला नहीं…विहान ज़ी से बात कर लो शायद वो मिल जाएं।
फोन लगाया…नहीं लगा।
घर जाना है, चल दिया घर के लिए।

अरे…बिहान ज़ी क़ा घर आ गया, क्या किया जाए?
चलते हैं…
बिहान ज़ी हैं ? कौन ?
अरे ! आइए आइए …उनके बड़े लड़के थे।
पिताजी तो नहीं हैं , कहीं निकले हैं ।

धत्त तेरे की …

फिर उन्होने फोन लगाया…लग गया दूसरी बार मे ही ।
बात हुई…
हां ज़ी अश्विनी ज़ी बोलिए…?
हम तो आप के घर पर हैं, सर!
अभी हम तो प्रीतम ज़ी के यहां पर हैं…आ जाइए, दस कदम की दूरी पर है ।

प्रीतम ज़ी के घर जाना हुवा।

यहां तो प्रीतम ज़ी, बिहान ज़ी, महेश ज़ी की बैठक पहले से ही लगी हुई है।
प्रणाम कर हम भी विराज गए।
पहले समाचार हुवा, फिर विषय पर चर्चा हुई।
जोरो की चर्चा….
अंत मे बस इतना ही निष्कर्ष निकला, थोड़ी बहूत जोड़ तोड़ , कांट छांट के बाद, जो तूमने लिखा है वही ठिक है।

चाय क़ा दौर चला…

कुछ परिचर्चा हुई , हंसी ठिठोली हुई।
और फिर ….माहौल गंभीर ।

प्रीतम ज़ी बोले, “अश्विनी ज़ी, आप के आने से पहले हम आप के विषय मे चर्चा कर रहे थे। आप ने शायद सुना हो बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना के बारे मे। महेश ज़ी बक्सर जिले के अध्यक्ष हैं और मैं महामंत्री, हम सब क़ा विचार था की इस समूह की कार्यकारीणी मे आप क़ो शामिल किया जाए, इस पर पहले भी चर्चा हो चुकी है।
आप अपने विचार से हमे अवगत कराएं ।”

मैं चुप था…अब तक, सुनता रहा । सोच रहा था…
क्या भगवान ? ? ?
आप धन्य हैं ! ! ! !

हां सर, क्यूँ नहीं? ? मैं हर्षित हूं , विस्मित हूं , प्रफुलित हूं। क्या कहूँ ? हां के सिवा, क्या कहूँ ।

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना इस साल 2018 मे अपने 100 साल पूरे कर रहा है। मैं उसके 100वें साल मे जुड़ने वाला पहला व्यक्ति हूं।
नाम जोड़ दिया गया, हस्ताक्षर भी हो गया।
100वें साल के उपलक्ष मे एक महाआयोजन कराना है, जो राजधानी की राजाज्ञा है ।

इसी बिच….
पुस्तक की बात आई,
बिहार – एक आईने की नजर से… के विमोचन की ।
उनलोगों ने कहा यह समय सर्वश्रेष्ठ है विमोचन के लिए, क्यूंकि इस समय जो पुस्तक विमोचित होता है राष्ट्रीय स्तर पर जाता है।

चर्चा खत्म…हम सब अपने अपने घर की ओर …

अब आप कहें…

मैं हैरान हूं , परेशान हूं या कुछ और हूं।
क्या हूं ? ? ? ? ?

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