१२ मई माँ के लिए…
माँ के लिए कोई स्पेशल दिन हो सकता है क्या ? ? ?
जैसे मदर्स डे… अथवा दिवस!
शायद ही हमने कभी इस शब्द को सुना हो, अरे शायद क्या… नहीं सुना कभी बचपन में।
वो समझती है तो बस इतना की..उसे आज भी उठना है सूरज से पहले और जुट जाना है अपनी दुनिया को रौशन करने।
आज इतने बरस के बाद जाना…
माँ के पास तो बस एक दिन है…
मैं तो बस यही जानता रहा…
मेरी माँ
अन्नपूर्णा है
वो धरा है
कात्यायनी है
मेरी लक्ष्मी वो
सरस्वती वो
गुरु भी वो
मेरी रक्षा हेतू
दुर्गा काली वो
नारायण से
बढ़कर
पालन करने वाली वो
आधुनिक मातृदिवस का अवकाश ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं तथा मातृत्व के लिए खास तौर पर पारिवारिक एवं उनके आपसी संबंधों को सम्मान देने के लिए आरम्भ किया गया था। यह दिवस अब दुनिया के हर कोने में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता हैं। यह छुट्टी अंततः इतनी व्यवसायिक बन गई कि इसकी संस्थापक, एना जार्विस, तथा कई लोग इसे एक “होलमार्क होलीडे”, अर्थात् एक प्रचुर वाणिज्यिक प्रयोजन के रूप में समझने लगे। एना ने जिस छुट्टी के निर्माण में सहयोग किया उसी का विरोध करते हुए इसे समाप्त करना चाहा… मगर सफल ना हो सकी वो। आज पितृदिवस की तरह माँ की ममता भी बाजार के हांथों की कठपुतली हो चुकी है…
आज १७ लाख करो़ड़ रुपए की बाजार बन चुकी है माँ की ममता जबकी घर के किसी कोने में पड़ी माँ का कोई मूल्य नहीं है आज…
माफ कीजिएगा गर किसी को Ashwini Rai
की बात नागवार गुजरी हो…
धन्यवाद !