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“पेट जितना भी भरा रहे, आशा कभी नहीं भरती। वह जीवों को कोई-न-कोई अप्राप्य, कुछ नहीं तो केवल रंगों की माया का इंद्रधनुष प्राप्त करने के मायावी दलदल में फँसा ही देती है।“ यह कथन छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार और महाप्राण के नाम से विख्यात श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी के हैं।

 

परिचय…

निराला की कीर्ति का आधार ‘सरोज-स्मृति’, ‘राम की शक्ति-पूजा’ और ‘कुकुरमुत्ता’ सरीखी लंबी कविताएँ हैं; जो उनके प्रसिद्ध गीतों और प्रयोगशील कवि-कर्म के साथ-साथ रची जाती रहीं। उन्होंने पर्याप्त कथा और कथेतर-लेखन भी किया। बतौर अनुवादक भी वह सक्रिय रहे। वह हिंदी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। वह मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति के पक्षधर हैं। वर्ष 1930 में प्रकाशित अपने कविता-संग्रह ‘परिमल’ की भूमिका में उन्होंने लिखा : ‘‘मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना है।’’

 

निराला का व्यक्तित्व घनघोर सिद्धांतवादी और साहसी था। वह सतत संघर्ष-पथ के पथिक थे। यह रास्ता उन्हें विक्षिप्तता तक भी ले गया। उन्होंने जीवन और रचना अनेक संस्तरों पर जिया, इसका ही निष्कर्ष है कि उनका रचना-संसार इतनी विविधता और समृद्धता लिए हुए है। हिंदी साहित्य संसार में उनके आक्रोश और विद्रोह, उनकी करुणा और प्रतिबद्धता की कई मिसालें और कहानियाँ प्रचलित हैं।

 

परिचय के आधार…

‘अनामिका’ (१९२३), ‘परिमल’ (१९३०), ‘गीतिका’ (१९३६), ‘तुलसीदास’ (१९३९), ‘कुकुरमुत्ता’ (१९४२), ‘अणिमा’ (१९४३), ‘बेला’ (१९४६), ‘नए पत्ते’ (१९४६), ‘अर्चना’ (१९५०), ‘आराधना’ (१९५३), ‘गीत कुंज’ (१९५४), ‘सांध्य काकली’ और ‘अपरा’ निराला की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीवी’ उनके प्रमुख कहानी-संग्रह और ‘कुल्ली भाट’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ उनके चर्चित उपन्यास हैं। ‘चाबुक’ शीर्षक से उनके निबंधों की एक पुस्तक भी प्रसिद्ध है। आइए निराला साहित्य में एक डुबकी लगाते हैं।

 

 

(क) ‘निराला’ कविता ( दुःख को देवता समझो)…

१. राम की शक्ति-पूजा

 

२. सरोज-स्मृति

 

३. कुकुरमुत्ता

 

४. तोड़ती पत्थर

 

५. बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु

 

६. सरोज-स्मृति (एन.सी. ई.आर.टी)

 

७. सच है

 

८. अट नहीं रही है

 

९. बादल राग (एनसीईआरटी)

 

१०. मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा?

 

११. जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ

 

१२. राजे ने अपनी रखवाली की

 

१३. बापू के प्रति

 

१४. विनय

 

१५. जुही की कली

 

१६. रानी और कानी

 

१७. प्रेम-संगीत

 

१८. गर्म पकौड़ी

 

१९. उक्ति

 

२०. तुलसीदास

 

२१. मौन

 

२२. संध्या-सुंदरी

 

२३. बादल-राग

 

२४. हिंदी के सुमनों के प्रति पत्र

 

२५. दग़ा की

 

२६. महगू महगा रहा

 

२७. दीन

 

२८. पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है

 

(ख) ‘निराला’ गीत (बिना इंद्रियों को जीते धर्माचरण निष्फल है)…

 

१. वर दे, वीणावादिनि वरदे!

 

२. मैं अकेला

 

३. उत्साह

 

४. बाहर मैं कर दिया गया हूँ

 

५. स्नेह-निर्झर बह गया है

 

६. सखि वसंत आया

 

७. छोड़ दो जीवन यों न मलो

 

८. दुखता रहता है अब जीवन

 

९. सुख का दिन डूबे डूब जाए

 

१०. काले-काले बादल छाए

 

११. भारति जय विजयकरे

 

१२. छलके छल के पैमाने क्या

 

१३. लिया-दिया तुमसे मेरा था

 

१४. मरा हूँ हज़ार मरण

 

१५. फूटे हैं आमों में बौर

 

१६. गीत गाने दो मुझे तो

 

१७. (प्रिय) यामिनी जागी

 

१८. भजन कर हरि के चरण मन

 

१९. अध्यात्म-फल

 

२०. नयनों के डोरे लाल गुलाल भरे

 

२१. लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

 

२२. चरण गहे थे मौन रहे थे

 

२३. अनमिल-अनमिल मिलते

 

२४. कौन तम के पार

 

२५. नर-जीवन के स्वार्थ सकल

 

(ग़) ‘निराला’ ग़ज़ल (जितने भी धर्म प्रचारित किए गए, सब अपनी व्यापकता तथा सहृदयता के बल पर फैले)…

 

१. बदलीं जो उनकी आँखें

 

(घ) ‘निराला’ पत्र (जो गिरना नहीं चाहता, उसे कोई गिरा नहीं सकता)…

 

१. निराला का पत्र जानकीवल्लभ शास्त्री के नाम

 

(ड.) निराला के आलोचनात्मक लेखन (पापों का फल तत्काल समझ में नहीं आता। उसका ज़हर अवस्था की तरह ठीक अपने समय पर चढ़ता है)….

 

१. हिंदी-साहित्य में उपन्यास

 

२. संस्कृत के प्रमुख नाटककार

 

(च) ‘निराला’ निबंध (मन, बुद्धि और अहंकार का लय प्रलय है)…

 

१. हमारे साहित्य का ध्येय

 

२. रूप और नारी

 

इतना कुछ लिखने के बाद निराला ने कहा, “पेट जितना भी भरा रहे, आशा कभी नहीं भरती। वह जीवों को कोई-न-कोई अप्राप्य, कुछ नहीं तो केवल रंगों की माया का इंद्रधनुष प्राप्त करने के मायावी दलदल में फँसा ही देती है।“ उन्होंने ऐसा क्यों कहा? और अगर कहा तो फिर आगे उन्हें यह कहने की क्या जरूरत थी, “साथ निवास करने वाले दुष्टों में जल तथा कमल के समान मित्रता का अभाव ही रहता है। सज्जनों के दूर रहने पर भी कुमुद और चंद्रमा के समान प्रेम होता है।“ ऐसी अनेक बातें हैं जो निराला ने कही हैं, इसके लिए आपको राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित निराला रचनावली, जो सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के सम्पूर्ण साहित्यिक कार्यों का संकलन है, जिसमें उनकी कविताएँ, उपन्यास, निबंध और कहानियाँ शामिल हैं। यह रचनावली आठ खंडों में प्रकाशित है और इसमें कवि की विस्तृत कृतियों जैसे अनामिका, परिमल, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, राम की शक्ति-पूजा, सरोज स्मृति, चतुरी चमार आदि शामिल हैं, को पढ़ना होगा।

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