११ और १३ मई, १९९८ को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर पांच परमाणु परीक्षण किये थे। इनमें ४५ किलोटन का एक फ्यूज़न परमाणु उपकरण शामिल था। इसे आमतौर पर हाइड्रोजन बम के नाम से जाना जाता है। ११ मई को हुए परमाणु परीक्षण में १५ किलोटन का विखंडन (फिशन) उपकरण और ०.२ किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था। इन परमाणु परीक्षण के बाद जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित प्रमुख देशों द्वारा भारत के खिलाफ विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगाये गए। आइए आज हम मई १९७४ में हुए स्माइलिंग बुद्धा नामक पहले परमाणु परीक्षण के बाद आयोजित दूसरे भारतीय परमाणु परीक्षण पोखरण-२ के बारे में विस्तार से जानें…
परीक्षण के लिए तैयारी…
पाकिस्तान की हथियार परीक्षण प्रयोगशालाओं के विपरीत, भारत पोखरण में अपनी गतिविधियों को छिपा सकने में असमर्थ था। जहां पाकिस्तान में उच्च ऊंचाई वाले ग्रेनाइट पहाड़ थे, उसके विपरीत यहाँ सिर्फ और सिर्फ झाड़ियाँ ही थीं और राजस्थान के रेगिस्तान में रेत के टीले जांच कर रहे उपग्रहों से ज्यादा कवर प्रदान नहीं कर सकते थे। यह बात भारतीय खुफिया एजेंसियों को भली भांति समझ थी कि अमेरिकी जासूसी उपग्रह इस बात के टोह लेने के लिए बेहद जागरूक हैं और अमेरिकी सीआईए वर्ष १९८५ के बाद से ही भारतीय टेस्ट की तैयारियों का पता लगाने की कोशिश कर रही थी। इसलिए, परीक्षण को भारत में पूर्ण गोपनीय रखा गया ताकि अन्य देशों द्वारा पता लगाने की संभावना से बचा जा सके। भारतीय सेना के कोर इंजीनियर्स की ५८वें इंजीनियर रेजिमेंट को बिना अमरीकी जासूसी उपग्रहों द्वारा नजर में आए परीक्षण साइटों को तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया। ५८वें इंजीनियर के कमांडर कर्नल गोपाल कौशिक ने परीक्षण की तैयारी की देखरेख की और अपने स्टाफ अधिकारियों को गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए सभी उपाय करने का आदेश दिया।
व्यापक योजना को वैज्ञानिकों, वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और वरिष्ठ नेताओं के एक बहुत छोटे समूह के द्वारा तैयार किया गया। जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि परीक्षण की तैयारी रहस्य बनी रहे और यहाँ तक की भारत सरकार के वरिष्ठ सदस्यों को भी पता नहीं था कि क्या हो रहा था। मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के निदेशक डॉ. अब्दुल कलाम और परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक डॉ. आर. चिदंबरम, इस परीक्षण की योजना के मुख्य समन्वयक (कोओरडीनेटर) थे।
विकास और परीक्षण टीम (मुख्य तकनीकी आपरेशन में शामिल कर्मी)…
१. परियोजना के मुख्य समन्वयक :
(क) डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (जो कालांतर में भारत के राष्ट्रपति हुए), प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के प्रमुख।
(ख) डॉ. आर. चिदंबरम, परमाणु ऊर्जा आयोग और परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष।
२. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) : डॉ. लालकृष्ण संथानम; निदेशक, टेस्ट साइट तैयारी।
३. अन्वेषण और अनुसंधान के लिए परमाणु खनिज निदेशालय : डॉ. जी.आर. दीक्षितुलू; वरिष्ठ अनुसंधान वैज्ञानिक B.S.O.I समूह, परमाणु सामग्री अधिग्रहण
४. भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) :
(क) डॉ. अनिल काकोडकर, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक।
(ख) डॉ. सतिंदर कुमार सिक्का, निदेशक; थर्मोन्यूक्लियर हथियार विकास।
(ग) डॉ. एम. एस. रामकुमार, परमाणु ईंधन और स्वचालन विनिर्माण समूह के निदेशक; निदेशक, परमाणु घटक विनिर्माण समीति।
(घ) डॉ. डी.डी. सूद, रेडियोकेमिस्ट्री और आइसोटोप ग्रुप के निदेशक; निदेशक, परमाणु सामग्री अधिग्रहण।
(ड.) डॉ. एस.के. गुप्ता, ठोस अवस्था भौतिकी और स्पेक्ट्रोस्कोपी समूह; निदेशक, डिवाइस डिजाइन एवं आकलन।
(च) डॉ. जी.गोविन्दराज, इलेक्ट्रॉनिक और इंस्ट्रूमेंटेशन ग्रुप के एसोसिएट निदेशक; निदेशक, क्षेत्र इंस्ट्रूमेंटेशन।
परमाणु बम और विस्फोट…
पांच परमाणु उपकरणों को ‘ऑपरेशन शक्ति’ के दौरान विस्फोट किया गया। सभी उपकरणों हथियार ग्रेड प्लूटोनियम थे, और जो इस प्रकार के थे :
शक्ति १ – एक थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस ४५ किलो टन उपज का, लेकिन इसे २०० किलो टन तक के लिए बनाया गया है।
शक्ति २ – एक प्लूटोनियम इम्प्लोज़न डिजाइन १५ किलो टन की उपज का जिसे एक एक बम या मिसाइल द्वारा एक वॉर-हेड के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है यह डिवाइस वर्ष १९७४ के मुस्कुराते बुद्ध (पोखरण-१) के परीक्षा में इस्तेमाल की गई डिवाइस का एक सुधार था जिसे परम सुपर कंप्यूटर पर सिमुलेशन का उपयोग पर विकसित किया गया था।
शक्ति ३ – एक प्रयोगात्मक लीनियर इम्प्लोज़न डिजाइन था जिसमें कि “गैर-हथियार ग्रेड” प्लूटोनियम जो की न्यूक्लियर फिशन के लिए आवश्यक सामग्री छोड़ सकता था, यह ०.३ किलो टन उपज का था।
शक्ति ४ – एक ०.५ किलो टन की प्रयोगात्मक डिवाइस।
शक्ति ५ – एक ०.२ किलो टन की प्रयोगात्मक डिवाइस।
इनके अलावा एक अतिरिक्त छठा डिवाइस (शक्ति ६) भी उपस्थित होने का अंदाज़ा लगाया गया पर उसे विस्फोट नहीं किया गया।
परीक्षण पर प्रतिक्रियाएं…
इस परीक्षण की सफलता पर जहां भारतीय जनता ने भरपूर प्रसन्नता थी वहीं दुनिया के दूसरे देशों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। एकमात्र इजरायल ही एक ऐसा देश था, जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक सख्त बयान जारी कर भारत की निंदा की और विश्व पटल पर यह वादा किया कि भारत पर प्रतिबंधों को भी लगाया जायेगा। अमेरिकी खुफिया एजेंसी समुदाय बेहद शर्मिंदा था क्योंकि वह परीक्षण के लिए तैयारी का पता लगाने में असफल हुआ। यह विफलता “दशक की एक गंभीर खुफिया विफलता” के रूप में गिनी जाती है।
कनाडा ने भारत के कार्य पर सख्त आलोचना की। भारत पर जापान द्वारा भी प्रतिबन्ध लगाए गए और जापान ने भारत पर मानवीय सहायता के लिए छोड़कर सभी नए ऋण और अनुदानों को रोक दिया। कुछ अन्य देशों ने भी भारत पर प्रतिबंध लगा दिए, मुख्य रूप से गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट क्रेडिट लाइनों और विदेशी सहायता के निलंबन के रूप में। हालांकि, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस ने भारत की निंदा से परहेज किया।
१२ मई को चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, “चीनी सरकार गंभीरता से भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण के बारे में चिंतित है,” और आगे कहा कि “परीक्षण वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्ति के लिए और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल नहीं हैं।” अगले दिन चीन के विदेश मंत्रालय के एक बयान ने स्पष्ट रूप से बताते हुए कहा कि “यह हैरानी की बात है और हम इसकी निंदा करेंगे।” और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से एकीकृत स्टैंड अपनाने और भारत के परमाणु हथियारों के विकास पर रोक की मांग की। चीन ने, चीनी खतरे का मुकाबला करने के लिए भारत के कहे तर्क को “पूरी तरह से अनुचित” कहकर खारिज कर दिया।
इस परीक्षण पर सबसे प्रबल और कड़ी प्रतिक्रिया भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने की थी। पाकिस्तान में परीक्षण के खिलाफ बहुत गुस्सा था। पाकिस्तान ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ को भड़काने के लिए भारत को दोष दिया। पाकिस्तान के तात्कालिक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कसम खाई कि उनका देश भारत को इसका उपयुक्त जबाब देगा। भारत के पहले दिन के परीक्षण के बाद, विदेश मंत्री गौहर अयूब खान ने संकेत दिया कि पाकिस्तान परमाणु परीक्षण करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान भारत की बराबरी के लिए तैयार है। हम में यह क्षमता है…..हम सभी क्षेत्रों में भारत के साथ संतुलन बनाए रखेंगे।” उन्होंने साक्षात्कार में कहा, “हम उपमहाद्वीप मे जारी अनियंत्रित हथियारों की दौड़ में कभी पीछे नहीं रहेंगे।”
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और विपक्ष के नेता बेनजीर भुट्टो द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तीव्र दबाव का सामना करना पड़ा था। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को अधिकृत किया और पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग (PAEC) ने कोडनेम ‘चगाई’ के तहत २८ मई १९९८ को ‘चगाई-१’ तथा ३० मई १९९८ को ‘चगाई-२’ परमाणु परीक्षण किए। चगाई और खरं परीक्षण स्थल पर भारत के अंतिम परीक्षण के पंद्रह दिनों बाद छह भूमिगत परमाणु परीक्षण आयोजित किए। परीक्षण का कुल प्रतिफल ४० कि. टन होने की सूचना दी गई थी।
पाकिस्तान के परीक्षण के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने समान प्रकार की निंदा की। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत के पोखरण-२ परीक्षण की प्रतिक्रिया के रूप में पाकिस्तान के परीक्षण की आलोचना में कहा कि “दो गलत कभी सही नहीं बना सकते हैं।” संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान ने अपनी प्रतिक्रिया पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर व्यक्त की। पाकिस्तान के विज्ञान समुदाय के अनुसार, भारतीय परमाणु परीक्षणों ने ही कोल्ड परीक्षणों के संचालन के १४ साल के बाद पाकिस्तान को परमाणु परीक्षण करने के लिए एक अवसर दिया।
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध…
परीक्षण के तुरंत बाद ही विदेशों से प्रतिक्रियाए शुरु हो गयी। ६ जून को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प ११७२ द्वारा भारत के परमाणु परीक्षण की निंदा की गयी। चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भारत पर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर और परमाणु शस्त्रागार को समाप्त करने के लिए दबाव डाला। भारत परमाणु हथियार रखने वाले देशों के समूह में शामिल होने के साथ एक नए एशियाई सामरिक ताकत विशेष रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्र में उभरा।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव…
कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का असर न्यूनतम रहा था। तकनीकी प्रगति सीमांत रही। अधिकांश राष्ट्रों ने भारत के खिलाफ निर्यात और आयात के सकल घरेलू उत्पाद पर प्रतिबंध नहीं लगाया। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए महत्वपूर्ण प्रतिबंध को भी कुछ समय बाद हटा लिया गया था। अधिकांश प्रतिबंधों पांच साल के भीतर हटा लिए गये थे।
विरासत…
भारत सरकार ने पांच परमाणु परीक्षण जो ११ मई १९९८ को किये थे, के उपलक्ष्य में आधिकारिक तौर पर भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में ११ मई को घोषित किया। इसे आधिकारिक तौर पर १९९८ में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा हस्ताक्षरित किया गया और दिन को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विभिन्न व्यक्तियों और उद्योगों को पुरस्कार देकर मनाया जाता है।
फिल्म…
पोखरण·२ पर एक हिंदी फिल्म भी बनाई गई थी, परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण। जिसका निर्देशन अभिषेक शर्मा ने किया है तथा मुख्य भूमिका में जॉन अब्राहम हैं। यह २५ मई, २०१८ को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी।
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