November 25, 2024

२४ फरवरी, २०२२ के १२:१५ पर तीसरे विश्वयुद्ध की आहट सुनाई देने लगी है। रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है, यूक्रेन की राजधानी में धमाकों की आवाज सुनाई देने लगी है।

क्या है पूरा मामला….?

कई दिनों से रूस और यूक्रेन के बीच जारी विवाद अपने चरम पर थे। कई दिनों से यूक्रेन की सीमाओं पर एक लाख पच्चीस हजार रूसी सेना के जवान खड़े थे। हमले के बाद अब स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि नाटो देशों और रूसी सेना के बीच कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है।
विवाद यह है कि यूक्रेन उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो का सदस्य देश बनना चाहता है और रूस इसका विरोध कर रहा है।

यूक्रेन के नाटो देश में शामिल होने की वजह सौ साल पुरानी है, जब अलग देश का अस्तित्व भी नहीं था। वर्ष १९१७ से पहले रूस और यूक्रेन रूसी साम्राज्य का हिस्सा थे। वर्ष १९१७ में रूसी क्रांति के बाद, यह साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन ने खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। हालांकि यूक्रेन मुश्किल से तीन साल तक स्वतंत्र रहा और वर्ष १९२० में यह सोवियत संघ में शामिल हो गया। जबकि यूक्रेन के निवासी हमेशा से खुद को स्वतंत्र देश मानते रहे थे। वर्ष १९९१ में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो यूक्रेन सहित १५ नए देशों का गठन हुआ। सही मायनों में यूक्रेन को आजादी वर्ष १९९१ में प्राप्त हुई। हालांकि, यूक्रेन शुरू से ही समझता रहा है कि वह रूस से कभी भी अपने दम पर मुकाबला नहीं कर सकता और इसलिए वह एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहता है जो उसकी आजादी को महफूज रख सके। अतः नाटो से बेहतर संगठन कोई और हो ही नहीं सकता।

विवाद का असली कारक…

आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि रूस और यूक्रेन के विवाद में अमेरिका की अहम भूमिका है। अमेरिका ने अपने ३,००० सैनिकों को यूक्रेन की मदद के लिए भेजा है और उनकी तरफ से यह आश्वासन दिया गया है कि वे यूक्रेन की मदद के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। सच्चाई यह है कि मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, यूक्रेन का इस्तेमाल सिर्फ अपनी छवि मजबूत करने के लिए कर रहे हैं। पिछले साल अमेरिका को अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी थी। इसके अलावा ईरान में अमेरिका कुछ हासिल नहीं कर पाया और तमाम प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर कोरिया लगातार मिसाइल परीक्षण भी कर रहा है। इन घटनाओं ने अमेरिका की सुपर पॉवर इमेज को नुकसान पहुंचाया है। यही वजह है कि जो बाइडेन यूक्रेन-रूस विवाद के साथ इसकी भरपाई करना चाहते हैं। अमेरिका के अलावा ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने भी यूक्रेन का समर्थन किया है। इन देशों का समर्थन कब तक चलेगा यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि यूरोपीय देश अपनी गैस की एक तिहाई जरूरत के लिए रूस पर निर्भर हैं। अब अगर रूस इस गैस की आपूर्ति बंद कर देता है तो इन देशों में भयानक पॉवर क्राइसिस होगा।

रूस की असमंजसता…

नाटो एक सैन्य समूह है जिसमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे ३० देश शामिल हैं। अब रूस के सामने चुनौती यह है कि उसके कुछ पड़ोसी देश पहले ही नाटो में शामिल हो चुके हैं। इनमें एस्टोनिया और लातविया जैसे देश हैं, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे। अब अगर यूक्रेन भी नाटो का हिस्सा बन गया तो रूस हर तरफ से अपने दुश्मन देशों से घिर जाएगा और अमेरिका जैसे देश उस पर हावी हो जाएंगे। अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता है और रूस भविष्य में उस पर हमला करता है तो समझौते के तहत इस समूह के सभी ३० देश इसे अपने खिलाफ हमला मानेंगे और यूक्रेन की सैन्य सहायता भी करेंगे। रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन ने एक बार कहा था, ‘यूक्रेन को खोना रूस के लिए एक शरीर से अपना सिर काट देने जैसा होगा।’ यही वजह है कि रूस नाटो में यूक्रेन के प्रवेश का विरोध कर रहा है। यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। जब वर्ष १९३९ से वर्ष १९४५ तक चले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस पर हमला किया गया तो यूक्रेन एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जहां से रूस ने अपनी सीमा की रक्षा की थी। अब अगर यूक्रेन नाटो देशों के साथ चला गया तो रूस की राजधानी मास्को, पश्चिम से सिर्फ ६४० किलोमीटर दूर होगी। फिलहाल यह दूरी अभी तकरीबन १६०० किलोमीटर है।

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