November 21, 2024

शिवाजी की राजमुद्रा संस्कृत में लिखी हुई एक अष्टकोणीय मुहर थी जिसका उपयोग वे अपने पत्रों एवं सैन्यसामग्री पर करते थे। उनके हजारों पत्र प्राप्त हैं जिन पर राजमुद्रा लगी हुई है। माना जाता है कि शिवाजी के पिता शाहजीराजे भोसले ने यह राजमुद्रा उन्हें तब प्रदान की थी जब शाहजी ने जीजाबाई और तरुण शिवाजी को पुणे की जागीर संभालने के लिए भेजा था। जिस सबसे पुराने पत्र पर यह राजमुद्रा लगी है वह वर्ष १६३९ का है। मुद्रा पर लिखा वाक्य निम्नवत है…

प्रतिपच्चंद्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्ववंदिता शाहसुनोः शिवस्यैषा मुद्रा भद्राय राजते।

(अर्थ : जिस प्रकार बाल चन्द्रमा प्रतिपद (धीरे-धीरे) बढ़ता जाता है और सारे विश्व द्वारा वन्दनीय होता है, उसी प्रकार शाहजी के पुत्र शिव की यह मुद्रा भी बढ़ती जाएगी।)

धार्मिक नीति…

शिवाजी एक धर्मपरायण हिन्दु शासक थे तथा वह धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। अपने अभियानों का आरम्भ वे प्रायः दशहरा के अवसर पर करते थे।

चरित्र…

शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज की शिक्षा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र की तरह उन्होंने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव नजर आता है। उसके बाद उन्होंने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसा कि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होंने अपना राज्याभिषेक करवाया, हालांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।

वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय कूटनीति से काम लिया था। लेकिन यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही। शिवाजी महाराज की “गनिमी कावा” नामक कूटनीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियता से और आदरसहित याद किया जाता है।

शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप।
शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥

 

संभाजी राजे 

मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले

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1 thought on “शिवाजी महाराज का आदर्श चरित्र

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