सूरज कुण्ड, काशी के गोदौलिया से नई सड़क की ओर जाने वाले रास्ते पर सनातन धर्म इंटर कालेज के बगल से अंदर जाने पर सूरज कुण्ड स्थित है। कुण्ड के समीप ही गोल चक्र में बना भगवान सूर्य का मंदिर हैं मान्यता है कि भगवान कृष्ण के आदेश पर साम्ब ने यहां सूर्य मंदिर स्थापित किया। साथ ही कुण्ड बनवाकर सूर्योपासना कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पाया था। कहा जाता है कि सूरज कुण्ड में स्नान करने से कुष्ठ रोगियों को छुटकारा मिल जाता है। कभी सुन्दरता व स्वच्छता की मिशाल रहा यह कुण्ड आज गंदगी के बीच है।
प्रधानता…
प्रथमतः तो शास्त्रों में उल्लेख है और फिर शोधों से भी यह स्पष्ट हो चुका है कि सूरज कुण्ड में सूर्य का प्रकाश सबसे अधिक तीव्रता के साथ आता है।
छठ पूजा…
कुंड के पास ही गोल चक्र में एक सूर्य मंदिर है। यहां पर हर रविवार को मेला लगता है, मगर छठ पूजा करने के लिए तो आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरह से यह देश का सबसे बेहतर स्थान है। यहां पर सूर्य की रोशनी में स्नान करने पर कुष्ठ रोग से भी राहत मिलती है।
वैज्ञानिक परिचय…
प्रो. सिंह के अनुसार, काशी का नाम कॉस्मॉस से पड़ा है। इसका मतलब है सूरज की ओर से आने वाली प्रकाश की किरणें। उन्होंने बताया कि सूर्य की ओर से आने वाली किरणों का सबसे अधिक प्रभाव काशी में इसी समय देखा जाता है। इस समय पराबैंगनी किरणें हानिकारक नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित होती हैं। इस सीजन में प्रकाश की किरणों का घनत्व बढ़ जाता है। यह शरीर के लिए लाभकारी है। यदि ये किरणें पानी से टकराकर हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं तो उनका प्रवाह शरीर में एनर्जी की तरह से होता है। यहां पर जल और सूर्य का मिलन होता है। अंजुल में जल लेकर सूर्य को देखते हैं तो उससे आंखों को लाभ पहुंचाने वाली किरणें ही मिलती।
इतिहास…
गहड़वाल वंश से पहले सूर्य की पूजा भारत में ऋग्यवैदिक काल से हो रही है। ऋग्वेद में सूर्य की पूजा मां के रूप में की जाती है। वहीं, ९वीं शताब्दी में भी छठ पूजा का छिटपुट उल्लेख मिलता है। मगर, काशीखंड के अनुसार बनारस के बाद छठ पूजा का चलन देश में बढ़ा। पानी में आधे कमर तक उतर कर आयुर्वेदिक पद्धति से, विज्ञान और व्रत का पालन करते हुए इस पूजा की विधिवत शुरुआत गहड़वाल वंश के राजाओं ने यहीं से किया। इसके बाद छठ पूजा आज तक जारी है।
1 thought on “सूरज कुण्ड, काशी”