जुलाई के महीने में कुछ अलग ही मज़ा आता था। स्कूल तो खुलकर अब पूरी तरह से समय घेर चुके थे। पढ़ाई न करने का प्रयास करना बेकार साबित हो रहे थे। इतनी पढ़ाई तो पूरे साल नहीं करनी होती तो ये जुलाई क्यों जी खा रहा है।

अनमने मन से स्कूल जाने से ज़्यादा मज़ा आता था दोस्तो के साथ अपने पेन बदलने में। अपने ३ पुराने पेन और ४ कौमिक्स पढ़ने को देने के बदले मिलता था महंगे पेन से लिखने का मौका। वो क्या है न, पिताजी पाईलट-पैन खरीदने नहीं देते थे और पाईलट-पैन से लिखाई एकदम सधी हुई आती थी। अपनी खूबसूरत हैंड-राईटिंग देख के कितना अच्छा लगता था कैसे बताएं…

और स्कूल से वापस लौट कर आने के समय में जो हंगामा किया करते थे। रास्ते में करौंदे के झाड़ों को झकझोर कर सारे करौंदे बटोर कर, कापी के दुब्बर में इकट्ठा करके घर लाने पर भी एक बड़ा काम करने जैसा फील आता था।

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