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एक पाति पत्नी के नाम

तुम जब नहीं होती…
ये हवाएं थम जाती हैं
ये जहां रुक जाती है
फूलों से खुश्बू रहती गायब
रौशनी मध्यम सी हो जाती हैं

ये तो सच है…
आज मैं जो हूँ
कब था वैसा
पता नहीं कब हूँ
तब जो था या अब वो हूँ

तुम जब चले गए
हम मजबूर हुए
जिंदगी के सारे रस काफूर हुए

तुमसे आज मैं…
एक बात कहता हूँ
गर कहो तो गुजारिश करता हूँ
एक बार फिर लौट आओ ना
एक बार फिर से चलते हैं
मोहब्बत की वादियों में
एक बार फिर से जानते हैं
इश्क़ को, उसे होने को
और दूर होने के दर्द को
आज और कल के फ़र्क़ को

इँतजार में आहत पति

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