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I. कविता का संक्षिप्त सार

 

‘उत्साह’ कविता बादलों को संबोधित एक आवाहन गीत है। कवि बादलों को दोहरी भूमिका में देखते हैं: वे एक तरफ विप्लव (क्रांति) और विनाश की शक्ति हैं, तो दूसरी तरफ नवजीवन और शीतलता प्रदान करने वाले हैं।

 

कवि बादलों से कहते हैं कि वे घनघोर गर्जना के साथ आकर संसार में जोश भर दें। बादलों की सुंदरता, जो काले घुँघराले बालों जैसी है, बच्चों की कल्पना की तरह अद्भुत है। कवि बादलों से अनुरोध करते हैं कि वे केवल बरसकर धरती को ठंडा न करें, बल्कि अपनी गर्जना से लोगों के मन में नए उत्साह और क्रांति की भावना भर दें, ताकि सामाजिक अन्याय और निराशा समाप्त हो।

 

कवि देखते हैं कि संसार गर्मी और निराशा से त्रस्त है। हर कोई जीवन के कष्टों से बेचैन और अनमना है। ऐसे में, कवि बादलों से प्रार्थना करते हैं कि वे अज्ञात दिशा से आकर मूसलाधार वर्षा करें, जिससे धरती को शीतलता मिले और निराशाग्रस्त लोगों को नवजीवन की प्रेरणा प्राप्त हो। इस प्रकार, यह कविता आशावाद और सामाजिक परिवर्तन का संदेश देती है।

 

 

II. विस्तृत व्याख्या (काव्यांशों के आधार पर)

 

 

काव्यांश १:

 

क्रांति का आह्वान

बादल गरजो!

घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

ललित ललित, काले घुंघराले,

बाल कल्पना के से पाले।

विद्युत छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले!

वज्र छिपा, नूतन कविता फिर भर दो

बादल गरजो!

 

 

व्याख्या: कवि बादल को संबोधित करते हुए तेज गर्जना करने का आह्वान करते हैं। वे बादल को ‘धाराधर’ (जल को धारण करने वाला) कहते हैं और उनसे पूरे आकाश को घेर लेने के लिए कहते हैं। कवि को बादल सुंदर, काले घुँघराले बालों जैसे लगते हैं। वे बादलों की तुलना बच्चों की कल्पना से करते हैं, जो अस्थिर और अनंत होती है।

 

कवि बादल के भीतर विद्युत (बिजली) की चमक देखते हैं, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। कवि बादल को एक कवि के रूप में भी देखते हैं, जिसके हृदय में नवजीवन की प्रेरणा भरी है। बादल में वज्र (भयंकर शक्ति) छिपा है। कवि चाहते हैं कि यह वज्र रूपी शक्ति सामाजिक अन्याय को समाप्त करे। इसलिए, बादल रूपी कवि को अपनी गर्जना से एक नई और क्रांतिकारी कविता (नूतन कविता) का सृजन करना चाहिए, जो समाज में नया जोश भर दे।

 

 

काव्यांश २: 

 

बेचैनी और नवजीवन की आशा

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन

विश्व के निदाघ के सकल जन

आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!

तप्त धरा, जल से फिर

शीतल कर दो

बादल गरजो!

 

 

व्याख्या: कवि कहते हैं कि संसार के सभी लोग (सकल जन) गर्मी (निदाघ) के कारण बेचैन (विकल) और अनमने (उन्मन) थे। यह गर्मी केवल मौसम की नहीं, बल्कि दुःख, निराशा और शोषण की प्रतीक है।

 

जब लोग निराश थे, तभी अज्ञात दिशा से अनंत (सीमा रहित) बादल आए। यह बादल अचानक आए परिवर्तन और क्रांति का प्रतीक हैं। कवि बादल से आग्रह करते हैं कि वे मूसलाधार वर्षा करके इस तपती हुई धरती को जल से शीतल कर दें। यहाँ ‘तप्त धरा’ दुःख और संताप से भरी दुनिया का प्रतीक है।

 

कवि का अंतिम आह्वान है कि बादल अपनी वर्षा से केवल गर्मी को शांत न करें, बल्कि निराशा और जड़ता से भरे समाज को नवजीवन प्रदान करें, जिससे लोगों में फिर से जीने का उत्साह और क्रांति की भावना भर जाए।

 

 

अपनी बात: ‘उत्साह’ का अंतिम संदेश

 

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की ‘उत्साह’ कविता केवल बादलों का वर्णन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक क्रांति और नवचेतना का प्रबल आह्वान है। कवि बादलों की गर्जना में जड़ता, अन्याय और निराशा को तोड़ने की शक्ति देखते हैं, और उनकी वर्षा में तप्त धरा को शीतलता व नवीन जीवन प्रदान करने का सामर्थ्य। यह कविता हमें सिखाती है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी आशा का दामन थामे रखा जा सकता है और कैसे एक शक्तिशाली बदलाव (चाहे वह प्रकृति से हो या मानवीय प्रयासों से) समाज में एक नई स्फूर्ति और उत्साह भर सकता है। ‘उत्साह’ हमें परिवर्तन का स्वागत करने और नवजीवन की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है।

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