मैं सर्वप्रथम आभार व्यक्त करता हूं,
आदरणीय श्री महेश जी का
जिनकी वज़ह से
मैं कभी अशांत नहीं रहता
मेरी भाषा उनकी वज़ह से
कभी अशिष्ट नहीं होती
मेरे संस्कार उनकी वज़ह से
कभी फूहड़ नहीं होते।
मैं धन्यवाद देता हूँ,
आदरणीय श्री प्रीतम जी को क्योंकि
आज उन्हीं की वज़ह से
बचा हुआ है,
अब भी मेरे जीवन में विश्वास और
कुछ कर गुजरने की ऊष्मा।
मैं आदरणीय श्री विहान जी का भी धन्यवाद करता हूं
यह उनकी ही उपलब्धि है कि
मुझमें बची हुई है
अब भी मनुष्यता
कि मेरा क्षितिज भरा हुआ है
अब भी सकारात्मक और रचनात्मक ऊर्जा से।
मुझे ख़ुशी है, इस बात की कि
मेरे जीवन की रेत-घड़ी में
आदरणीय श्री रवि जी ने कभी भी
कोई तूफ़ान आने नहीं दिया
वे नहीं जानते कि उनके
कितने अहसान हैं मुझ पर।
मैं अध्यक्ष जी का ऋणी भी हूँ,
जो उन्होंने मुझ बौने को
उड़ने खातिर पंख देकर
खुला आसमान प्रदान किया है।
इतना ही नहीं
मैं आप सभी का कृतज्ञ हूँ,
जो यहां प्रस्तुत हुए हैं और
जो मुझे अपना समझते हैं
नाकाबिल मुझमें भी
कुछ काबिलियत ढूंढते हैं।
मैं अश्विनी राय अरुण आप सबका पुनः एक बार
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के कार्यक्रम में शामिल होने पर धन्यवाद देता हूं।