April 17, 2025

The Spirit Mania
दिनाँक : १०/११/१९

साहित्यिक प्रतियोगिता : १.१० के पहले पायदान पर…
जिसे प्रमाणित करता यह, ‘सहभागिता प्रमाणपत्र’
विषय : परछाईं

शीर्षक : साथ मेरे मेरी परछाईं

मैं भी हूँ, साथ मेरी परछाई भी है,
फिर कैसे काली रात आई है।
यह तो मेरे डर के भाव हैं,
जो अन्तर्मन में उतर आई है॥

सन्नाटों से भरे माहौल में,
साथ मेरे वो खड़ा रहता है।
पीछे-पीछे मेरे वो चलता है,
ना थकता ना तो कुछ कहता है॥

ना तो अंग का कोई भाग है,
किन्तु सदा अंग के संग रहता है।
ना कभी कुछ सेवन करता,
लेकिन सदा उसमे तरंग बहता है॥

ढलने लगे जब उम्मीद शाम की,
तब बढ़ती जाती मेरी परछाईं है।
नापेगा कोई कैसे मेरे वजूद को,
मुझसे से ज़्यादा लंबी मेरी परछाईं है॥

अश्विनी राय ‘अरूण’

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