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‘फसल’ नागार्जुन के प्रकृति और श्रम के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाती है। यह साधारण अनाज (फसल) को प्रकृति के तत्त्वों और मनुष्य के श्रम के मेल से उत्पन्न एक अद्भुत रचना के रूप में देखती है।
🌾 ‘फसल’ कविता का परिचय
यह कविता उन सब कारणों की ओर संकेत करती है जिनके बिना फसल का उगना असंभव है। कवि उन लोगों के भ्रम को तोड़ते हैं जो फसल को केवल मशीनी या एकल प्रयास का परिणाम मानते हैं।
I. कविता का संक्षिप्त सार
‘फसल’ कविता में कवि नागार्जुन ने यह प्रश्न उठाया है कि ‘फसल क्या है?’। इसका उत्तर देते हुए कवि कहते हैं कि फसल केवल मिट्टी, पानी या बीज का परिणाम नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और मनुष्य के सामूहिक श्रम का फल है।
कवि स्पष्ट करते हैं कि फसल के निर्माण में नदियों के पानी का जादू, करोड़ों किसानों के हाथों के स्पर्श की गरिमा, भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुणधर्म, सूर्य की किरणों का रूपांतरण और हवा की थिरकन (गति) जैसे प्राकृतिक तत्व शामिल हैं। इस प्रकार, कवि फसल को परिवर्तन और सामूहिकता का प्रतीक मानते हैं। कविता का अंतिम संदेश यह है कि प्रकृति के सहयोग के बिना श्रम व्यर्थ है, और श्रम के बिना प्रकृति का वरदान अधूरा।
II. विस्तृत व्याख्या (काव्यांशों के आधार पर)
काव्यांश १: प्रकृति और श्रम का सामूहिक योगदान
एक के नहीं
दो के नहीं
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू है:
एक के नहीं
दो के नहीं
लाख लाख कोटि कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं
दो की नहीं
हजार हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म:
व्याख्या: कवि प्रश्न करते हैं कि यह फसल क्या है? फिर वे इसका उत्तर निषेध के साथ देते हुए कहते हैं कि फसल केवल एक या दो नदियों के पानी का परिणाम नहीं है, बल्कि इसमें ढेर सारी नदियों के पानी का जादू समाया हुआ है। यह केवल एक या दो हाथों का परिणाम नहीं है, बल्कि लाखों-करोड़ों किसानों के हाथों के स्पर्श (श्रम और पसीने) की गरिमा है। यह किसी एक तरह के खेत की मिट्टी का नहीं, बल्कि हजारों-हजारों खेतों की मिट्टी के विविध गुणों का मिश्रण है। कवि जोर देते हैं कि फसल के लिए सामूहिक प्राकृतिक और मानवीय योगदान अनिवार्य है।
काव्यांश २: फसल का वास्तविक स्वरूप
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी–काली–संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूर्य की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
व्याख्या: कवि अब सीधे बताते हैं कि वास्तव में फसल क्या है। वह कहते हैं कि फसल नदियों के पानी का जादुई प्रभाव है। वह करोड़ों हाथों के स्पर्श की महिमा है। वह भूरी, काली और संदली (सुगंधित) मिट्टी के विशिष्ट गुणों का मिश्रण है।
सबसे महत्वपूर्ण, फसल सूर्य की किरणों का रूपांतरण है (प्रकाश संश्लेषण)। यह सूर्य की ऊर्जा का मूर्त रूप है। अंत में, फसल हवा की थिरकन (मंद गति) का सिमटा हुआ संकोच है। यानी हवा का धीरे-धीरे बहना जो परागण में मदद करता है, फसल के रूप में सिमटकर सामने आया है। इस प्रकार, कवि फसल को प्रकृति के तत्वों और मानव श्रम के सहयोग से उत्पन्न ईश्वरीय वरदान मानते हैं।
निष्कर्ष: ‘फसल’ का अंतिम संदेश
‘फसल’ कविता का अंतिम संदेश यह है कि सृजन हमेशा सामूहिक होता है। यह कविता हमें प्रकृति के प्रति विनम्र होने और किसानों के अथक श्रम का सम्मान करने का पाठ पढ़ाती है। ‘फसल’ हमें याद दिलाती है कि हम जो कुछ भी उपभोग करते हैं, वह लाखों हाथों, हजारों नदियों और सूर्य की ऊर्जा का संयुक्त रूपांतरण है।