December 3, 2024

आज हम बात करने वाले हैं, श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवम विश्व हिन्दू परिषद के नेता आचार्य गिरिराज किशोर जी के बारे में, जिन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने के साथ ही अपने देहदान करने का संकल्प बहुत पहले ही कर लिया था ताकि उनकी मृत्यु के बाद भी उनका शरीर किसी के काम आ सके।

परिचय…

आचार्य गिरिराज किशोर का जन्म ४ फरवरी, १९२० को उत्तरप्रदेश के एटा अंतर्गत मिसौली नामक गांव के श्री श्यामलाल जी एवं श्रीमती अयोध्यादेवी के घर में मंझले पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हाथरस और फिर अलीगढ़ से हुई तत्पश्चात आगरा से उन्होंने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इंटर की पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात श्री दीनदयाल उपाध्याय जी एवम श्री भव जुगादे जी से हुआ। जिनके सानिध्य में आने से वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और फिर उन्होंने संघ के लिए ही सारा जीवन समर्पित कर दिया।

स्वयंसेवक संघ…

प्रचारक के नाते आचार्य जी मैनपुरी, आगरा, भरतपुर, धौलपुर आदि में रहे। वर्ष १९४८ में संघ पर प्रतिबंध लगने पर वे मैनपुरी, आगरा, बरेली तथा बनारस की जेल में १३ महीने तक बंद रहे। वहां से छूटने के बाद संघ कार्य के साथ ही आचार्य जी ने बी.ए तथा इतिहास, हिन्दी व राजनीति शास्त्र में एम.ए. किया। साहित्य रत्न और संस्कृत की प्रथमा परीक्षा भी उन्होंने उत्तीर्ण कर ली। वर्ष १९४९ से १९५८ तक वे उन्नाव, आगरा, जालौन तथा उड़ीसा में प्रचारक रहे। इसी दौरान उनके छोटे भाई वीरेन्द्र की अचानक मृत्यु हो गयी। जिसकी वजह से परिवार की आर्थिक दशा संभालने हेतु, स्वयंसेवक संघ की अनुसंसा पर मध्यप्रदेश के भिण्ड के अड़ोखर कॉलेज में सीधे प्राचार्य बना दिये गये।

विद्यार्थी परिषद…

आचार्य जी की रुचि सार्वजनिक जीवन में थी, अतः उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर संगठन मंत्री बनाया गया। विद्यार्थी परिषद को सुदृढ़ करने लगे उन्होंने नौकरी छोड़ दी, जिसका केन्द्र दिल्ली रहा। उन्हीं के कार्यकाल में विद्यार्थी परिषद ने दिल्ली विश्वविध्यालय में पहली बार अध्यक्ष पद जीता। इसके बाद आचार्य जी को जनसंघ का संगठन मंत्री बनाकर राजस्थान भेज दिया गया। जहां आपातकाल के दौरान १५ माह तक भरतपुर, जोधपुर और जयपुर जेलों में रहे।

मीनाक्षीपुरम कांड…

वर्ष १९७९ में मीनाक्षीपुरम कांड ने पूरे देश में हलचल मचा दी। वहां गांव के सभी ३,००० हिन्दू एक साथ मुसलमान बन गए। इससे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चिंतित होकर डॉ॰ कर्णसिंह को कुछ करने को कहा। कर्णसिंह संघ से मिलकर ‘विराट हिन्दू समाज’ नामक एक संस्था बनायी। संघ की ओर से श्री अशोक सिंहल और आचार्य जी को इस काम में लगाया गया। इसके दिल्ली तथा देश के अनेक भागों में विशाल कार्यक्रम हुए; परंतु धीरे-धीरे संघ के ध्यान में यह आया कि डॉ॰ कर्णसिंह और इंदिरा गांधी इससे अपनी राजनीति साधना चाह रहे हैं। अतः संघ ने संस्था से हाथ खींच लिया। ऐसा होते ही वह संस्था ठप्प हो गयी। इसके बाद अशोक सिंहल और आचार्य जी को विश्व हिन्दू परिषद के काम में लगा दिया गया।

विश्व हिन्दू परिषद…

वर्ष १९८० के बाद इन दोनों के नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद ने अभूतपूर्व कार्य किये। संस्कृति रक्षा योजना, एकात्मता यज्ञ यात्रा, राम जानकी यात्रा, रामशिला पूजन, राम ज्योति अभियान, राममंदिर का शिलान्यास और फिर छह दिसम्बर को बाबरी ढांचे के ध्वंस आदि ने विश्व हिन्दू परिषद को नयी ऊंचाइयां प्रदान कीं। आज विश्व हिन्दू परिषद गोरक्षा, संस्कृत, सेवा कार्य, एकल विद्यालय, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, पुजारी प्रशिक्षण, मठ-मंदिर व संतों से संपर्क, परावर्तन आदि आयामों के माध्यम से विश्व का सबसे प्रबल हिन्दू संगठन बन गया है।

विश्व हिन्दू परिषद के विभिन्न दायित्व निभाते हुए आचार्य जी ने इंग्लैंड, हालैंड, बेल्जियम, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, रूस, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, इटली, मारीशस, मोरक्को, गुयाना, नैरोबी, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, सिंगापुर, जापान, थाइलैंड आदि देशों की यात्रा की है। परंतु १३ जुलाई, २०१४ को ९६ वर्ष की आयु में विश्व हिन्दू परिषद के आरके पुरम, दिल्ली स्थित मुख्यालय में रात ९:१५ बजे अंतिम सांस ली।

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