November 23, 2024

आज हम बात करेंगे, श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्यों में से एक एवं प्रमुख बंगाली संगीतकार, कवि, नाटककार, उपन्यासकार, नाट्यपरिचालक और नट के बारे में, जिन्होंने ‘ग्रेट नेशनल थिएटर’ की स्थापना कर बांग्ला थिएटर का स्वर्ण युग को स्थापित किया था। जी हां! आप ने सही पहचाना वो हैं महान विद्वान गिरीश चंद्र घोष, जिन्हेंने लगभग चालीस से कहीं अधिक नाटक लिखे हैं और इससे अधिक निर्देशन किया है।

परिचय…

गिरीश चंद्र घोष का जन्म २६ फरवरी, १८४४ को कोलकाता के बागबाजार में हुआ था। वह अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे। उन्होंने पहले हाई स्कूल और बाद में ओरिएंटल सेमिनरी स्कूल में अध्ययन किया। बाद में उन्होंने अंग्रेजी और हिंदू पौराणिक कथाओं का ज्ञान प्राप्त किया।

व्यवसाय…

वे पहली बार वर्ष १८६७ में शर्मिष्ठा नामक नाटक के गीतकार के रूप में नाटक की दुनिया में शामिल हुए। दो वर्ष के बाद, सधवार एकादशी में अभिनय करके उन्होने एक अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त की। उनकी कलकत्ता में नेशनल थिएटर नामक एक ड्रामा कंपनी थी। २० सितंबर, १८८४ को, उन्होंने नटी बिनोदिनी के साथ कलकत्ता के स्टार थियेटर में चैतन्यलीला नामक नाटक का मंचन किया। बिनोदिनी चाहती थी कि नए थियेटर का नाम बिनोदिनी के नाम से ‘बी-थिएटर’ रखा जाय। लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें धोखा दिया जिनमें उनके अपने अभिनय गुरु गिरीश चंद्र घोष भी थे। रामकृष्ण परमहंस इस नाटक को देखने आए थे। दोनों ने तब उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया।शुरुआत में गिरीश चंद्र एक कुख्यात शराबी और स्वेच्छाचारी थे। परंतु कालांतर में वे श्री रामकृष्ण के अंतरंग शिष्यों में से एक बन गए, जिसके बारे में “श्री श्री रामकृष्णकथामृत” नामक पुस्तक में उल्लेख है कि कैसे श्री रामकृष्ण के संपर्क में आने के बाद गिरीशचंद्र में किस प्रकार नैतिक परिवर्तन आया और वे रामकृष्ण के सबसे घनिष्ट शिष्य किस प्रकार बने।

चलचित्र…

काजी नजरूल इस्लाम ने गिरीश चंद्र के ‘भक्त ध्रुव’ नामक उपन्यास को चलचित्रित किया। मधु बसु द्वारा निर्देशित और गिरीशचंद्र पर आधारित फिल्म ‘महाकबि गिरीशचंद्र” वर्ष १९५६ में रिलीज़ हुई थी।

नाटक…

उन्होंने कई नाटक लिखे। जिनमें से उनके उल्लेखनीय नाटक निम्नवत हैं…

(क) पौराणिक नाटक : रावणबध (१८१), सीतार निर्वासन, लक्षण बर्जन, सीताहरण, पांडवेर अज्ञातबास, जना (१८९४)।

(ख) चरित्र नाटक : चैतन्यलीला, बिल्वमंगल ठाकुर, शंकराचार्य।

(ग) रोमांटिक नाटक : मुकुलमुंजरा, आबू होसेन।

(घ) सामाजिक नाटक : प्रफुल्ल (१८९), मायावसान, बलिदान।

(ड.) ऐतिहासिक नाटक : सिराजद्दौला, मीर कासिम, छत्रपति शिवाजी।

और अंत में…

वर्ष १८१७ में, साधारणी नामक पत्रिका के सम्पादक अक्षय चंद्र सरकार ने उन्हें मेघनादवध काव्य में रामचंद्र और मेघनाद दोनों क्षेत्रों में उनके अभिनय के लिए उन्हें ‘बंगाल का गैरिक’ की उपाधि से उन्हें भूषित किया। तथा फिर अंत में ८ फरवरी, १९१२ को इस महान अभिनेता और नाटककार का कलकत्ता में निधन हो गया।

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