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बनारस मैथेमैटिकल सोसायटी के संस्थापक, एक महान गणितज्ञ हिन्दी के महान प्रेमी डॉ गणेश प्रसाद जी के प्रिय शिष्य श्री गोरख प्रसाद जी का जन्म २८ मार्च, १८९६ को गोरखपुर में हुआ था।

एम.एस-सी. परीक्षा उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण कर गणेश प्रसाद जी के साथ इन्होंने अनुसंधान कार्य किया। तत्पश्चात महामना पं॰ मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से वे ऐडिनबरा गए और गणित की गवेषणाओं पर वहाँ के विश्वविद्यालय से डी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। कालांतर में वे प्रयाग विश्वविद्यालय के गणित विभाग में रीडर के पद पर कार्य किया। तत्पश्चात पदमुक्त होकर वे नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा संयोजित हिंदी विश्वकोश का संपादन का भार ग्रहण किया। हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा १९३१ में ‘फोटोग्राफी’ ग्रंथ पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला। काशी नागरीप्रचारिणी सभा से उनकी पुस्तक ‘सौर परिवार’ पर डॉ॰ छन्नूलाल पुरस्कार, ग्रीब्ज़ पदक तथा रेडिचे पदक मिले।

इनका संबंध अनेक साहित्यिक एवं वैज्ञानिक संस्थाओं से था। कुछ वर्ष वे विज्ञान परिषद् (प्रयाग) के उपसभापति रहे तत्पश्चात वे मृत्युपर्यन्त तक सभापति रहे। हिंदी साहित्य सम्मेलन के परीक्षामंत्री भी कई वर्ष रहे। काशी में हिन्दी सहित्य सम्मेलन के २८वें अधिवेशन में विज्ञान परिषद् के अध्यक्ष थे। बनारस मैथमैटिकल सोसायटी के भी अध्यक्ष थे।

उनकी कृतियाँ…

फलसंरक्षण,
उपयोगी नुस्खे,
तर्कीबें और हुनर,
लकड़ी पर पालिश,
घरेलू डाक्टर,
तैरना तथा
सरल विज्ञानसागर हैं।

एक गणितज्ञ और हिन्दी के विद्वान होने के साथ ही वे ज्योतिष और खगोल के भी प्रकांड विद्वान्‌ थे। इनपर नीहारिका, आकाश की सैर, सूर्य, सूर्यसारिणी, चंद्रसारिणी और भारतीय ज्योतिष का इतिहास इनकी अन्य पुस्तकें हैं। अंग्रेजी में गणित पर बी.एस.सी. स्तर के कई पाठ्य ग्रंथ हैं, जिनमें अवकलन गणित, तथा समाकलन गणित की पुस्तकें हैं।

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