१९ अगस्त, १९०७… जन्मोत्सव

हिंदी उपन्यासकार, साहित्यिक इतिहासकार, निबंधकार और आलोचक….

आचार्य जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली था, साथ ही उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। वे हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बाङ्ला भाषाओं के विद्वान थे। भक्तिकालीन साहित्य का उन्हें अच्छा ज्ञान था।

अपनी शिक्षा पूरी कर आचार्य जी ने शांति निकेतन में हिन्दी का अध्यापन प्रारम्भ किया। वहाँ गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर तथा आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन किया तथा अपना स्वतंत्र लेखन भी व्यवस्थित रूप से आरंभ किया। बीस वर्षों तक शांतिनिकेतन में अध्यापन के उपरान्त द्विवेदीजी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया।

आचार्य जी के जीवन मे एक ऐसा समय आया जो ऐसे हस्ती के तो क्या किसी के भी जीवन मे ना आए…

प्रतिद्वन्द्वियों के विरोध के चलते द्विवेदीजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिये गये और यह उनके जीवन का एक काला अध्याय रहा, मगर उनकी जीवटता ही थी जो उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय तक ले गया और वहां वे हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष रहे। फिर एक दिन ऐसा आया जब काली घटा छटी और पुनः वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष होकर लौटे। कालांतर में विश्वविद्यालय के रेक्टर पद पर उनकी नियुक्ति हुई। पद मुक्त होने के पश्चात कुछ समय के लिए ‘हिन्दी का ऐतिहासिक व्याकरण’ योजना के निदेशक भी बने। कालान्तर में उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष तथा कुछ समय तक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के उपाध्यक्ष पद पर रहे।

१. राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मान।
२. लखनऊ विश्वविद्यालय ने भी उन्हें डी.लिट. की उपाधि देकर उनका विशेष सम्मान किया था।
३. आलोक पर्व’ निबन्ध संग्रह के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म १९ अगस्त १९०७ ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ‘आरत दुबे का छपरा’, ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिताश्री का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माताजी का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था।

आचार्य जी के जन्म दिवस पर अश्विनी की तरफ से आप सभी बंधू-बांधवों, गुरुजनों को हार्दिक बधाई।

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