November 21, 2024

आज हम बात करने वाले हैं भारत के प्रथम कमाण्डर इन चीफ़ के बारे में, जिन्होंने १५ जनवरी, १९४९ को इस प्रतिष्ठित पद को ग्रहण किया था और जिसके बाद से ही १५ जनवरी के दिन को ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। वैसे तो आप समझ ही गए होंगे कि हम किनकी बात कर रहे हैं, फिर भी हम अपना फर्ज समझते हुए बता रहे हैं कि उनका नाम है कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा यानी जनरल करिअप्पा। जिनका सम्बद्ध राजपूत रेजीमेन्ट से था, जहां से वे वर्ष १९५३ में सेवानिवृत्त हुए, परंतु फिर भी किसी न किसी रूप में उनका सहयोग भारतीय सेना को सदा प्राप्त होता रहा।

परिचय…

स्वतंत्र भारत की सेना के ‘प्रथम कमाण्डर इन चीफ़’, फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा का जन्म २८ जनवरी, १८९९ को कर्नाटक के कुर्ग के पास हुआ था। करिअप्पा को उनके क़रीबी लोग बचपन का नाम ‘चिम्मा’ से पुकारते थे। उनकी औपचारिक शिक्षा ‘सेंट्रल हाई स्कूल, मडिकेरी’ से प्राप्त हुई थी तथा आगे की शिक्षा मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से पूरी की। छात्र जीवन में वे हॉकी और टेनिस के माने हुए खिलाड़ी थे। शिक्षा पूरी होने के बाद ही उनका चयन प्रथम विश्वयुद्ध की सेना में हो गया, जो वर्ष १९१४ से १९१८ तक चला था।

उपलब्धियाँ…

उनमें अभूतपूर्व योग्यता और नेतृत्व के गुण थे, जिसकी बदौलत वे प्रगति पथ पर लगातार अग्रसर रहे तथा अनेक उपलब्धियों को भी प्राप्त किया। सेना में कमीशन पाने वाले प्रथम भारतीयों में से वे भी शामिल थे। अनेक मोर्चों पर उन्होंने भारतीय सेना का पूरी तरह से सफल नेतृत्व किया था। स्वतंत्रता से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सेना में ‘डिप्टी चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़’ के पद पर नियुक्त कर दिया था। किसी भी भारतीय व्यक्ति के लिए यह एक बहुत बड़ा सम्मान था। स्वतंत्रता के बाद वर्ष १९४९ में करिअप्पा को ‘कमाण्डर इन चीफ़’ बनाया गया, जिसपर वे वर्ष १९५३ तक रहे।

सामाजिक जीवन…

सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में भारत के ‘हाई-कमिश्नर’ के पद पर भी काम किया। इस पद से सेवानिवृत्त होने पर भी करिअप्पा सामाजिक जीवन में सदा सक्रिय रहे। उन्हें जीवनपर्यंत शिक्षा, खेलकूद व अन्य कार्यों में लगे रहे। साथ ही सेवानिवृत्त सैनिकों की समस्याओं का पता लगाकर उनके निवारण के लिए वे सदा प्रयत्नशील रहे।

निधन…

जनरल करिअप्पा के सेवा के क्षेत्र में स्मरणीय योगदान के लिए वर्ष १९७९ में भारत सरकार ने उन्हें ‘फ़ील्ड मार्शल’ की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया था। १५ मई, १९९३ को बैंगलौर में भारत के प्रथम कमाण्डर इन चीफ़ करिअप्पा को भगवान ने ९४ वर्ष की आयु में अपने किन्हीं कार्यों के संपादन के लिए बुला लिया।

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