आधुनिक तेलुगु साहित्य के गद्य ब्रह्मा, प्रथम उपन्यासकार, प्रथम नाटककार, प्रथम आत्मकथाकार, व्यावहारिक भाषा आंदोलन के प्रवर्तक कंदुकूरी वीरेशलिंगम का जन्म १६ अप्रैल, १८४८ को आंध्रप्रदेश के राजमहेंद्रवरम (अब राजमंड्री) में हुआ था। उनका परिवार सनातनी ब्राह्मण था। उनका बचपन बेहद गरीबी में गुजरा था, जिससे उन्होंने विषम परिस्थितियों का सामना करना सीखा।
लोकहीतकर कार्य…
वीरेशलिंगम जात पात के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने इसके विरोध में आंदोलन का सूत्रपात किया।राजा राममोहन राय की भांति उन्होंने भी १८८७ में राजमंड्री में ‘ब्रह्मो मंदिर’ की स्थापना की थी।
तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर वीरेशलिंगम ने जनता को चिरनिद्रा से जगाया, उन्हें चेताया, स्त्री सशक्तीकरण को प्रोत्साहित किया, स्त्री शिक्षा पर बल दिया, बाल विवाह का खंडन किया, विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और जमींदारी प्रथा का भी विरोध किया। उनके सेवा कार्यों से प्रभावित होकर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने भी उन्हें बधाई दी। इतना ही नहीं, स्त्री को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए विवेकवर्धनी, सतीहितबोधनी, सत्यवादी, चिंतामणि आदि पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ किया। वस्तुतः विवेकवर्धनी पत्रिका का मुख्य उद्देश्य ही था कि समाज में व्याप्त राजनैतिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, वेश्यावृत्ति, जात-पांत, छुआछूत, बालविवाह, सांप्रदायिकता और सती प्रथा का उन्मूलन।
साहित्यिक धरोहर…
जिस तरह हिन्दी साहित्य के इतिहास के प्रतिनिधि भारतेंदु हरिश्चंद्र हैं, उसी तरह कंदुकूरी वीरेशलिंगम पंतुलु तेलुगु साहित्य के इतिहास में प्रतिनिधि हैं। वीरेशलिंगम ने अपनी साहित्यिक यात्रा प्रबंध काव्यों से शुरू की। मार्कंडेय शतकम्, गोपाल शतकम्, रसिक जन मनोरंजनम्, शुद्धांध्र निर्ओष्ठ्य निर्वचन नैषधम्, शुद्धांध्र उत्तर रामायण। १८९५ में वीरेशलिंगम ने
तेलुगु भाषा में प्रथम नाटक
कुछ विद्वान, कोराडा रामचंद्र शास्त्री कृत मंजरी मधुकरीयम् को तेलुगु साहित्य का प्रथम नाटक मानते हैं, परंतु इस नाटक में आधुनिक नाटक के तत्व नहीं हैं, अतः वीरेशलिंगम कृत ब्रह्म विवाहमु को ही प्रथम नाटक की ख्याति प्राप्त है।