एक कुशल प्रशासक, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सलाहकार एवं प्रसिद्ध समाजशास्त्री व साहित्यकार श्री श्यामाचरण दुबे जी की धर्मपत्नी श्रीमती लीला दुबे जी का जन्म आज ही के दिन यानी २७ मार्च, १९२३ को हुआ था। लीलादी के नाम से प्रसिद्ध लीला जी एक प्रसिद्ध मानव विज्ञानी और नारीवादी विद्वान थीं। इनकी रचना “लिंगभाव का मानववैज्ञानिक अन्वेषण:प्रतिच्छेदी क्षेत्र” में नातेदारी, संस्कृति तथा लिंगभाव के विभिन्न पहलुओं को बेहतरीन तरीके से उकेरा गया है। इस अन्वेषण में क्षेत्रीय शोधकार्य, वैयक्तिक वृत्तांक, सम्पूर्ण मानवजाति का चित्रणात्मक साहित्य एवं सैद्धान्तिक निरूपण का उपयोग किया गया है। लीला जी ने अपनी पुस्तक के लिए विभिन्न स्रोतों से सामग्रियों को इकट्ठा किया है, जिसमें देशज चिन्तन, प्रचलित प्रतीक तथा भाषायी अभिव्यक्तियाँ, कर्मकांड एवं आचार-व्यवहार और लोगों के विश्वास व धारणाएँ समाविष्ट हैं। वे नातेदारी की अपनी व्याख्या में अध्येता भौतिक तथा विचारधारात्मक दोनों पक्षों का समावेश करती हैं।
सगोत्रवाद और महिला अध्ययन को लेकर अपने कार्यों के लिए जानी जाने वाली लीला जी ने कई अन्य पुस्तकें लिखी हैं, जिनमे ‘मैत्रिलिनी एंड इस्लाम: रिलीजन एंड सोसाइटी इन द लैकेडिव्स’ पुस्तक का नाम उल्लेखनीय है।
लीलादी के कार्यों के लिए विभिन्न संस्थाओ द्वारा पुरस्कृत किया गया जिनमे से, २००९ का यूजीसी के स्वामी प्रणवन्नाथ सरस्वती पुरस्कार, एवं २००७ का भारतीय समाजशास्त्रीय सोसाइटी का जीवनकाल उपलब्धि पुरस्कार मुख्य हैं।