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आज हम ‘भारतेंदु साहित्य समिति’ के सदस्य एवम छत्तीसगढ़ गौरव प्रचारक मंडली जो कालांतर में महाकौशल इतिहास परिषद कहलाया, की संस्थापक लोचन प्रसाद पाण्डेय जी के बारे में बात करेंगे…

परिचय…

लोचन प्रसाद पाण्डेय जी का जन्म ४ जनवरी, १८८७ को मध्य प्रदेश के बिलासपुर जिला अंतर्गत बालपुर नामक गांव में हुआ था। वैसे आज बिलासपुर छत्तीसगढ़ का हिस्सा है। लोचन प्रसाद के पिता जी पंडित चिंतामणि पाण्डेय जी ने अपने गाँव में शिक्षा के लिए एक पाठशाला खुलवाई थी। लोचन प्रसाद जी अपने पिता के चतुर्थ पुत्र थे। वे आठ भाई थे- पुरुषोत्तम प्रसाद, पदमलोचन, चन्द्रशेखर, लोचन प्रसाद, विद्याधर, वंशीधर, मुरलीधर और मुकुटधर तथा चंदन कुमारी, यज्ञ कुमारी, सूर्य कुमारी और आनंद कुमारी, ये चार बहनें थीं।

शिक्षा…

लोचन प्रसाद पाण्डेय जी की प्रारंभिक शिक्षा बालपुर की निजी पाठशाला में हुई थी। वर्ष १९०२ में संबलपुर मिडिल स्कूल से पास होकर वर्ष १९०५ में कलकत्ता से इंटर की परीक्षा पास कर बनारस आ गये, जहाँ उनका संपर्क अनेक साहित्य मनीषियों से हुआ। उन्होंने अपने प्रयत्न से ही उड़िया, बंगला और संस्कृत का भी ज्ञान प्राप्त किया था। लोचन प्रसाद पाण्डेय जी ने अपने जीवन काल में अनेक जगहों का भ्रमण किया। साहित्यिक गोष्ठियों, सम्मेलनों, कांग्रेस अधिवेशन, इतिहास-पुरातत्व खोजी अभियान में वे सदा तत्पर रहे। उनके खोज के कारण अनेक गढ़, शिलालेख, ताम्रपत्र, गुफ़ा प्रकाश में आ सके। वर्ष १९२३ में उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ गौरव प्रचारक मंडली’ की स्थापना की, जो बाद में ‘महाकौशल इतिहास परिषद’ कहलाया। उनका साहित्य, इतिहास और पुरातत्व में समान अधिकार था।

साहित्यिक सेवा..

पाण्डेय जी के कथा एवं घटना का आधार लेकर वृत्तात्मक कविताएँ लिखा करते थे। ये ‘सरस्वती’ में कविताएँ लिखने लगे थे। भारतेन्दु का जागरण-तृयं बज चुका था। द्विवेदी युग के शक्ति-संचय काल में लोचन प्रसाद पाण्डेय का अभ्यागमन हुआ। इसी समय सहृदय सामयिकता, ओज, संतुलित पद-योजना एवं तत्सम पदावली से पूर्ण इनकी कविता ने सांकेतिकता एवं ध्यन्यात्मकता के अभाव में भी हृदय-सम्पृक्त इतिवृत्त के कारण लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। स्फुट एवं प्रबन्ध, दोनों ही प्रकार की कविताओं द्वारा लोचन प्रसाद जी ने सुधार-भाव को प्रतिष्ठापित किया। ‘मृगी दु:खमोचन’ नामक कविता में वृक्ष-पशु आदि के प्रति भी इनकी सहृदयता सुन्दर रूप में व्यक्त हुई है। ये मध्य प्रदेश के अग्रगण्य साहित्य नेता भी रहे।

रचनाएँ…

लोचन प्रसाद पाण्डेय ने ४० से अधिक ग्रन्थों की रचना की। इनमें ३ उड़िया में, ४ अंग्रेजी में और शेष हिन्दी में हैं। ‘दो मित्र’, ‘प्रवासी’ , ‘माधव मञ्जरी’, ‘कौशल रत्नमाला आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

लोचन प्रसाद पाण्डेय की प्रमुख रचनाओं का विवरण निम्नवत है:·

वर्ष १९०६ : ‘दो मित्र’ उद्देश्य प्रधान, सामाजिक उपन्यास, मैत्री आदर्श, समाज-सुधार, स्त्री-चरित्र से प्रेरित एवं पाश्चात्य सभ्यता की प्रतिक्रिया पर लिखित।

वर्ष १९०७ : मध्य प्रदेश से ही प्रकाशित ‘प्रवासी’ नामक काव्य-संग्रह में छायावादी, रहस्यमयी संकलनों की भाँति कल्पनागत, मूर्तिमत्ता एवं ईषत् लाक्षणिकता का प्रयास दिखाई पड़ता है।

वर्ष १९१० : ‘इण्डियन प्रेस’, प्रयाग से ‘कविता कुसुम माला’, बालोपयोगी काव्य-संकलन एवं १९१४ में ‘नीति कविता’ धर्मविषयक संग्रह निकले।

वर्ष १९१४ : ‘साहित्यसेवा’ नामक प्रहसन प्रकाशित हुआ, जिसमें व्यग्य-विनोद के लिए हास्योत्पादन की अतिनाटकीय घटना-चरित्र-संयोजन शैली का प्रयोग हुआ है। उसी वर्ष समाज-सुधारमूलक ‘प्रेम प्रशंसा’ व ‘गृहस्थ-दशा दर्पण’ नाट्य-कृति प्रकाशित हुई थी। साथ ही उनका ‘मेवाड़ गाथा’ ऐतिहासिक खण्ड-काव्य १९१४ में ही प्रकाशित हुआ था।

वर्ष १९१५ : ‘पद्य पुष्पांजलि’ नामक दो काव्य-संग्रह भी प्रकाशित हुए थे। इसी वर्ष उनके सामाजिक एवं राष्ट्रीय नाटक ‘छात्र दुर्दशा’ एवं अतिनाटकीयतायुक्त व्यंग्य-विनोदपरक ‘ग्राम्य विवाह’ आदि नाटक निकले।

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