नववर्ष
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,
विक्रमी संवत् २०७६
सृष्टि संवत् १९६०८५३१२० वर्ष
दिनांक – ६ अप्रैल शनिवार २०१९ ई.
सनातन प्रकल्प –
१.सृष्टि संवत्
२.मनुष्य उत्पत्ति संवत्
३.वेद संवत्
४.देववाणी भाषा संवत्
५.सम्पूर्ण प्राणी उत्पत्ति संवत्
ऐतिहासिक प्रकल्प –
१.विक्रम संवत्
२.शक संवत्
३.आर्य सम्राट विक्रमादित्य जन्मदिवस
४.युधिष्ठिर राज्याभिषेक दिवस
६.आर्यसमाज स्थापना दिवस
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है। आज के दिन ही सूर्योदय के साथ सृष्टि निर्माण कार्य का शुभारंभ परमात्मा ने किया था। अर्थात् इस दिन सृष्टि प्रारंभ हुई थी तब से यह गणना चली आ रही है।
यह नववर्ष किसी जाति, वर्ग, देश, संप्रदाय का नहीं है अपितु यह मानव मात्र का नववर्ष है। यह पर्व विशुद्ध रुप से भौगोलिक पर्व है। क्योकि प्राकृतिक दृष्टि से भी वृक्ष वनस्पति फूल पत्तियों में भी नयापन दिखाई देता है। वृक्षों में नई-नई कोपलें आती हैं। वसंत ऋतु का वर्चस्व चारों ओर दिखाई देता है। मनुष्य के शरीर में नया रक्त बनता है। हर जगह परिवर्तन एवं नयापन दिखाई पडता है। रवि की नई फसल घर में आने से कृषक के साथ संपूर्ण समाज प्रसन्नचित होता है। वैश्य व्यापारी वर्ग का भी इकोनॉमिक दृष्टि से मार्च महीना इण्डिंग (समापन) माना जाता है। इससे यह पता चलता है कि जनवरी साल का पहला महीना नहीं है पहला महीना तो चैत्र है जो लगभग मार्च-अप्रैल में पड़ता है। १ जनवरी में नया जैसा कुछ नहीं होता किंतु अभी चैत्र माह में देखिए नई ऋतु, नई फसल, नई पवन, नई खुशबू, नई चेतना, नया रक्त, नई उमंग, नया खाता, नया संवत्सर, नया माह, नया दिन हर जगह नवीनता है। यह नवीनता हमें नई उर्जा प्रदान करती है।
नव वर्ष को शास्त्रीय भाषा में नवसंवत्सर (संवत्सरेष्टि) कहते हैं। इस समय सूर्य मेष राशि से गुजरता है इसलिए इसे “मेष संक्रांति” भी कहते हैं।
प्राचीन काल में नव-वर्ष को वर्ष के सबसे बड़े उत्सव के रूप में मनाते थे। यह रीत आजकल भी दिखाई देती है जैसे महाराष्ट्र में गुडीपाडवा के रुप में मनाया जाता है तथा बंगाल में पइला पहला वैशाख और गुजरात आदि अनेक प्रांतों में इसके विभिन्न रूप हैं।
नववर्ष का प्राचीन एवं ऐतिहासिक महत्व-
१. आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही परम पिता परमात्मा ने १९६०८५३१२० वर्ष पूर्व यौवनावस्था प्राप्त मानव की प्रथम पीढ़ी को इस पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म दिया था। इस कारण यह “मानव सृष्टि संवत्” है।
२. इसी दिन परमात्मा ने अग्नि वायु आदित्य अंगिरा चार ऋषियों को समस्त ज्ञान विज्ञान का मूल रूप में संदेश क्रमशः ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद के रूप में दिया था। इस कारण इस वर्ष को ही वेद संवत् भी कहते हैं।
३. आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त कर वैदिक धर्म की ध्वजा फहराई थी। (ज्ञातव्य है कि भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक चैत्र शुक्ल षष्ठी को हुआ था ना की प्रतिपदा अथवा दीपावली पर)
अश्विनी राय ‘अरुण’