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रामराज यानी राजाराम द्वितीय भोसले, मराठा साम्राज्य के छठवें राजा थे। जैसा कि आपने पिछले अध्याय में पढ़ा, वे छत्रपति शाहू जी के एक दत्तक पुत्र थे। वे महारानी ताराबाई के पौत्र व शिवाजी द्वितीय के पुत्र थे। उन्हें महारानी ताराबाई ने शाहू के पास पेश किया था और शाहू की मौत के बाद सत्ता को वापस अपने हाथ में लेने के लिए इस्तेमाल किया था। और आश्चर्य यह की पेशवा बालाजी बाजीराव ने उन्हें छत्रपति का नाम रखने का अधिकार दिया। इससे साफ जाहिर होता है कि वास्तव में, पेशवा और अन्य प्रमुखों के हाथ में सभी कार्यकारी शक्ति थी, जबकि राजाराम द्वितीय केवल एक कठपुतली मात्र थे।

परिचय…

राजाराम द्वितीय भोसले का जन्म जून १७२६ को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में महारानी ताराबाई के पुत्र शिवाजी द्वितीय के पुत्र के रूप में हुआ था।

जीवनी…

वर्ष १७४० के दशक में, जब शाहू जी के जीवन का आखिरी वर्ष चल रहा था, महारानी ताराबाई ने राजाराम द्वितीय उर्फ रामराज को उनके पास ले कर आई। दूरदर्शी महारानी ने राजाराम को अपने पोते के रूप में प्रस्तुत किया। उनके पति राजाराम छत्रपति के माध्यम से शिवाजी के सीधे वंशज थे। पुत्र ना होने की स्थिति में शाहु जी महाराज ने उन्हें अपने बच्चे के रूप में अपना लिया। कालांतर में शाहू जी की मृत्यु के बाद, राजाराम द्वितीय को छत्रपति के रूप में नियुक्त किया गया।

जब पेशवा बालाजी बाजीराव ने मुगल सेना से युद्ध के लिए कूच किया तब ताराबाई ने राजाराम द्वितीय से पेशवा को पद से हटाने के लिए आग्रह किया। जब राजाराम ने इस आग्रह को नाकार दिया, तो उन्होंने उन्हें २४ नवंबर, १७५० को सातारा किले के एक तहखाने में उन्हें कैद कर दिया। इस कारावास के दौरान उनका स्वास्थ्य काफी खराब रहा। ताराबाई ने बाद में पेशवा के साथ एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए, अपनी श्रेष्ठता को स्वीकार करते हुए १४ सितंबर, १७५२ को ताराबाई और पेशवा ने जेजुरी में खांदोबा मंदिर में शपथ ली, परस्पर शांति का वादा किया।

और अंत में…

राजाराम द्वितीय के शासनकाल के दौरान, सातारा में स्थित छत्रपति की शक्ति पूरी तरह से पुणे के भट परिवार और होल्कर, गायकवाड़, सिंधिया और भोंसले (नागपुर) जैसे पेशवाओं के कब्जे में आ गई। यह वही समय था, जब मराठा अफगानिस्तान में स्थित दुरानी साम्राज्य के साथ लगातार संघर्ष में लगा हुआ था।

११ दिसंबर, १७७७ को ५१ वर्ष की आयु में रामराज का निधन के बाद एक और दत्तक नामित शासक शाहू द्वितीय उनके उत्तराधिकारी हुए।

 

छत्रपति शाहू द्वितीय(१७७७-१८०८)

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