November 23, 2024

आज हम बात करने वाले हैं, वर्ष १९०७ में बालगंगाधर तिलक के मराठी पत्र ‘केसरी’ के हिन्दी संस्करण की जिम्मेदारी निभाने वाले एवम हिन्दी साहित्य की महती सेवक श्री रामचन्द्र वर्मा जी के बारे में, जिन्होंने हिंदी जगत को कई महत्त्वपूर्ण कृतियों द्वारा संपन्न किया है।

परिचय…

श्री रामचन्द्र वर्मा जी का जन्म ८ जनवरी, १८९० को बनारस में हुआ था। उनके पिता जी का नाम दीवान परमेश्वरी दास था। उनकी प्राथमिक शिक्षा ही मूल शिक्षा रही, उन्हें विद्यालय जाने का बहुत कम मौका मिला। परंतु अपने अध्यवसाय से उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी, मराठी, बंगला, गुजराती, अंग्रेजी आदि भाषाओं का बहुत अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। कालांतर में उनकी हिंदी सेवा के लिए भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ सम्मान से अलंकृत किया। सम्मानित किया था।

पत्रकारिता…

श्री वर्मा ने अपने जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से आरम्भ किया। वर्ष १९०७ में उन्होंने नागपुर के पत्र ‘हिंदी केसरी’ के सम्पादक का पद ग्रहण किया। कुछ समय तक वे बांकीपुर के पत्र ‘बिहार बंधु’ के संपादक भी रहे। उसके बाद वे १९१० से १९२९ तक काशी नागरी प्रचारिणी सभा के हिंदी शब्द सागर के सहायक संपादक के पद पर रहे। उन्होंने लोगों को शुद्ध हिंदी लिखने और बोलने के लिए सदा प्रेरित किया।

लेखन…

आपको यह जानकर बेहद गर्व होगा कि हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा पांच खंडों में प्रकाशित ‘मानक हिंदी कोश’ रामचंद्र वर्मा जी के परिश्रम का ही फल है। ‘संक्षिप्त हिंदी शब्द सागर’ के संपादन का और विभिन्न भाषाओं के प्रसिद्ध ग्रंथों के अनुवाद का श्रेय भी इन्हें ही है। इतना ही नहीं उन्होंने विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के कोष विभाग में कार्य किया और ‘साहित्य रत्नमाला कार्यालय’ का गठन किया।

प्रमुख कृतियाँ : 

१. अच्छी हिन्दी

२. हिन्दी प्रयोग मानक हिन्दी व्याकरण

३. हिंदी कोश रचना

४. शब्द और अर्थ

५. शब्द साधना शब्दार्थ दर्शन

६. कोशकला

७. प्रामाणिक हिंदी कोश

८. उर्दू हिंदी कोश

अनुदित कृतियाँ : 

१. हिन्दी ज्ञानेश्वरी दासबोध

२. हिन्दू राजतन्त्र

३. साम्यवाद धर्म की उत्पत्ति और विकास

४. पुरानी दुनिया

५. छत्रशाल

६. प्राचीन मुद्रा

७. रायफल

८. देवलोक आदि।

अलंकरण…

हिंदी सेवा के कारण भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मश्री’ सम्मान से अलंकृत किया।

अपनी बात…

इनकी सादगी और इनके स्वभाव की सरलता प्रत्येक मिलने वाले साहित्यिक पुजारी पर अपना प्रभाव डाले बिना न रह पाती। वर्ष १९६९ में यह काशीवासी बाबा के धाम की ओर अग्रसर हो गया। इन्होंने आदिकाल की कालावधि संवत् ७५० से १३७५ तक मानकर उसे दो खण्डों में विभाजित किया है…

१. संधिकाल – ७५० से १००० वि. तक,

२. चारणकाल – १००० से १३७५ वि. तक।

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