रमेश चन्द्र झा का जन्म चंपारण, (बिहार) जिले के सुगौली स्थित फुलवरिया गाँव के जाने-माने देश-भक्त और स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी नारायण झा के यहाँ ८ मई,१९२८ को हुआ था। अपने पिता और तात्कालिक परिवेश से प्रभावित होकर रमेश चन्द्र झा बचपन में ही बाग़ी बन गए और सिर्फ १४ साल की उम्र में उनपर अंग्रेज़ी पुलिस चौकी लूटने का संगीन आरोप लगा।
१९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में इन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। चंपारण के सुगौली स्थित पुलिस स्टेशन में इनके नाम पर कई मुकदमे दर्ज किये गए जिनमें थाना डकैती काण्ड सबसे ज्यादा चर्चित रहा। तब वे रक्सौल के हजारीमल उच्च विद्यालय के छात्र थे। भारत छोड़ो आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए इन्हें १५ अगस्त, १९७२ को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा ताम्र-पत्र देकर पुरस्कृत किया गया था।
जेल और गिरफ़्तारी के दिनों में रमेश चन्द्र झा ने भारतीय साहित्य का अध्ययन किया और आज़ादी के बाद अन्य कांग्रेसियों की तरह राजनीति न चुनकर कवि और लेखक बनना पसंद किया। अपने एक काव्य संग्रह में उन्होंने लिखा है…
बहुत मजबूरियों के बाद भी जीता चला आया,
शराबी सा समूची ज़िंदगी पीता चला आया।
हज़ारों बार पनघट पर पलट दी उम्र की गागर,
मगर अब वक़्त भी कितना गया बीता चला आया॥
इसी तरह से वे एक जगह और लिखते हैं…
जंगल झाड़ भरे खंडहर में सोया पाँव पसार,
दलित ग़ुलाम देश का मारा हारा थका फ़रार।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे हिंदी, भोजपुरी और मैथिली की प्रायः सभी विधाओं पर लगातार लिखते रहे। देशभर के लगभग सभी महत्वपूर्ण प्रकाशन संस्थानों से इनकी पुस्तकों का प्रकाशन हुआ और कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता की।
रामवृक्ष बेनीपुरी ने इनके काव्य संग्रह मुरलिका की भूमिका में लिखा है, “दिनकर के साथ बिहार में कवियों की जो नयी पौध जगी, उसका अजीब हस्र हुआ। आँखे खोजती हैं इसके बाद आने वाली पौध कहाँ हैं? कभी कभी कुछ नए अंकुर ज़मीन की मोटी परत को छेदकर झांकते हुए से दिखाई पड़ते हैं। रमेश एक ऐसा ही अंकुर है। और वह मेरे घर का है, अपना है। अपनापन और पक्षपात सुनता हूँ साथ-साथ चलते हैं किन्तु तो भी अपनापन तो तोड़ा नहीं जा सकता और ममत्व की ज़ंजीर जो तोड़ा नहीं जा सकता। पक्षपात ही सही लेकिन बेधड़क कहूँगा कि रमेश की चीजें मुझे बहुत पसंद आती रही हैं।”
इनके एक और समकालीन हरिवंश राय बच्चन प्रयाग से लिखे गए एक पत्र में लिखते हैं, “श्री रमेशचंद्र झा कि रचनाओं से मेरा परिचय “हुंकार” नामी पटना के साप्ताहिक से हुआ। राँची कवि सम्मेलन में उनसे मिलने और उनके मुख से उनकी कविताओं को सुनने का सुयोग प्राप्त हुआ। उनकी रचनाओं का अर्थ मेरे मन में और गहराया। श्री झा जी ने जहां तक मुझे मालूम है अभी तक गीत ही लिखे हैं। इन गीतों में उन्होंने अपने मन कि विभिन्न भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है। अपने मन की भावनाओं के केवल कला का झीना पाटम्वर पहना कर जिनसे उनका रूप और निखर उठे न कि छिप जाए आधुनिक हिंदी काव्य साहित्य की नई परंपरा है। उसके लिए बड़े साहस और संयम कि आवश्यकता है। अपने प्रति बड़ी ईमानदारी उस परंपरा का प्राण है। झा जी के गीतों में ह्रृदय बोलता है और कला गाती है।”
सम्मान एवं पुरस्कार…
१५ अगस्त, १९७२, को भारतीय स्वाधीनता की २५वीं वर्षगाँठ के अवसर पर भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र से सम्मानित किया।
२ अक्टूबर, १९९३ को रानीगंज, पश्चिम बंगाल में आयोजित अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन में “डॉ॰ उदय नारायण तिवारी सम्मान” से सम्मानित।
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रमेशचन्द्र झा स्मृति सम्मान…
०४-०५ मार्च, २०१६ को सुगौली संधि के दो सौ साल पूरे होने के अवसर पर बिहार की सामाजिक संस्था “भोर” और प्रेस क्लब द्वारा आयोजित सुगौली संधि समारोह में रमेशचन्द्र झा द्वारा लिखित “स्वाधीनता समर में सुगौली” पुस्तक का पुनर्प्रकाशन और विमोचन किया गया।
४ मार्च, २०१६ वरिष्ठ पत्रकार और स्टार न्यूज़ के राजनीतिक सलाहकार अरविन्द मोहन द्वारा प्रसिद्द साहित्यकार एवं वर्धा अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय को रमेशचन्द्र झा स्मृति सम्मान से पुरस्कृत किया गया।
कृतियाँ…
१. काव्य-संग्रह
मुरलिका,
प्रियंवदा (खण्ड काव्य),
स्वगातिका,
मेघ-गीत,
आग-फूल,
भारत देश हमारा,
जवान जागते रहो,
मरीचिका,
जय भारत जय गांधी,
जय बोलो हिन्दुस्तान की,
प्रियदर्शनी (श्रद्धा काव्य),
दीप चलता रहा,
चलो-दिल्ली,
नील के दाग,
२. ऐतिहासिक उपन्यास
दुर्ग का घेरा,
मजार का दीया,
मिट्टी बोल उठी,
राव हम्मीर,
वत्स-राज,
कुंवर सिंह,
कलिंग का लहू।
३. राष्ट्रीय साहित्य
यह देश है वीर जवानों का,
स्वाधीनता समर में सुगौली।
४. सामाजिक-राजनीतिक उपन्यास
धरती की धुल,
जीवन-दान,
काँटे और कलियाँ,
रूप की राख,
पास की दूरी,
मीरा नाची रे।
५. बाल साहित्य
सोने का कंगन,
चंदा का दूत,
बन्दर लाला,
कहते चलो सुनते चलो,
इनसे सीखो इनसे जानो,
कविता भरी कहानी,
नया देश नई कहानी,
गाता चल बजाता चल,
कैसी रही कहानी,
आओ सुनो कहानी,
एक समय की बात,
आगे कदम बढाओ,
बच्चो सुनो कहानी,
आओ पढ़ते जाओ।
६. आत्मकथात्मक उपन्यास
विद्यापति,
भारत-पुत्री,
७. शोध कार्य
चम्पारन की साहित्य साधना,
अपने और सपने : चम्पारन की साहित्य यात्रा,
चम्पारन: साहित्य और साहित्यकार।
८. भोजपुरी उपन्यास
सुरमा सगुन बिचारे ना (भोजपुरी का पहला धारावाहिक उपन्यास)
Bahut khup