November 22, 2024

महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन बिहार में जिस समय गति पकड़ रहा था, उसी समय एक युवा सन्यासी पूरे बिहार में घूम-घूमकर अंग्रेजी राज के खिलाफ लोगों को खड़ा कर रहा था। यह वह समय था जब युवा सन्यासी भारत को समझने की कोशिश कर रहा था। भारत को समझने के क्रम में सन्यासी को एक अनुभव हुआ। उसने देखा की किसानों की हालत गुलामों से भी बुरी है। संन्यासी का मन संघर्ष की ओर उन्मुख होने लगा। वो किसानों को लामबंद करने की मुहिम में जुट गया।

कालांतर में किसानों का यही लामबंद किसान आंदोलन का रूप ले लिया। भारत के इतिहास में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने और उसका सफल नेतृत्व करने का एक मात्र श्रेय इसी युवा सन्यासी को जाता है, जिन्हें हम स्वामी सहजानंद सरस्वती के नाम से जानते हैं।

कांग्रेस पार्टी में रहते हुए स्वामीजी ने किसानों को जमींदारों के शोषण से मुक्त कराने का अभियान जारी रखा। उनकी बढ़ती लोकप्रियता एवं सक्रियता से परेशान हो अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया। कारावास में रहते हुए स्वामीजी ने कांग्रेस के नेताओं को मिलने वाली सुविधाओ को देखा और बड़े हैरान हुए। विद्रोही स्वामीजी का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और यहीं से सहजानंद ने किसानों को हक दिलाने वाले संघर्ष को ही अपने जीवन का लक्ष्य मान लिया।

स्वामीजी का जन्म २२ फरवरी, १८८९ को महाशिवरात्रि के दिन उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के देवाग्राम में हुआ था। स्वामीजी अभी तीन साल के भी नहीं थे, तभी उनकी माता का देहान्त हो गया। उनकी शिक्षा जलालाबाद मदरसा से शुरू हुई।

उनकी बैरागी प्रवृति को देखकर १९०५ में उनका विवाह करा दिया गया मगर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। विवाह के एक साल के के भीतर ही पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया। कुछ वर्षों के बाद घर में उनके विवाह की चर्चा होने लगी, यह जान वे महाशिवरात्रि को घर से निकल काशी में दसनामी संन्यासी स्वामी अच्युतानन्द जी के यहाँ पहुंच प्रथम दीक्षा प्राप्त कर संन्यासी बन गए। उसके बाद शरू हुई गुरु की खोज। जिसमें वे पूरे एक वर्ष तक भारत के तीर्थों का भ्रमण करते रहे। अंततः पुन: काशी पहुँचकर दशाश्वमेधा घाट स्थित श्री दण्डी स्वामी अद्वैतानन्द सरस्वती से दीक्षा ग्रहण कर दण्ड प्राप्त किया और दण्डी स्वामी सहजानन्द सरस्वती कहलाए।

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