सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसी
हमें डर है हम खो न जाएं कहीं
सुहाना सफ़र…
और फ़िर, वो खो गया एक दिन,
5 सितम्बर, 1995 क़ो आज ही के दिन।
हिंदी सिनेमा में उनका डेब्यू हुआ टैगोर की गद्य कविता से प्रेरित फिल्म दो बीघा जमीन से। इसकी कहानी लिखी थी सलिल चौधरी ने और निर्देशन था बिमल रॉय का। यह फिल्म कई मायनों में ऐतिहासिक थी। अपनी प्रगतिशील विचारधारा के अलावा इसके हिस्से एक खास उपलब्धि और भी है। यह पहली फिल्म है, जिसने फिल्मफेयर बेस्ट मूवी अवॉर्ड जीता साथ ही इसे कान फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार मिला।
गंगा और जमुना की गहरी है धार,
आगे या पीछे सबको जाना है पार,
धरती कहे पुकार के,
बीज बिछा ले प्यार के मौसम बीता जाए।
वास्तव मे सलिल दा हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। उन्होंने प्रमुख रूप से बंगाली, हिन्दी और मलयालम फ़िल्मों के लिए संगीत दिया था। फ़िल्म जगत में ‘सलिल दा’ के नाम से मशहूर सलिल चौधरी को ‘मधुमती’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘आनंद’, ‘मेरे अपने’ जैसी फ़िल्मों को दिए संगीत के लिए जाना जाता है।
कहीं दूर जब दिन ढल जाए,
सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके से आए।
मेरे ख्यालों के आंगन में,
कोई सपनों के दीप जलाए,
दीप जलाए।
ये आस्था का गीत है, मृत्यु पर्व के ठीक पहले ये आभास और आश्वस्ति है कि उस अंधेरे में भी, थोड़ी सी ही सही मगर रौशनी कहीं गुम नहीं होगी।