“आदमी के पास अगर दो विकल्प हों कि वह या तो बड़ा अफसर बन जाये और खूब मज़े करे या फिर छोटा मोटा लेखक बन कर अपने मन की बात कहने की आज़ादी अपने पास रखे तो भई, बहुत बड़े अफसर की तुलना में छोटा सा लेखक होना ज्यादा मायने रखता है। हो सकता है आपकी अफसरी आपको बहुत सारे फायदे देने की स्थिति में हो तो भी एक बात याद रखनी चाहिये कि एक न एक दिन अफसर को रिटायर होना होता है। इसका मतलब यही हुआ न कि अफसरी से मिलने वाले सारे फायदे एक झटके में बंद हो जायेंगे, जबकि लेखक कभी रिटायर नहीं होता। एक बार आप लेखक हो गये तो आप हमेशा लेखक ही होते हैं। अपने मन के राजा, आपको लिखने से कोई रिटायर नहीं कर सकता।
लेखक के पक्ष में एक और बात जाती है कि उसके नाम के आगे कभी स्वर्गीय नहीं लिखा जाता। हम कभी नहीं कहते कि हम स्वर्गीय कबीर के दोहे पढ़ रहे हैं या स्वर्गीय प्रेमचंद बहुत बड़े लेखक थे। लेखक सदा जीवित रहता है, भावी पीढियों की स्मृति में, मौखिक और लिखित विरासत में और वो लेखक ही होता है जो आने वाली पीढियों को अपने वक्त की सच्चाइयों के बारे में बताता है।”
यह मैं नहीं कहता, यह शरद जोशी जी ने कहा है।
शरद जी का जन्म २१ मई १९३१ को उज्जैन में हुआ था। कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे थे, फिर इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया।
आरम्भ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य-लेखन ही करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। हिन्दी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं। इनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है।
गद्य रचनाओ में, परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन(३खण्ड), यथासंभव, यथासमय, यत्र-तत्र-सर्वत्र, नावक के तीर, मुद्रिका रहस्य, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, झरता नीम शाश्वत थीम, जादू की सरकार, पिछले दिनों, राग भोपाली, नदी में खड़ा कवि, घाव करे गंभीर, मेरी श्रेष्ठ व्यंग रचनाएँ आदि।
दो व्यंग्य नाटक अंधों का हाथी, एक था गधा उर्फ अलादाद खाँ
उपन्यास, मैं, मैं और केवल मैं उर्फ़ कमलमुख बी0ए0
टीवी धारावाहिक यह जो है जिंदगी, मालगुड़ी डेज, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब,
दाने अनार के, यह दुनिया गज़ब की, लापतागंज।
फिल्मी सम्वाद क्षितिज, गोधूलि, उत्सव, उड़ान, चोरनी, साँच को आँच नहीं, दिल है कि मानता नहीं।
मगर दोस्तों मैं आप सबको उनकी एक व्यंग पढ़ने को जरूर कहूंगा और वो है, “पानी की समस्या”। यही वह व्यंग है जिसे राजीव गांधी जी की सरकार ने प्रतिबंध कर दिया था।
ऐसे धाकड़, निर्भीक और ईमानदार लेखक के जन्मोत्सव पर Ashwini Rai’अरुण’ का नमन।
धन्यवाद।