डाकिया डाक लाया, डाक लाया
डाकिया डाक लाया…
ख़ुशी का पयाम कहीं दर्दनाक लाया
डाकिया डाक लाया …

इन्दर के भतीजे की साली की सगाई है
ओ आती पूरणमासी को क़रार पाई है
मामा आपको लेने आते मगर मजबूरी है
बच्चों समेत आना आपको ज़रूरी है
दादा तो अरे रे रे रे दादा तो गुज़र गए दादी बीमार है
नाना का भी तेरहवां आते सोमवार है
छोटे को प्यार देना बड़ों को नमस्कार
मेरी मजबूरी समझो कारड को तार
शादी का संदेसा तेरा है सोमनाथ लाया
डाकिया डाक लाया …

कुछ याद आया, अजी कुछ याद आया। बाबू मोसाय पर फिल्माए इस गीत को गाया था किशोर दा ने और फिल्म थी, ‘ ‘पलकों की छांव में’ अब कुछ याद आया ? ? ? ना…! ! !
अजी आज़ उसी डाक के टिकट का जनम दिन है।

०१ सितम्बर,१८५४

१ सितम्बर १८५४ में भारत में डाक टिकट शुरू हुआ, टिकट पर महारानी विक्टोरिया का सिर और भारत बना होता था। इसकी किमत आधा आना (१/३२ रुपये) थी।
वैसे तो १ जुलाई १८५२ को सिन्ध के मुख्य आयुक्त सर बर्टलेफ्र्रोरे द्वारा सिंध राज्य और मुंबई-कराची मार्ग पर प्रयोग के लिए ‘सिंध डाक’ नामक डाक टिकट जारी किया गया था। यह टिकट भूरे कागज पर लाख का लाल सील चिपका कर कीया जाता था। यह टिकट अधिक सफल नही रहा अतः इसे बन्द कर दीया गया। इ़सके बाद ‘डाक टिकट’ छोटे आयताकार काग़ज़ के टुकड़े पर तैयार किया गया, भारत में १८५४ से १९३१ तक डाक टिकटों पर महारानी विक्टोरिया, एडवर्ड सप्तम, जॉर्ज पंचम, जार्ज छठे के चित्र वाले डाक टिकट ही निकलते रहे।

डाक टिकट चिपकने वाले कागज से बना एक साक्ष्य है जो यह दर्शाता है कि, डाक सेवाओं के शुल्क का भुगतान हो चुका है। आम तौर पर यह एक छोटा आयताकार कागज का टुकड़ा होता है जो एक लिफाफे पर चिपका रहता है, यह दर्शाता है कि प्रेषक ने प्राप्तकर्ता को सुपुर्दगी के लिए डाक सेवाओं का पूरी तरह से या आंशिक रूप से भुगतान किया है। डाक टिकट, डाक भुगतान करने का सबसे लोकप्रिय तरीका है।

इंटरनेट के युग में डाक कम हो गया है मगर आज भी वो अपनी पहचान, पहुच क़ो बनाए रखने में कामयाब है तो… फ़िर गाते हैं।

डाकिया डाक लाया, डाक लाया
डाकिया डाक लाया…
ख़ुशी का पयाम कहीं दर्दनाक लाया
डाकिया डाक लाया …

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *