November 21, 2024

दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥

१७ अगस्त अर्थात आज ही, श्रावण मास की सप्तमी को तुलसीदासजी की जयंती मनाई जाती है। तुलसीदास जी ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। गोस्वामी जी ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन हम सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया। भगवान श्री वाल्मीकि जी की रचना ‘रामायण’ को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लोक भाषा अवधी में राम कथा रामचतिमानस की रचना की।

गोस्वामी जी ने कुल १२ ग्रंथों की रचना की है, लेकिन सबसे अधिक ख्याति उनके द्वारा रचित रामचरितमानस को मिली।

गोस्वामी जी के बारे मे यह मान्यता है कि उनको अपनी सुंदर पत्नी रत्नावली से अत्यंत लगाव था। एक बार तुलसीदासजी ने अपनी पत्नी से मिलने के लिए उफनती नदी को भी पार कर लिया था। तब उनकी पत्नी ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा- जितना प्रेम मेरे इस हाड़-मांस के बने शरीर से कर रहे हो, उतना ही स्नेह यदि प्रभु श्री राम से करते, तो तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती। यह सुनते ही तुलसीदासजी की चेतना जागी और उसी समय से वह प्रभु श्रीराम की वंदना में जुट गए।

हे अश्विनी ! जो निष्काम भाव से गोस्वामीजी के लिखे दोहे को भगवान श्रीराम के भजन के समान गाता है उसे अपने सभी पाप कर्मो से छुटकारा मिल जाता है, तो आइए हम सभी मिलकर गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे को गाते हैं….

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||

तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||

सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||

मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह|
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान|
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग|
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||

लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन|
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||

काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान|
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||

About Author

Leave a Reply