images (9)

जयचन्द विद्यालंकार जी भारत के महान इतिहासकार एवं रचनाकार थे। वे स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती, गौरीशंकर हीराचन्द ओझा और काशीप्रसाद जायसवाल जैसी महान हस्तियों के शिष्य थे। उन्होंने भारतीय दृष्टि से समस्त अध्ययन को आयोजित करने और भारत की सभी भाषाओं में ऊंचे साहित्य का विकास करने के लिए ‘भारतीय इतिहास परिषद’ नामक एक संस्था बनाई थी। आपको यह जानकर एक सुखद आश्चर्य होगा कि वे भगत सिंह के राजनीतिक गुरु थे।

 

 

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

 

जयचन्द विद्यालंकार जी का जन्म ५ दिसंबर, १८९८ को हुआ था। उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार में हुई। ‘विद्यालंकार’ की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कुछ समय तक गुरुकुल कांगड़ी में, गुजरात विद्यापीठ में तथा कौमी महाविद्यालय, लाहौर में अध्यापक रहे। इतिहास में शोध के प्रति आरम्भ से ही उनकी रूचि थी। वर्ष १९३७ में उन्होने भारतीय इतिहास परिषद की स्थापना की जिसमें डॉ राजेन्द्र प्रसाद का भी सहयोग था। जयचन्द विदेशियों द्वारा लिखे गए भारतीय इतिहास की एकांगी दृष्टि को परिमार्जित करने के लिए कटिबद्ध थे। इसके लिए व्यापक शोध के आधार पर उन्होने प्राचीन भारत के इतिहास पर विशेष रूप से ग्रन्थों की रचना की। उनके ग्रन्थों में उनके ज्ञान, मौलिक विचारधारा एवं आलोचनात्मक दृष्टि के दर्शन होते हैं। उन्हें हिन्दी के तत्कालीन मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था।

 

 

करियर और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

उन्होने भारत छोड़ो आन्दोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया और तीन वर्ष तक जेल में बन्द रहे।

 

 

इतिहास लेखन और दर्शन (मुख्य योगदान)

जयचंद विद्यालंकार भारत में इतिहास की ऐसी प्रतिभा माने जाते हैं कि लोगों ने इतिहास की उनकी मूल धारणाओं तक पहुंचने के लिए विधिवत हिन्दी का अध्ययन किया। ऐसा नहीं था कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी मगर उन्हें अपनी धारणाएं हिन्दी में ही सामने रखने की जिद थी।

 

नेशनल कॉलेज में अध्यापन के दौरान ही जयचंद जी ने पंजाब प्रांत में हिंदी-नागरी के प्रचार-प्रसार का काम जोरों से किया। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन से जुड़े रहे। सम्मेलन द्वारा तीस के दशक में आयोजित की गई इतिहास परिषदों के वे कई बार सभापति रहे। आज़ादी के बाद सन १९५० में कोटा में हुई हिंदी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन के भी वे सभापति रहे।

 

 

प्रमुख कृतियाँ और साहित्य (Jaychand Vidyalankar Books)

 

१. भारतीय इतिहास का भौगोलिक आधार

२. भारतभूमि और उसके निवासी

३. भारतीय इतिहास की रूपरेखा

४. इतिहास प्रवेश

५. पुरुखों का चरित्र

६. भारतीय इतिहास की मीमांसा

७. भारतीय इतिहास का क ख ग

८. भारतीय इतिहास का उन्मिलन

 

निष्कर्ष:

 

जयचन्द विद्यालंकार भारतीय इतिहास के उन चमकते सितारों में से थे जिन्होंने शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी दोनों के रूप में देश की सेवा की। गुरुकुल कांगड़ी से लेकर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के कारावास तक, उनका जीवन राष्ट्र को समर्पित रहा। हिंदी भाषा में उनके मौलिक ऐतिहासिक लेखन ने भावी पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य विरासत छोड़ी है।

 

 

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *