देखने में यह आदमी अकेला लग रहा है मगर नहीं यह पूरी श्रीस्ती के साथ है क्यूंकि यह शान्त है बीलकुल शान्त। शान्त मन, शान्त चित्त आदमी को नई ऊँचाई प्रदान करता है।
वह कभी अकेला नहीं होता, क्यूंकि उस समय वह स्वयं के साथ होता है। वह आदमी पुरे संसार के हर उस संगीत को सुन सकता है जो बाकियों के लिए दूर्लभ है, हर उस मनोरंजन को सकता है जो किसी ने कभी कल्पना तक न की होती है।
इश दुर्लभ मनोरंजन को सभी पा सकते है मगर पुरे जीवन काल में वो नहीं पा सकते जब तक स्वयं को नहीं पा लेते। जो स्वयं को पाना चाहता है उसे शान्त चित्त होना ही होगा।
उसे खुद में खोना होगा।
उसे खुद को पाना होगा।
सारी दूर्लभ मनोरंजन के साथ साथ पुरे ब्रह्माण्ड की दुर्लभ मडीयों से खुद को अंगिकार कर सकता है।
अर्थात वह स्वयं को ब्रह्म में विलीन कर सकता है।
वो ब्रह्म को पा जायेगा।
