durga-chalisa

 दुर्गा चालीसा 

 

नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।

नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥१

 

निराकार है ज्योति तुम्हारी ।

तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥२

 

शशि ललाट मुख महाविशाला ।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥३

 

रूप मातु को अधिक सुहावे ।

दरश करत जन अति सुख पावे ॥४

 

तुम संसार शक्ति लय कीना ।

पालन हेतु अन्न धन दीना ॥५

 

अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥६

 

प्रलयकाल सब नाशन हारी ।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥७

 

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥८

 

रूप सरस्वती को तुम धारा ।

दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा ॥९

 

धरा रूप नरसिंह को अम्बा ।

प्रगट भईं फाड़कर खम्बा ॥१०

 

रक्षा कर प्रह्लाद बचायो ।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥११

 

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।

श्री नारायण अंग समाहीं ॥१२

 

क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।

दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥१३

 

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।

महिमा अमित न जात बखानी ॥१४

 

मातंगी अरु धूमावति माता ।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥१५

 

श्री भैरव तारा जग तारिणी ।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥१६

 

केहरि वाहन सोह भवानी ।

लांगुर वीर चलत अगवानी ॥१७

 

कर में खप्पर-खड्ग विराजै ।

जाको देख काल डर भाजे ॥१८

 

सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।

जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥१९

 

नगर कोटि में तुम्हीं विराजत ।

तिहुंलोक में डंका बाजत ॥२०

 

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।

रक्तबीज शंखन संहारे ॥२१

 

महिषासुर नृप अति अभिमानी ।

जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥२२

 

रूप कराल कालिका धारा ।

सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥२३

 

परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब ।

भई सहाय मातु तुम तब तब ॥२४

 

अमरपुरी अरु बासव लोका ।

तब महिमा सब रहें अशोका ॥२५

 

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥२६

 

प्रेम भक्ति से जो यश गावै ।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥२७

 

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ॥२८

 

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥२९

 

शंकर आचारज तप कीनो ।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥३०

 

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥३१

 

शक्ति रूप को मरम न पायो ।

शक्ति गई तब मन पछितायो ॥३२

 

शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।

जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥३३

 

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥३४

 

मोको मातु कष्ट अति घेरो ।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥३५

 

आशा तृष्णा निपट सतावे ।

मोह मदादिक सब विनशावै ॥३६

 

शत्रु नाश कीजै महारानी ।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥३७

 

करो कृपा हे मातु दयाला ।

ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ॥३८

 

जब लगि जियउं दया फल पाऊं ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥३९

 

दुर्गा चालीसा जो नित गावै ।

सब सुख भोग परमपद पावै ॥४०

 

देवीदास शरण निज जानी ।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

 

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा संपूर्ण ॥

 

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