November 21, 2024

कलकत्ता में १८७८ से पूर्व तक हिन्दी का कोई भी पत्र प्रकाशित नहीं होता था। वहां बंगला और अंग्रेजी के पत्र ही निकला करते थे, जिससे हिंदी भाषियों को देश की स्तिथि जानने के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता था, जिस वजह से गलतफहमी हो जाया करती थीं। इसलिए जब ‘भारत मित्र’ कलकत्ता से प्रकाशित हुआ तो बड़ा ही प्रसिद्ध हुआ। आइए आज हम भारत मित्र नामक इस सुप्रसिद्ध समाचार पत्र के बारे में विस्तार से जानेंगे…

परिचय…

भारत मित्र समाचार पत्र का प्रकाशन १७ मई, १८७८ को छोटूलाल मिश्र और दुर्गाप्रसाद मिश्र ने कलकता में शुरू किया था, जिसके प्रथम व वैतनिक संपादक पण्डित हरमुकुन्द शास्त्री जी थे, जिन्हें पत्र को सम्हालने के लिए लाहौर से बुलाया गया था, जिनकी छत्र छाया में यह पत्र लम्बे समय (३७ वर्षों) तक निरन्तर चलता रहा। राजा, प्रजा, राज्य-व्यवस्था, वाणिज्य, भाषा और सबके ऊपर देशहित की चिंता-चेतना जगानेवाला ‘भारतमित्र’ एक तेजस्वी राजनीतिक पत्र के रूप में बेहद चर्चित और विख्यात हुआ। शास्त्री जी के बाद वर्ष १८९९ में श्री बालमुकुन्द गुप्त इसके मुख्य संपादक हुए और दुर्भाग्यवश उसी वर्ष उनकी मृत्यु हो गई।

आंदोलन…

भारतमित्र को कचहरियों में हिन्दी प्रवेश आन्दोलन का मुखपत्र कहा जाता था/ है। स्वदेशी आंदोलन का मुख्य कर्ता भी सर्वप्रथम इसी पत्र को कहा जा सकता है। समग्र जातीय चेतना का विकास इस पत्र का मुख्य लक्ष्य था।

कानून…

समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए १४ मार्च, १८७८ को वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू किया गया था। शायद इसी कारण १७ मार्च, १८७८ को ‘भारत मित्र’ की स्थापना की नीव पड़ी। यह बात उसकी संपादकीय टिप्पणी की भाषा से पता चलता है। यह वो समय था जब राजा तक प्रजा के कष्ट तथा नाना प्रकार के अभाव की जानकारी पहुँचाने का कोई साधन नहीं था, जिसका सशक्त माध्यम भारत मित्र बना। परंतु अभियोग माध्यम पत्रों की आजादी की माँग सरकारी दृष्टि से कदाचित् सबसे बड़ा अपराध था, किंतु राष्ट्रवाद और देश भक्ति का यह आलम था कि ‘भारतमित्र’ उसी राह पर चल निकला जिस राह पर सरकारी अवरोध था। संपादक के सामने ब्रिटिश सरकार की नीति स्पष्ट थी और उन्हें अपनी दिशा भी निश्चित थी अतः उसके प्रतिरोध में जागरूकता फैलाना जरूरी था। शायद यही कारण है कि ‘भारतमित्र’ की संपादकीय टिप्पणी में राजभक्ति की जगह देश भक्ति ज्यादा दिखाई पड़ता है।

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