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जैसा कि हम अपने पिछले लेख में कहा था कि भारतेन्दु जी की टीका टिप्पणियों से अधिकारी तक घबराते थे। एक बार की बात है कि “कविवचनसुधा” के “पंच” पर रुष्ट होकर काशी के मजिस्ट्रेट ने भारतेन्दु जी के पत्रों को शिक्षा विभाग के लिए लेना बंद करा दिया। सात वर्षों तक ‘कविवचनसुधा’ का अनवरत संपादक-प्रकाशन करने के बाद भारतेन्दु जी ने उसे अपने मित्र चिंतामणि धड़फले को सौंप दिया और स्वयं ‘हरिश्चंद्र मैग्जीन’ का प्रकाशन १५ अक्टूबर, १८७३ को बनारस से प्रारंभ किया। जिसके मुखपृष्ठ पर उल्लेख रहता था कि यह ‘कविवचनसुधा’ से संबद्ध है। आज हम उसी हरिश्चंद्र मैग्जीन पर चर्चा करेंगे…

परिचय…

‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ एक मासिक पत्रिका थी। यह पत्रिका १५ अक्टूबर, १८७३ को काशी से भारतेंदु हरिश्चंद्र ने प्रारम्भ की थी।जब तक इस पत्रिका में पुरातत्त्व, उपन्यास, कविता, आलोचना, ऐतिहासिक, राजनीतिक, साहित्यिक तथा दार्शनिक लेख, कहानियाँ और व्यंग्य आदि प्रकाशित हुआ करते थे तब तक यह पत्रिका अनवरत रूप से प्रति माह प्रकाशित होती रही परंतु जिस वक्त पत्रिका में देशभक्ति से परिपूर्ण लेख आदि प्रकाशित होने लगे तो इसे अंग्रेजी सरकार ने बन्द करा दिया।

इसके बावजूद भारतेन्दु जी नहीं रुके उन्होंने ९ जनवरी, १८७४ को ‘बाला-बोधिनी पत्रिका’ निकालनी शुरू कर दी, जो महिलाओं की मासिक पत्रिका थी।

 

बाला बोधिनी

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