November 21, 2024

कानपुर के रहने वाले चार लोगों ने एक साथ मिलकर, ९ नवम्बर, १९१३ दिन रविवार को एक समाचार पत्र शुरू किया और नाम रखा ‘प्रताप’। वे चार लोग थे गणेश शंकर विद्यार्थी, नारायण प्रसाद अरोड़ा, शिव नारायण मिश्र और शिवव्रत नारायण मिश्र। इसके पहले अंक में इसकी नीति, उद्देश्य और कार्यक्रमों का खुलासा करते हुए गणेश शंकर विद्यार्थी ने लिखा, ‘आज अपने हृदय में नई नई आशाओं को धारण करके और अपने उद्देश्यों पर पूरा विश्वास रखकर प्रताप कर्मक्षेत्र में उतरा है। समस्त मानव जाति का कल्याण हमारा परम उद्देश्य है इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक बहुत बड़ा और बहुत जरुरी साधन हम भारतवर्ष की उन्नति को समझते हैं’।

परिचय…

प्रताप ने अपने पहले प्रकाशन से ही भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में अपनी भूमिका को बखूबी निभाया। प्रताप के जरिये जहाँ न जाने कितने क्रान्तिकारी स्वाधीनता आन्दोलन से रूबरू हुए, वहीं समय-समय पर यह समाचार पत्र क्रान्तिकारियों हेतु सुरक्षा की ढाल भी बना।

‘प्रताप’ का प्रताप…

प्रताप प्रेस में कम्पोजिंग के अक्षरों के खाने में नीचे बारूद रखा जाता था एवं उसके ऊपर टाइप के अक्षर। ब्लाक बनाने के स्थान पर नाना प्रकार के बम बनाने का सामान भी रहता था। पर तलाशी में कभी भी पुलिस को ये चीजें हाथ नहीं लगीं। विद्यार्थी जी को वर्ष १९२१ से वर्ष १९३१ तक पाँच बार जेल जाना पड़ा और यह प्राय: ‘प्रताप‘ में प्रकाशित किसी समाचार के कारण ही होता था। विद्यार्थी जी ने सदैव निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की। उनके पास पैसा और समुचित संसाधन नहीं थे, परंतु एक ऐसी असीम ऊर्जा थी जिसकी वजह से स्वतंत्रता प्राप्ति की लड़ाई आसान बन गई थी। ‘प्रताप‘ प्रेस के निकट तहखाने में ही एक पुस्तकालय भी बनाया गया था, जिसमें सभी जब्तशुदा क्रान्तिकारी साहित्य एवं पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध थीं। यह ‘प्रताप’ ही था जिसने दक्षिण अफ्रीका से विजयी होकर लौटे तथा भारत के लिये उस समय तक अनजान महात्मा गाँधी की महत्ता को महत्ता प्रदान की। इतना ही नहीं चम्पारण-सत्याग्रह की नियमित रिपोर्टिंग कर राष्ट्र को गाँधीजी से परिचित कराया। चौरी-चौरा तथा काकोरी काण्ड के दौरान भी विद्यार्थी जी ‘प्रताप’ के माध्यम से प्रतिनिधियों के बारे में नियमित लिखते रहे। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित सुप्रसिद्ध देशभक्ति कविता पुष्प की अभिलाषा प्रताप अखबार में ही मई १९२२ में प्रकाशित हुई। बालकृष्ण शर्मा नवीन, सोहन लाल द्विवेदी, सनेही जी इत्यादि ने प्रताप के माध्यम से अपनी देशभक्ति को मुखर आवाज दी।

प्रताप प्रेस की बनावट…

प्रताप प्रेस की बनावट ही कुछ इस तरह की थी कि इसमें छिपकर रहा जा सकता था तथा फिर सघन बस्ती में तलाशी होने पर एक मकान से दूसरे मकान की छत पर आसानी से जाया जा सकता था। बनारस क्रांति से भागे सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य प्रताप में उपसंपादक थे। बाद में प्रताप से जुड़े पंडित राम दुलारे त्रिपाठी, जो सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य के परिचित थे, को काकोरी काण्ड में सजा मिली। भगत सिंह ‘प्रताप‘ में बलवन्त सिंह के छद्म नाम से लगभग ढाई वर्ष तक कार्य किया। सर्वप्रथम दरियागंज, दिल्ली में हुये दंगे का समाचार एकत्र करने के लिए भगत सिंह ने दिल्ली की यात्रा की और लौटकर ‘प्रताप’ के लिए सचिन दा के सहयोग से दो कालम का समाचार तैयार किया।

क्रांतिकारियों की पहली पसंद…

विद्यार्थी जी का ‘प्रताप‘ तमाम क्रांतिकारियों को अपनी ओर आकर्षित करता था। चन्द्रशेखर आजाद से भगत सिंह की पहली मुलाकात विद्यार्थी जी ने ही कानपुर में करायी थी, फिर तो शिव वर्मा सहित तमाम क्रान्तिकारी जुड़ते गये। यह विद्यार्थी जी ही थे कि जेल में भेंट करके क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा छिपाकर लाये तथा उसे ‘प्रताप‘ प्रेस के माध्यम से प्रकाशित करवाया। जरूरत पड़ने पर विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की माँ की मदद की और रोशन सिंह की कन्या का कन्यादान भी किया। यही नहीं अशफाकउल्ला खान की कब्र भी विद्यार्थी जी ने ही बनवाई थी। वर्ष १९१६ में लखनऊ कांग्रेस के बाद महात्मा गाँधी और लोकमान्य तिलक इक्के पर बैठकर प्रताप प्रेस आये एवं वहाँ दो दिन रहे।

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