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विषय – भविष्य
दिनाँक – १२/१०/१९

दिन बदल गए
राते बदल गई हैं
सुबह बदल गए
सांझे बदल गई हैं

ये धुँआ-धुँआ सा क्या है

गर्मी सर्दी और बरसात
थे मौसम कुछ खास

कौवो कें चीत्कार मे
कोयल की कूक बदल गई है

देखो जहाँ को क्या हो गया है

खूद से खूद को धोखा देते
अपना भविष्य बिगाड़ रहा है
पीढ़ीया सिसक रही हैं
मानवता चीत्कार रही है

जीने का अंदाज बदल गया है

थोड़ा ठहरो
कुछ तो विचार करो
बदलो खुद को
नवजीवन का विस्तार करो

कुछ तो होने वाला है

नगाड़े बज उठे
दुदुम्भी भी बज पड़ी है

सच में कुछ तो होने वाला है

चहुँ ओर घटा छाई है
मौसम बदलने वाला है
चीत्कार में भी कोई सार है
समय बदलने वाला है

तुम वार करो रुको मत
हे पार्थ ! ना विचार करो
जग का सच मैं ही हूँ
चेतन का विस्तार करो

वह देखो सब गीर रहे हैं
सोचो कौन इन्हें मार रहा है
जीवन कालिख मीट चुकी है
इनका शैशव आने वाला है

सब प्रेम हास में बिधने वाले हैं
नवयुग सजने वाला है
इसके तुम प्रमाण बनो
हे पार्थ! भविष्य बदलने वाला है

अश्विनी राय ‘अरूण’

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