वैदिक संहिताओं के अंतर्गत तपस्वियों अथवा तपस (संस्कृत) के बारे में प्राचीन काल से ही वेदों में उल्लेख मिलता है, जब कि तापसिक साधनाओं का समावेश प्राचीन वैदिक टिप्पणियों में प्राप्त है। कई मूर्तियाँ जो सामान्य योग या समाधि मुद्रा को प्रदर्शित करती है, सिंधु घाटी सभ्यता के स्थान पर प्राप्त हुईं है। पुरातत्त्वज्ञ ग्रेगरी पोस्सेह्ल के अनुसार, “ये मूर्तियाँ योग के धार्मिक संस्कार” के योग से सम्बन्ध को संकेत करती है। यद्यपि इस बात का निर्णयात्मक सबूत नहीं है फिर भी अनेक विद्वानो की राय में सिंधु घाटी सभ्यता और योग-ध्यान में निश्चित सम्बन्ध है। ध्यान में उच्च चैतन्य को प्राप्त करने कि रीतियों का विकास श्रमानिक परम्पराओं द्वारा एवं उपनिषद् की परंपरा द्वारा विकसित हुआ था।
बुद्ध के पूर्व एवं प्राचीन ब्रह्मिनिक ग्रंथों मे ध्यान के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं मिलते हैं, बुद्ध के दो शिक्षकों के ध्यान के लक्ष्यों के प्रति कहे वाक्यों के आधार पर यह तर्क करते है की निर्गुण ध्यान की पद्धति ब्रह्मिन परंपरा से निकली है इसलिए उपनिषद् की सृष्टि के प्रति कहे कथनों में एवं ध्यान के लक्ष्यों के लिए कहे कथनों में समानता है।
उपनिषदों में ब्रह्माण्ड सम्बन्धी बयानों के वैश्विक कथनों में किसी ध्यान की रीति की सम्भावना के प्रति तर्क देते हुए कहते है की नासदीय सूक्त किसी ध्यान की पद्धति की ओर ऋग्वेद से पूर्व भी इशारा करते है।
हिंदू ग्रंथ और बौद्ध ग्रंथ प्राचीन ग्रन्थो में से एक है जिन में ध्यान तकनीकों का वर्णन प्राप्त होता है। वे ध्यान की प्रथाओं और अवस्थाओं का वर्णन करते हैं जो बुद्ध से पहले अस्तित्व में थीं और साथ ही उन प्रथाओं का वर्णन करते है जो पहले बौद्ध धर्म के भीतर विकसित हुईं। हिंदु वाङ्मय में, “योग” शब्द पहले कथा उपानिषद में प्रस्तुत हुआ जहाँ ज्ञानेन्द्रियों का नियंत्रण और मानसिक गतिविधि के निवारण के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जो उच्चतम स्थिति प्रदान करने वाला माना गया है। महत्वपूर्ण ग्रन्थ जो योग की अवधारणा से सम्बंधित है वे मध्य कालीन उपनिषद्, महाभारत, भागवत गीता एवं पतंजलि योग सूत्र है।
पतंजलि योग सूत्र…
भारतीय दर्शन में, षड् दर्शनों में से एक का नाम योग है। योग दार्शनिक प्रणाली, सांख्य स्कूल के साथ निकटता से संबन्धित है।ऋषि पतंजलि द्वारा व्याख्यायित योग संप्रदाय सांख्य मनोविज्ञान और तत्वमीमांसा को स्वीकार करता है, लेकिन सांख्य घराने की तुलना में अधिक आस्तिक है, यह प्रमाण है क्योंकि सांख्य वास्तविकता के पच्चीस तत्वों में ईश्वरीय सत्ता भी जोड़ी गई है।योग और सांख्य एक दूसरे से इतने मिलते-जुलते हैं कि मेक्स म्युल्लर कहते है,”यह दो दर्शन इतने प्रसिद्ध थे कि एक दूसरे का अंतर समझने के लिए एक को प्रभु के साथ और दूसरे को प्रभु के बिना माना जाता है।….” सांख्य और योग के बीच घनिष्ठ संबंध हेंरीच ज़िम्मेर समझाते है:
इन दोनों को भारत में जुड़वा के रूप में माना जाता है, जो एक ही विषय के दो पहलू है। यहाँ मानव प्रकृति की बुनियादी सैद्धांतिक का प्रदर्शन, विस्तृत विवरण और उसके तत्वों का परिभाषित, बंधन (बंधा) के स्थिति में उनके सहयोग करने के तरीके, सुलझावट के समय अपने स्थिति का विश्लेषण या मुक्ति में वियोजन का व्याख्या किया गया है। योग विशेष रूप से प्रक्रिया की गतिशीलता के सुलझाव के लिए उपचार करता है और मुक्ति प्राप्त करने की व्यावहारिक तकनीकों को सिद्धांत करता है अथवा ‘अलगाव-एकीकरण'(कैवल्य) का उपचार करता है।
पतंजलि, व्यापक रूप से औपचारिक योग दर्शन के संस्थापक मने जाते है। पतंजलि के योग, बुद्धि का नियंत्रण के लिए एक प्रणाली है, राज योग के रूप में जाना जाता है। पतंजलि उनके दूसरे सूत्र मे “योग” शब्द का परिभाषित करते है, जो उनके पूरे काम के लिए व्याख्या सूत्र माना जाता है:
योग: चित्त-वृत्ति निरोध: योग सूत्र १.२…
तीन संस्कृत शब्दों के अर्थ पर यह संस्कृत परिभाषा टिका है। अई.के.तैम्नी इसकी अनुवाद करते है की,”योग बुद्धि के संशोधनों।का निषेध है” योग का प्रारंभिक परिभाषा मे इस शब्द का उपयोग एक उदाहरण है कि बौद्धिक तकनीकी शब्दावली और अवधारणाओं, योग सूत्र मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं; इससे यह संकेत होता है कि बौद्ध विचारों के बारे में पतंजलि को जानकारी थी और अपने प्रणाली मे उन्हें बनाई। स्वामी विवेकानंद इस सूत्र को अनुवाद करते हुए कहते है,”योग बुद्धि (चित्त) को विभिन्न रूपों (वृत्ति) लेने से अवरुद्ध करता है।
पतंजलि का लेखन ‘अष्टांग योग”(“आठ-अंगित योग”) एक प्रणाली के लिए आधार बन गया।
२९ वें सूत्र के दूसरी किताब से यह आठ-अंगित अवधारणा को प्राप्त किया गया था और व्यावहारिक रूप मे भिन्नरूप से सिखाये गए प्रत्येक राज योग की एक मुख्य विशेषता है। इसके आठ अंग हैं…
यम (पांच “परिहार”): अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति और गैर स्वामिगत।
नियम (पांच “धार्मिक क्रिया”): पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान को आत्मसमर्पण।
आसन: मूलार्थक अर्थ “बैठने का आसन” और पतंजलि सूत्र में ध्यान।
प्राणायाम (“सांस को स्थगित रखना”): प्राण, सांस, “अयाम “, को नियंत्रित करना या बंद करना। साथ ही जीवन शक्ति को नियंत्रण करने की व्याख्या की गयी है।
प्रत्यहार (“अमूर्त”): बाहरी वस्तुओं से भावना अंगों के प्रत्याहार।
धारणा (“एकाग्रता”): एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना।
ध्यान (“ध्यान”): ध्यान की वस्तु की प्रकृति गहन चिंतन।
समाधि(“विमुक्ति”): ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना।
इसके दो प्रकार है – सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प समाधि में संसार में वापस आने का कोई मार्ग या व्यवस्था नहीं होती। यह योग पद्धति की चरम अवस्था है।
इस संप्रदाय के विचार मे, उच्चतम प्राप्ति विश्व के अनुभवी विविधता को भ्रम के रूप मे प्रकट नहीं करता. यह दुनिया वास्तव है। इसके अलावा, उच्चतम प्राप्ति ऐसा घटना है जहाँ अनेक में से एक व्यक्तित्व स्वयं, आत्म को आविष्कार करता है, कोई एक सार्वभौमिक आत्म नहीं है जो सभी व्यक्तियों द्वारा साझा जाता है।
भगवद गीता…
भगवद गीता में बड़े पैमाने पर एवं विभिन्न तरीकों से योग शब्द नजर आता है। एक पूरा अध्याय (छठा अध्याय) पारंपरिक योग के अभ्यास को समर्पित है, ध्यान सहित, करने के अलावा इस मे योग के तीन प्रमुख प्रकार का परिचय है।
कर्म योग: कार्रवाई का योग। इसमें व्यक्ति अपने स्थिति के उचित और कर्तव्यों के अनुसार कर्मों का श्रद्धापूर्वक निर्वाह करता है।
भक्ति योग: भक्ति का योग। भगवत कीर्तन। इसे भावनात्मक आचरण वाले लोगों को सुझाया जाता है।
ज्ञाना योग: ज्ञानार्जन करना।
मधुसूदन सरस्वती ने गीता को तीन वर्गों में विभाजित किया है, जहाँ प्रथम छह अध्यायों मे कर्म योग के बारे मे, बीच के छह मे भक्ति योग और पिछले छह अध्यायों मे ज्ञाना (ज्ञान) योग के बारे मे है। अन्य टिप्पणीकारों ने प्रत्येक अध्याय को एक अलग ‘योग’ से संबंध बताते है, जहाँ अठारह अलग अलग योग का वर्णन किया गया है।
हठयोग…
हठयोग योग, योग की एक विशेष प्रणाली है जिसे १५वीं सदी के भारत में हठ योग प्रदीपिका के संकलक, योगी स्वत्मरमा द्वारा वर्णित किया गया था।
हठयोग पतांजलि के राज योग से काफी अलग है जो सत्कर्म पर केन्द्रित है, भौतिक शरीर की शुद्धि ही मन की, प्राण की और विशिष्ट ऊर्जा की शुद्धि लाती है।केवल पतंजलि राज योग के ध्यान आसन के बदले, यह पूरे शरीर के लोकप्रिय आसनों की चर्चा करता है। हठयोग अपनी कई आधुनिक भिन्नरूपों में एक शैली है जिसे बहुत से लोग “योग” शब्द के साथ जोड़ते है।
प्रथम भाग के लिए …
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