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अपने मुंह में,
तुझे धर लेगा।
अजगर की तरह,
जकड़ लेगा।

अगर विश्वास पर,
अविश्वास किया तो
एक दिन समय,
तुझसे जवाब लेगा।

संशय मन का
कर दमन
वर्ना अपनों से
तू दूर निकल लेगा

यह दहकती आग है
पानी डाल उसे बुझा
औरों की बात क्या
तू खुद को जला लेगा

पट खोल देख ले
कितना डूब चुका है
बचा खुद को, वर्ना
ये बाढ़ तुझे बहा लेगा

तेरे सभी हैं
तू भी सबका है
व्यथा को छोड़ दे
जग तुझे अपना लेगा

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

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